समलैंगिक विवाह को मान्यता न मिलने पर निराशा और विरोध, समुदाय ने कही ये बातें

कई ऐसे जोड़े थे जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार कर रहे थे और अपने पार्टनर के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए तैयार थे।
समलैंगिक विवाह को मान्यता न मिलने पर निराशा और विरोध, समुदाय ने कही ये बातें
फोटो- सुमित कुमार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता न देने से समलैंगिक संबंधों में रहने वालों की निराशा और विरोध सामने आ रहा है। हाल ही में भारत की स्टार स्प्रिंटर दुती चंद ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार पर निराशा व्यक्त की है। 2019 में, दुती समलैंगिक के रूप में सामने आईं, समलैंगिक संबंधों का खुलासा करने वाली पहली भारतीय एथलीट थीं। हालांकि दूती चंद अब कोर्ट के फैसले के कारण अपनी शादी के प्लान को रद्द करने वाली हैं। इस इस फैसले के बाद दूती ने कहा कि मैं अपनी पार्टनर से मोनालिसा से शादी करने की योजना बना रखी थी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, "मैं अपनी पार्टनर मोनालिसा से शादी करने की योजना बना रखी थी, कोर्ट के फैसले ने सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया है। मैं मोनालिसा के साथ पांच साल से हूं। हम एक साथ खुश हैं और वयस्कों के रूप में, हमें अपने फैसले खुद लेने का पूरा अधिकार है। हम आशा करते है कि संसद समलैंगिक विवाह को अनुमति देने वाला कानून पारित करेगी।"

"सुप्रीम कोर्ट ने समान-लिंग वाले व्यक्तियों को एक साथ रहने से नहीं रोका है। चूंकि देश में समान-लिंग वाले व्यक्तियों के बीच विवाह के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया।" चंद ने कहा, "हम आशावादी हैं कि केंद्र सरकार और संसद निश्चित रूप से मामले पर विचार करेगी और भविष्य में समलैंगिक व्यक्तियों के बीच विवाह के लिए उचित कानून बनाएगी।शहरी-ग्रामीण, उच्च-निम्न, जाति, पंथ या धर्म के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए। यह मानवता की समस्या है और सभी को जीवन में उचित अधिकार मिलना चाहिए"।

समलैंगिक विवाह(Same Sex Marriage) को कानूनी दर्जा मिलने की आशा पर दुती ने कहा, "क्या भारत में विधवा विवाह का ऐसा कोई प्रावधान था? एक दिन देश में समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जाएगी।"

वहीं दुती के रिश्ते का विरोध करने वाले उनके परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कुछ अन्य लोगों ने संसद से हस्तक्षेप करने का आह्वान किया। ओडिशा के केंद्रपाड़ा में एक अधिकार कार्यकर्ता अमरबर बिस्वाल ने कानून में संशोधन की मांग की है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954, विषमलैंगिक विवाह को मान्यता देते हैं, लेकिन एक लड़की दूसरी लड़की के साथ रह सकती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में धारा 377 को रद्द कर दिया है और पुलिस उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकती है।

गे कपल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने की सगाई

समलैंगिक शादी(Same Sex Marriage) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद एक गे कपल ने SC परिसर के सामने ही सगाई कर डाली। इस सगाई की तस्वीर भी सामने आई है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस फैसले के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट के ही वकील उत्कर्ष सक्सेना ने अपने साथी अनन्य कोटिया से सुप्रीम कोर्ट के सामने खड़े होकर सगाई कर ली। इसकी तस्वीर शेयर करते हुए अनन्या कोटिया ने एक्स पर लिखा, "कल दुख हुआ। आज उत्कर्ष सक्सेना और मैं उस अदालत में वापस गए, जिसने हमारे अधिकारों को अस्वीकार कर दिया था और अंगूठियों का आदान-प्रदान किया। हम अपनी लड़ी जारी रखेंगे।"

कौन हैं उत्कर्ष सक्सेना?

अपने समलैंगिक अनन्य कोटिया से सगाई करने वाले उत्कर्ष सक्सेना सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं। वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स में PHD के दौरान उनकी अनन्य से मुलाकात हुई थी। दोस्ती धीरे-धीरे प्यार के रिश्ते में बदला और दोनों ने साथ रहने का फैसला कर लिया है। "हम दोनों का रिश्ता तब बना, जब देश में समलैंगिकता अपराध था, लेकिन हमारा रिश्ता रोमांटिक कपल जैसा है। हम एक दूसरे प्यार करते हैं। हम दिल्ली के हंसराज कॉलेज में साथ पढ़े। हम एक दूसरे को अपना चुके हैं, दुनिया को भी हमें अपनाना होगा। जैसे हैं, वैसे ही अपनाना होगा", उन्होंने कहा।

अपने रिश्ते को मान्यता दिलाकर रहेंगे

वहीं अनन्य कोटिया ने कहा कि हमारे लिए दुनिया के सामने अपने रिश्ते को स्वीकार करना आसान नहीं था। काफी समय तक हमने इस रिश्ते को बारे में किसी को नहीं बताया। उत्कर्ष और मैं लोगों को यही बताते थे कि हम बेस्ट फ्रेंड हैं, क्योंकि हमें नहीं पता था कि हमारा रिश्ता कितना सही है? यह कानूनी रूप से मान्य है या नहीं। अगर हम शादी कर लें तो लोगों की प्रतिक्रिया क्या रहेगा? इस बीच देश में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता देने की मांग उठी तो हम भी उस लड़ाई में शामिल हो गए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हमने शादी फाइनल की और अब हम अपने रिश्ते को मान्यता दिलाकर रहेंगे।

स्पेशल मैरिज एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक समुदाय को क्यों नहीं किया शामिल!

सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैसेज एक एक्ट के तहत आखिर क्यों होमोसेक्सुअल कपल को शामिल नहीं किया। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने आधार गिनवाए। सुप्रीम कोर्ट ने शादी को मान्यता देने से इनकार करते हुए जजमेंट में लिखा है कि आखिर क्यों शादी को मानता नहीं दी जा सकती।

होंगी कई जटिलताएं

चीफ जस्टिस डे य चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि, स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 21 के प्रावधान पर्सनल लॉ और नॉन पर्सनल लॉ सेलिंग की बात करता है। यह उत्तराधिकार से संबंधित है। और यह सब मुद्दे को बेहद जटिल बनाता है। जस्टिस एस के कॉल ने जजमेंट पर लिखा है, की स्पेशल मैरिज एक्ट से तमाम कानून और रेगुलेशन लिंक और ऐसे में संबंधित जो तमाम कानून है, उसे पर स्पेशल मैरिज एक्ट व्यापक असर डालेगा।

दशकों पीछे चले जाएंगे

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में प्रावधान है, कि वह अलग-अलग धर्म जाति और समुदाय के लोगों को शादी की इजाजत देता है। अगर होमोसेक्सुअल के मध्य नजर स्पेशल मैरिज एक्ट के कार्य कर दिया जाए, तो यह हमें स्वतंत्रता से पहले के समय में धकेल देगा। उसे वक्त अलग-अलग जातियों धर्म के लोग शादी नहीं कर सकते थे।

अलग तरह की शादी का तरीका

जस्टिस एस के कौल ने फैसले में लिखा है कि, स्पेशल मैरिज एक्ट के अलग तरह से शादी का तरीका है। यह भारत के लोगों के लिए उपलब्ध है। और जो लोग भी सेकुलर दायरे में रहते हैं। शादी करना चाहते हैं, उनकी शादी एक्ट तहत होती है और रजिस्टर्ड भी होती है।

विधायिका में होगी दखलंदाजी

चीफ जस्टिस ने अपनी फैसले में है अभी तर्क दिया कि जो भी प्रावधान स्पेशल मैरिज एक्ट में दिया गया है। और उससे संबंधित जो भी कानून है, और उसकी जो भी शब्दावली है। अगर को उसका परीक्षण करें, तो यह विधायिका के बारे में उसने जैसा होगा।

विधायिका संसाधनों से लैस

स्पेशल मैरिज एक्ट में के जो भी प्रावधान है। उसको देखना विधायिका का काम है। संसद के पास व्यापक स्रोत है, जो ऐसी चीजों को देख सकता है। जुडिशल रिव्यू का जो अधिकार कोर्ट को है। उसका बेहद सावधानी से इस्तेमाल होना चाहिए। उसे विधायिका का काम नहीं करना चाहिए। हालांकि, जस्टिस कॉलोनी कहा है की स्पेशल मैरिज एक्ट गैर संवैधानिक है। और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट ने अपने फैसले में कहा कि, स्पेशल मैरिज एक्ट गैर संवैधानिक है। एक्ट यही है कि शादी की व्यवस्था हो 1954 में जब कानून पास किया गया था, तो वह हेट्रोसेक्सुअल कपल के लिए पास किया गया था। साथ ही कहा गया कि कपल अलग-अलग जाति और धर्म के हो सकते हैं। उस वक्त कोई आईडिया नहीं था कि इसमें होमोसेक्सुअल को शामिल किया जाएगा। क्योंकि यह धारा 377 के तहत गैर कानूनी था। इस तरह एक्ट सेम सेक्स मैरिज को शामिल नहीं करता है।

एक्ट में आदमी औरत के गहने मायने

जस्टिस भट्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को जेडर न्यूट्रल जटिल ताई शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा की पत्नी पति आदमी और औरत शब्द का इस्तेमाल शादी के कानून में किया गया है। यौन हिंसा प्रताड़ना मामले में भी इन शब्दों का इस्तेमाल हुआ है घरेलू हिंसा में तो महिलाओं को पेरेंट्स तक से प्रोटेक्शन मिला है।

बेनिफिट बेकार हो जाएंगे

स्पेशल मैरिज एक्ट में धारा 36 और 27 में महिलाओं को कुछ अधिकार दिए गए हैं। जिसमें उन्हें गुजारा भत्ता और मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है। अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को जेंडर न्यूट्रल कर दिया जाए, तो महिलाओं के बेनिफिट के लिए जो प्रावधान किया गया है वह बेकार हो जाएंगे।

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