भारतः 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को क्या दो महीने में जारी हो पाएंगे राशन कार्ड?

साल 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं पर एक स्वत: संज्ञान याचिका पर आदेश देते हुए अदालत ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ईश्रम पोर्टल में पंजीकृत लेकिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) से बाहर रखे गए लगभग 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है.
सांकेतिक फोटो.
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नई दिल्ली/लखनऊ: छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के मूल निवासी पूनाराम साहू प्रवासी श्रमिक है. वे लखनऊ के एक विकसित हो रहे रिहायशी इलाके में निर्माणाधीन भवनों में राजमिस्त्री का काम कर अपनी आजीविका चलाते है और वहीं खाली प्लॉट में तिरपाल टांग कर अपने छह सदस्यीय परिवार के साथ रहते है. नियमित दिहाड़ी नहीं मिलने से कई बार उनके घर में एक समय ही चूल्हा जला।

अक्सर ऐसा होने पर उन्होंने अपना राशन कार्ड बनवाने की कोशिश की, ताकि सरकार द्वारा मिल रहे निःशुल्क राशन ले सकें. लेकिन करीब 10 महीने तक कोटेदार से लेकर रसद विभाग के चक्कर लगाने के बाद भी उनका राशन कार्ड नहीं बन पाया।

ये सिर्फ पूनाराम की परेशानी नहीं है. छत्तीसगढ़ और झारखंड से पलायन कर मेहनत मजदूरी करने लखनऊ आए ऐसे सैकड़ों परिवारों की चुनौती है। अब सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से श्रमिकों में एक उम्मीद जगी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ईश्रम पोर्टल में पंजीकृत लेकिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) से बाहर रखे गए लगभग 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकों के एक समूह द्वारा यह बताए जाने के बाद कि कुल 28.8 करोड़ मजदूर पोर्टल पर पंजीकृत हैं, लगभग 8 करोड़ के पास एनएफएसए के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए राशन कार्ड नहीं हैं.

यह आदेश 2020 से अदालत में लंबित प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर एक स्वत: संज्ञान याचिका में पारित किया गया है, जब कोविड महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने उनमें से कई श्रमिक शहरों में आय या भोजन की कमी के कारण गांवों में वापस चले गए थे.

द मूकनायक को उत्तर प्रदेश में सक्रिय दिहाड़ी मजदूर संगठन के कन्वीनर गुरूप्रसाद ने बताया कि लखनऊ व देश के अन्य शहरों में काम कर रहे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की यह आम समस्या है। ऐसे श्रमिक परिवारों के उनके मूल गांव और शहरों में तो राशन कार्ड है, लेकिन जिस शहर में वे रोजी-रोटी कमाते है वहां उनको एनएफएस के तहत राशन नहीं मिलता। वन नेशन वन राशन कार्ड योजना की यह व्यवहारिक समस्या है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी स्थानीय संबंधित विभागों के पास अभी तक ऐसी कोई गाइडलाइन नहीं आई है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रवासी श्रमिकों को किस तरीके से मदद पहुंचानी है।

श्रमिकों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी मजदूरों को राशन कार्ड प्रदान किए जाएं. अदालत ने कहा कि यह निर्देश केंद्र को 20 अप्रैल, 2023 को जारी किया गया था और लगभग एक साल बाद भी इसका कोई अनुपालन नहीं हुआ है.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि केंद्र अदालत के आदेश का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है और संकेत दिया कि सरकार एनएफएसए लाभार्थियों के डेटा को ई-श्रम पोर्टल में सूचीबद्ध लोगों के साथ मिलान करने की प्रक्रिया में है.

अदालत ने भाटी से कहा कि यह ई-केवाईसी प्रक्रिया लाभार्थियों को राशन कार्ड के वितरण को नहीं रोक सकती है और चूंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली राज्यों के अंतर्गत आती है, इसलिए पिछले साल अप्रैल के अपने आदेश का पालन करने के लिए दो महीने की अवधि दी गई.

अदालत ने कहा कि निर्देश संकलित होने से पहले ई-केवाईसी जैसी बाधाएं डालकर अनावश्यक देरी की जा रही थी. एनएफएसए लाभार्थियों के साथ ईश्रम पंजीकरणकर्ताओं के मिलान का कार्य पहले ही किया जा चुका है और उस आधार पर यह पाया गया है कि लगभग 8 करोड़ लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं और इसलिए उन्हें अधिनियम के तहत मासिक खाद्यान्न का लाभ नहीं मिलता है.

स्वत: संज्ञान कार्यवाही में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों के एक समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड जारी नहीं किए जाते हैं क्योंकि एनएफएसए ग्रामीण क्षेत्रों में राशन कार्डों पर 75% और शहरी क्षेत्रों में 50% की सीमा प्रदान करता है, जो पहले ही ख़त्म हो चुका है. शीर्ष अदालत ने तब राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोटा की परवाह किए बिना राशन कार्ड प्रदान करने का निर्देश दिया था.

याचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि एनएफएसए के तहत राशन पाने वाले व्यक्तियों का कवरेज नवीनतम जनगणना के आधार पर निर्धारित किया जाना है. चूंकि 2021 की जनगणना नहीं की गई है और जनसंख्या में वृद्धि होने के बावजूद कवरेज 2011 की जनगणना के आधार पर जारी है- जिससे 10 करोड़ से अधिक लोग खाद्य सुरक्षा जाल के दायरे से बाहर हो गए हैं.

इसमें कहा गया है कि चूंकि कवरेज नहीं बढ़ाया गया है, अधिकांश राज्यों ने एनएफएसए के तहत राशन कार्ड लाभार्थियों का कोटा समाप्त कर दिया है और नए कार्ड जारी करने में असमर्थ हैं.

भूषण ने अदालत को यह भी बताया कि एनएफएसए के तहत वर्तमान में 81.3 करोड़ लाभार्थी हैं, जिनकी गणना 2011 की जनगणना के अनुसार की गई है. उन्होंने कहा कि तब से एक दशक बीत चुका है, यदि जनगणना का आंकड़ा अपडेट नहीं किया गया तो लाभार्थियों का एक बड़ा हिस्सा खाद्य सुरक्षा दायरे से बाहर रहेगा. कोर्ट इस मामले पर अगले महीने सुनवाई करेगा.

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