भोपाल। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण दिए जाने की कानूनी लड़ाई एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गई है। मंगलवार को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चांडुरकर के समक्ष हुई। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को तय की है, जब छत्तीसगढ़ के समान प्रकरणों के साथ मध्यप्रदेश के केस भी सुने जाएंगे।
यह मामला तब शुरू हुआ जब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 4 मई 2022 को अंतरिम आदेश देते हुए ओबीसी आरक्षण को 14% तक सीमित कर दिया था। इसके बाद से प्रदेश में चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर रोक जैसी स्थिति बन गई। अब राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है कि हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगाई जाए, जिससे कि 27% आरक्षण को लागू किया जा सके।
सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) से चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों की ओर से कोर्ट में याचिका लगाकर मांग की गई कि 13% पद जो "होल्ड" पर हैं, उन्हें जल्द से जल्द "अनहोल्ड" किया जाए। अभ्यर्थियों के वकील वरुण ठाकुर ने बताया कि राज्य सरकार ने 22 सितंबर 2022 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें होल्ड किए गए पदों को लेकर अस्पष्टता थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि इस नोटिफिकेशन को किस आधार पर जारी किया गया था और इसे क्रियान्वयन से किसने रोका।
इस पर सरकार के वकीलों ने स्वीकार किया कि वह भी चाहते हैं कि 27% आरक्षण को लागू किया जाए और 13% होल्ड किए गए पदों को बहाल किया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "हमने आपको रोका कब है?"
मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में विधानसभा में विधेयक पारित कर ओबीसी को 27% आरक्षण देने का प्रावधान किया था। इसके तहत एसटी को 20%, एससी को 16%, ओबीसी को 27% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिया गया था। यानी कुल आरक्षण सीमा 73% तक पहुंच गई थी। इसके खिलाफ शिवम गौतम नाम के एक अभ्यर्थी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर कोर्ट ने 4 मई 2022 को क्रियान्वयन आदेश पर स्टे लगा दिया।
अब राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर केस 7/2025 के तहत इस स्टे को हटाने की मांग की है, ताकि ओबीसी आरक्षण को पूर्ण रूप से लागू किया जा सके। अभी तक इस मामले में 70 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी हैं।
मध्यप्रदेश के याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां दिसंबर 2022 में सरकार ने ओबीसी को 27%, एसटी को 32%, एससी को 13% और ईडब्ल्यूएस को 4% आरक्षण दिया है। जब इस पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई, तो सुप्रीम कोर्ट से स्थगन आदेश मिला और वहां आरक्षण व्यवस्था अब भी लागू है। सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि यह मामला संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रक्रिया से भी जुड़ा है, जिससे आरक्षण को न्यायिक समीक्षा से बचाया जा सके।
राज्य सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि मध्यप्रदेश की कुल आबादी में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी 48% है, लेकिन कोर्ट के समक्ष यह आंकड़ा अब तक प्रमाणित नहीं किया जा सका है। यही वजह रही कि 2019 और 2022 में हाईकोर्ट ने इस आधार पर आरक्षण पर रोक लगा दी। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर ओबीसी की जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अब तक ठोस पहल नहीं हो पाई।
ओबीसी आरक्षण विवाद का सबसे बड़ा असर भर्ती प्रक्रियाओं पर पड़ा है। वर्ष 2019 से अब तक 35 से अधिक भर्तियां रुकी पड़ी हैं। सरकार हर परीक्षा में 13% पद होल्ड कर रही है और सिर्फ 14% पर रिजल्ट घोषित कर रही है। इससे करीब 8 लाख से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। इनमें से लगभग 3.2 लाख चयनित उम्मीदवारों के रिजल्ट होल्ड पर हैं और वे नियुक्ति के इंतजार में हैं।
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