OPINION: लालू यादव की बेबाकी का सहारा ले मीडिया उनकी छवि एक जातिवादी और असफल मुख्यमंत्री के तौर पर दिखाती रही

लालू यादव
लालू यादव

लेखक: कुमार दिवाशंकर, सोशल मिडिया कन्वेनर, राजद

समय से आगे की सोच और नेतृत्व की क्षमता रखने वाले लालू प्रसाद यादव की उपलब्धि बस दलितों और पिछड़ों के अंगूठे में लोकतंत्र की स्याही लगवा देने भर की नहीं है। आर्थिक तौर पर भी उन्होंने बिहार को एक नया आयाम दिया है।

70 से 90 के बीच बिहार के बदहाली की गाथा लिखी गई। 90 में मीडिया की एंट्री हुई और तब से लेकर अब तक मीडिया वर्ग ने ऐसा नैरेटिव क्रिएट किया की बिहार की बदहाली का ठीकरा लालू यादव समेत तमाम दलित एवं पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्रियों के सर फूटते आ रहा है।

लालू यादव जन नेता क्यों हैं? क्योंकि वह जनता के लिए हर निर्णय लेते थें। अपने पद का रौब झाड़ते हुए ज्ञान की उल्टी और भ्रांति वाली क्रांति की बातें नहीं करते चलते थें।

उन्हें दलितों और पिछड़ों की स्थिति का अंदाज़ा था, इसलिए वह मवेशी चराना छोड़ शिक्षित होने, पढ़ने जाने और IAS बन जाने की पीपुड़ी बजा उन्हें झूठा दिलासा नहीं देते चलते थें। उन्हें पता था की अगर सामने वाला मवेशी नहीं चराएगा तो उसके घर में शाम में दूध नहीं निकलेगा, खाना नहीं बनेगा, परिवार को भूखे सोना पड़ेगा। साथ ही उन्हें यह भी पता था कि मवेशी चराना कोई सिलाई कढ़ाई करने का काम नहीं है की आँख गड़ा के एक टक निहारते रहना होगा। इसी बात को ध्यान में रख उन्होंने चरवाहा विद्यालय की स्थापना की जिसमें पशुओं के चरने की तथा चरवाहों के पढ़ने की व्यवस्था की गई। इस व्यवस्था से गरीब का बेटा आराम से पशु भी चरा लेता था और पढ़ भी लेता था। यह वही चरवाहा विद्यालय का क्रांतिकारी कांसेप्ट था जिसका भारत के मीडिया वर्ग द्वारा तो खूब मखौल उड़ाया गया, मगर विदेशों में इसकी खूब सराहना होती रही।

आंकड़ों की बात करें तो आज़ादी से 70 के दशक तक बिहार आबाद रहा। यहाँ मढ़ौरा जैसे मुफस्सिल शहर तक में चीनी, लोहा, रेलवे इत्यादि की फैक्ट्रियां थीं, बिजली थी, सड़क व्यवस्था थी। 70 के बाद बर्बादी शुरू हुई जो 90 तक चली। आज आपको तमाम बुद्धिजीवी बिहार की बर्बादी का ठीकरा लालू यादव के सर पर फोड़ते मिल जाएंगे, क्योंकि 90 के दलित पिछड़ा उत्थान क्रांति के साथ बिहार में आगमन हुआ मीडिया का जिन्होंने 70-90 तक हुई बिहार की बर्बादी को लालू यादव के मत्थे मढ़ना शुरू किया। कहा गया की लालू यादव ने शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर दिया जबकि सच्चाई यह है की 1991-2001 के सेंसस में जब भारत का औसत शिक्षा दर लगभग 23% बढ़ा था वहीं हर तरह से पिछड़े बिहार का औसत शिक्षा दर 27% तक बढ़ा था। लालू प्रसाद यादव बिहार के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहें जिन्होंने अपने कार्यकाल में 5 यूनिवर्सिटी बनवाईं। 2022 में महिलाओं को माहवारी की छुट्टी दे खुद को विकासशील कहने वाले देशों से बहुत पहले ही लालू प्रसाद यादव ने 1992 में ही बिहार में छुट्टी लागू कर दी थी। करोड़ों रुपए फूँक देश को इको फ्रेंडली बनाने का ढोल पीटने की बजाए उन्होंने रेलवे में कुल्हड़ वाली चाय का कांसेप्ट दिया जिस से की एकसाथ कई लोगों को रोजगार भी मिला, और इस योजना को भारत सरकार ने भी 2020 में अपनाया। रेलमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद ने जो किया वह बताने की शायद ही आवश्यकता है।

CSO के राज्य स्तर डेटा के अनुसार 1980-1991 के दशक में बिहार का विकास दर 4.66% था, वह 1993-94 से 2004-2005 के बीच में 4.89% रहा।

बिहार के निवासी राजीव रंजन कहते हैं कि ''बिहार के बारे में एक रफ़ अंदाज़े के लिए आपको बता दूँ की जब मेरे माता पिता का जन्म क्रमशः 1962 और 1968 में हुआ, तो मेरी माँ का घर जो की मढ़ौरा में पड़ता था वहाँ उनके बचपन में ही चीनी की फैक्ट्री थी, लोहे का कारखाना, चॉक्लेट फैक्ट्री, शराब फैक्टरी एवं रेलवे कारखाना था। मेरे पिता के घर से 3 किलोमीटर के अंदर प्राथमिक विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालय था। बिजली थी। सड़कें थीं। लेकिन जब मेरा जन्म हुआ 1985 में तब बिजली के नाम पर जर्जर खम्भे थें, जले हुए ट्रांसफार्मर थें, सड़कें गायब हो चुकी थीं। मेरे ननिहाल खंडहर में तब्दील हो चुका था। यही कहानी बिहार के और भी औद्योगिक क्षेत्रों जैसे की डालमियानगर, रक्सौल, बिहटा, बरौनी और बेगूसराय इत्यादि की थी।''

मगर तमाम तथ्यों को किनारे रख वर्ग विशेष के तमाम बुद्धिजीवी और मीडिया के लोग बिहार की बदहाली के लिए जी भर कर पिछले 30 साल की सरकारों को कोसते रहते हैं, क्योंकि इन 30 सालों में दलित और पिछड़ा मुख्यमंत्री रहा। वह भूल कर भी 35 साल या 40 साल का जिक्र नहीं करतें।

लालू यादव ने सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय में भी अपना भरपूर योगदान दिया। लेकिन उन्होंने प्राथमिकता सामाजिक न्याय को दी। वह अक्सर कहा करते थें की विकसित तो आदिमानव भी हो गया, ज़रूरत सामाजिक समानता का है, सामाजिक न्याय का है। हमारी प्राथमिकता सामाजिक न्याय दिलाना है। उनकी इसी बेबाकी का सहारा ले मीडिया उनकी छवि एक जातिवादी और असफल मुख्यमंत्री के तौर पर दिखाती रही। उनके ऊपर जातिवाद का ऐसा ठप्पा लगा दिया की उसके नीचे उनकी तमाम खूबियां दबती चली गईं। मीडिया ने यहाँ तक अफवाह फैलाया कि 'लालू कहते हैं भुराबाल साफ करो'। यहाँ भुराबाल से मतलब भूमिहार-राजपूत-ब्राह्मण-लाला जाति से है। इसको सिरे से खारिज़ करते हुए लालू जी ने कहा कि 'एक पत्रकार के Essay को को मेरा बयान बनाया गया। मैं चैलेंज देता हूँ कि ऐसा वीडियो लाओ। बल्कि मैं तो कहता हूँ कोई राज्य का शांतिप्रिय मुख्यमंत्री किसी समाज को साफ़ कर देने की बात नहीं सकता। अमन-चैन से रहना चाहिए। RJD का मक़सद भी यही है।'

जातिवादी संस्थानों ने मिलकर उन्हें हर तरह से तोड़ने की कोशिश की। लेकिन लालू अभी भी टूट नहीं रहे हैं। पूरे परिवार पर केस, खुद जेल में, स्वास्थ्य व्यवस्था दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है मगर वह झुकने को तैयार नहीं हैं। लालू यादव जी के व्यक्तित्व पर लेखक रवि यादव जी की लिखी हुई यह पंक्तियाँ क्या खूब जंचती हैं :

''जाकर हवा जरा तू कहना दिल्ली के दरबारों से,
नहीं डरा है, नहीं डरेगा, लालू इन सरकारों से''

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