संविधान माह विशेष: फ्लाईओवर के नीचे प्रवासी श्रमिकों का बसेरा, मूलभूत सुविधाओं से वंचित-ग्राउंड रिपोर्ट

संविधान देता है गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार, खुले में रहकर श्रमिक परिवारों की महिला और बच्चों की गरिमा होती तार-तार।
सुभाष नगर आरओबी पुली के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं लोग.
सुभाष नगर आरओबी पुली के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं लोग.फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक

भोपाल। संविधान का अनुच्छेद-21 देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है, इसमें भोजन व अन्य मूलभूत सुविधाएं भी शामिल हैं, लेकिन प्रवासी मजदूरों को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। शहर में रोजगार की तलाश में पहुँचे इन मजदूरों को खुले में आसमान के नीचे जीवन यापन करना पड़ता है, जिसके चलते श्रमिक परिवारों की महिलाओं और बच्चों की गरिमा रोज तार-तार होती है। द मूकनायक ने मजदूरों से मिलकर उनकी परेशानी जानने की कोशिश की। पेश है यह खास रिपोर्ट।

टीम के सदस्य दोपहर के समय भोपाल के सुभाष नगर रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी) पहुँचे। यहाँ प्रवासी मजदूर पुल के नीचे अस्थाई तौर पर रह रहे हैं। एक तरफ नए पुल का निर्माण शहर के विकास को दर्शाता है। वहीं इनके नीचे रह रहे मजदूर बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी की चुगली करते नजर आते हैं।

जितेंद्र कुमार सागर जिले के एक छोटे से गाँव कदमा के निवासी है। यह अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ रोजगार की तलाश में भोपाल पहुँचे है। इनकी हालात यह साफ बयान कर रहीं है कि आखिर उन्हें 300 किलोमीटर अपने घर से दूर किन मजबूरियों में यहाँ आना पड़ा होगा। जितेंद्र ने कहा, ”गाँव में काम नहीं मिला तो भोपाल चले आए।” उन्हें सागर जिले में अन्य कहीं भी रोजगार नहीं मिला। उनके पास श्रमिक कार्ड नहीं है।

वहीं जितेंद्र की पत्नी सपना ने बताया कि रात के समय ठंड बढ़ जाती है। आग जला कर हम ठंड से बचते हैं। बच्चे छोटे हैं, अगर गांव में रोजगार मिलता तो शायद यहां आना नहीं पड़ता। गरीबी और बेरोजगारी ने हमें गाँव से पलायन करने को मजबूर कर दिया। सपना ने कहा, ”गाँव में न जमीन है न मकान। खाने तक की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए गांव छोड़ना पड़ा।”

जितेंद्र कुमार अपने परिवार के साथ सुभाष नगर आरओबी पुली के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं.
जितेंद्र कुमार अपने परिवार के साथ सुभाष नगर आरओबी पुली के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं.फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक

सपना ने आगे बताया पुल के नीचे रह रहे हैं। सुरक्षा का भी इंतजाम नहीं है। दो बच्चे साथ में है। हमेशा डर लगा रहता है। हम रातभर डर के कारण जागते हैं। बीच-बीच कभी आँख लग भी जाए तो अचानक नींद खुल जाती है। पहले बच्चों को देखते हैं। फिर इस थोड़े से सामान को।

दिन में मेरे पति आस-पास की कॉलोनियों में बर्तन बेचने जाते हैं। साईकिल भी नहीं है। बर्तन की टोकरी सर पर लेकर फेरी लगाते है। कई किलोमीटर चक्कर के बाद शाम को हाथ में कमाई के मुश्किल दो सौ-तीन सौ रुपए ही आ रहे हैं।

न्यूनतम मजदूरी भर नहीं होती कमाई

मध्य प्रदेश सरकार ने श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी में 1 अक्टूबर 2023 को संशोधन किया है। अब श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 371.15 रुपए प्रतिदिन कर दी गई है। श्रम विभाग के आयुक्त द्वारा जारी आदेश 31 मार्च 2014 तक प्रभावी रहेगा।

बच्चों की शिक्षा और पोषण नहीं

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी की मूल निवासी काजल रोजगार के लिए यहां आई हैं। करीब 2 महीनों से तीन बच्चों के साथ पुल के नीचे रह रही हैं। पति मजदूरी पर गए है। शाम को वापस आते हैं। रोज काम मिलना जरूरी नहीं है। मण्डियों में चले जाते हैं। वहां कुछ न कुछ काम मिल जाता है। दिन में तीन सौ रुपए मजदूरी मिलती है, परिवार के गुजारे में बहुत परेशानी होती है। परिवार का श्रमिक या मजदूरों के लिए संचालित योजनाओं के अंतर्गत कोई दस्तावेज नहीं बना हैं।

पुल के नीचे रह रहे परिवारों के बच्चे खेलते हुए.
पुल के नीचे रह रहे परिवारों के बच्चे खेलते हुए.फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक

सुभाष नगर आरओबी में ऐसे आधे दर्जन परिवार थे जो सिर्फ रोजगार की तलाश में यहां पहुँचे हैं। इन लोगों के पास गुजर-बसर करने को ठीक से किसी तरह के संसाधन नहीं है। इसके साथ प्रशासन से भी किसी तरह की राहत नहीं मिल रही। ज्यादातर प्रवासी मजदूरों के पास श्रमिक कार्ड नहीं है। यह कार्ड ग्रामीण इलाकों में ग्राम पंचायत द्वारा बनवाए जाते हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में वार्ड कार्यालयों में आवेदन लिए जाते हैं। जिन मजदूरों के पास श्रमिक कार्ड नहीं है। वह सरकार द्वारा श्रमिकों के लिए संचालित योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते हैं।

यह योजनाएं हैं संचालित

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिक और उनके परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत करने और शिक्षा से जोड़ने के लिए आधा दर्जन योजनाएं संचालित हैं। श्रम विभाग द्वारा प्रसूति सहायता योजना, चिकित्सा सहायता योजना, विवाह सहायता योजना, शिक्षा हेतु प्रोत्साहन राशि योजना, मेधावी छात्र-छात्राओं को नकद पुरस्कार योजना, श्रमिक की मृत्यु की दशा में अंत्येष्टि सहायता योजना संचालित है। इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए श्रम विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन स्वीकार किए जाते हैं। लेकिन इन योजनाओं का लाभ सिर्फ श्रमिक कार्ड धारकों को ही मिलता है।

जनकल्याण पोर्टल संबल द्वारा प्रवासी मजदूरों के पंजीयन का काम ग्राम पंचायत एवं शहरी क्षेत्र में वार्ड कार्यालय को दिया गया है। प्रदेश के ऐसे मजदूर जो राज्य के अन्य शहरों एवं दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने जाते हैं। उनके पंजीयन किए जाते है ताकि उन्हें प्रदेश में संचालित योजनाओं का लाभ मिल सके। इसके बावजूद भी कई प्रवासी मजदूरों के न तो श्रम कार्ड बने है न ही उनका प्रवासी श्रमिक कार्ड का पंजीयन हुआ है।

प्रवासी मजदूरों के लिए नहीं है शेल्टर

प्रवासी मजदूरों को रहने के लिए सरकार ने शेल्टर या किसी अन्य तरह की व्यवस्था नहीं की है, जिसके चलते यह लोग ब्रिज के नीचे ही रहते हैं। कई मजदूर अपना ठिकाना मैदान पर बनाते है, जबकि किसी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूर तरपाल या खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं।

भारतीय संविधान एक आदर्श संविधान है। इसमें नागरिकों के हितार्थ ऐसे सभी प्रावधान किए गए हैं, जिनसे उनके हितों की रक्षा हो, उनकी स्वतन्त्रता और समानता सुनिश्चित हो तथा उनको विकास और प्रगति के अवसर मिलें।

संविधान की प्रस्तावना, जनता को न्याय का विश्वास दिलाती है जो लोकतन्त्र की आधारशिला है। सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय स्थापित करना हमारे संविधान का उद्देश्य है। सामाजिक न्याय से हमारा तात्पर्य है कि समाज में असमानताओं को दूर किया जाए तथा सामाजिक समानता स्थापित की जाए। आर्थिक न्याय से हमारा तात्पर्य है कि आर्थिक असमानता को समाप्त किया जाए तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाए। राजनीतिक न्याय से हमारा तात्पर्य है कि प्रत्येक को राजनीति में प्रवेश करने के समान अवसर प्रदान करें। सबको समान मत का अधिकार दिया जाए। लेकिन पलायन कर रोजगार की तलाश में भटक रहे गरीब मजदूरों को किसी भी स्तर पर राहत और उनके संवैधानिक अधिकारों का प्राप्त होना दिखाई नहीं दे रहा है।

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की केंद्रीय कार्यकारणी सदस्य संध्या शैली ने बताया कि मजदूरों के लिए किए जा रहे काम सिर्फ कागजों तक सीमित है। यह बात सही है कि हजारों मजदूरों के श्रमिक कार्ड नहीं बने है। हमारे संगठन ने दो साल एक सर्वे मजदूरों के लिए किया था। इसमें भी निकल कर सामने आया था कि प्रवासी मजदूरों के परिवारों के स्वास्थ्य, शिक्षा, उनके आवास की व्यवस्था और अन्य जरूरी सुविधाएं कॉन्ट्रेक्टर नहीं करते हैं। जबकि एनजीटी के प्रवासी मजदूरों के सुविधाओं के लिए कॉन्ट्रैक्टर्स को मूलभूत सुविधाओं के लिए निर्देशित किया गया है। पुलों के नीचे रह रहे प्रवासी मजदूरों की जिम्मेदारी सरकार की है। उन्हें रहने के लिए शेल्टर की व्यवस्था होनी चाहिए। भोपाल में फिलहाल प्रवासी मजदूरों के लिए प्रशासन ने कोई भी शेल्टर होम नहीं बनाया है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए मध्य प्रदेश राज्य प्रवासी श्रमक आयोग के सचिव एसएस दीक्षित ने बताया कि पंचायत ग्रामीण विकास विभाग से प्रवासी मजदूरी की जानकारी मांगी गई है, जिसके लिए आयोग ने पत्र भी भेजा है। भोपाल सुभाष नगर आरओबी के नीचे रह रहे प्रवासी मजदूरों के संबंध में कोई शिकायत नहीं मिली थी। आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया है। हम जांच करवाकर नियमानुसार कार्यवाही करेंगे।

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