विश्व अस्थमा दिवस: सिर्फ बुजुर्गों को ही नहीं, बच्चों को भी सताता है ये रोग

सही जानकारी से करें इस रोग से लड़ाई
विश्व अस्थमा दिवस: सिर्फ बुजुर्गों को ही नहीं, बच्चों को भी सताता है ये रोग

पहले माना जाता था कि बढ़ती उम्र के साथ इन्सान सांस लेने में परेशानी का अनुभव करता है जो अस्थमा में परिणीत हो जाती थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अस्थमा अब कम उम्र के बच्चों को भी सताने लगा है। नन्हे बच्चों को सांस की तकलीफ होने पर अक्सर देखा जाता है कि माता पिता द्वारा पर्स या जेब में इनहेलर या रोटाहेलर जैसे हैंडी उपकरणों को हमेशा साथ रखा जाता है जो जरूरत होने पर निकाल कर बच्चे की श्वसन गति को सुचारू करने में काम में लिया जाता है।

अस्थमा को लेकर जागरूकता लाने और बचाव संबंधी उपायों का आमजन तक प्रचार के लिए 2 मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो कि फेफड़ों पर आक्रमण कर श्वसन प्रणाली को प्रभावित करती है। जिससे सांस फूलने जैसी समस्या उत्पन्न होती है।

आपको बता दें 1998 में बार्सिलोना स्पेन में 35 से ज्यादा देशों में पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया था। तब से लेकर हर साल 2 मई को वर्ल्ड अस्थमा डे मनाया जाता है। ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत में 3 करोड़ 50 लाख लोग अस्थमा से ग्रसित हैं। भारत में हर साल 1 लाख 98 हजार लोगों की मौत अस्थमा के कारण होती है। वहीं दुनिया में हर साल 4 लाख 61 हजार लोगों की मौत अस्थमा से होती है।

एक शोध रिपोर्ट के अनुसार भारत में बच्चों में अस्थमा 7.9 प्रतिशत है एवं विश्व मे अस्थमा मरीजों की संख्या 30 से 35 प्रतिशत है। वर्तमान में विश्व में हर तीसरा बच्चा किसी न किसी प्रकार के एलर्जी या अस्थमा से पीड़ित है। बच्चों में जन्म के साथ ही कई मामलों में अस्थमा या ब्रोंकाइटिस का मर्ज देखा जाता है जो धीरे-धीरे शरीर में बढ़ती इम्युनिटी पावर के साथ 10-12 वर्षों बाद सुधरने लगती है। राजस्थान में अस्थमा विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद आसिफ के अनुसार आजकल बहुत छोटे बच्चों में अस्थमा पाया जाने लगा है जिसके लिए जेनेटिक कारक, पर्यावरणीय प्रभाव जैसे धूल मिट्टी परागकण, धुंआ आदि मुख्य कारक हैं। माताओं द्वारा धूम्रपान, घरों में डस्टमाइट, पालतू जानवरों के बाल आदि से भी अस्थमा एलर्जी ट्रिगर होती है।

अस्थमा रोग होने क्या है कारण?

डॉक्टर्स के अनुसार अस्थमा हमारी सांस की नलियों की बीमारी है। जब हमारी सांस की नलियों में सूजन आ जाती है। तब सांस लेने में परेशानी होने लगती है। ये सूजन किसी भी वजह से हो सकती है जिसे हम ट्रिगर्स कहते हैं। कुछ लोगों में धूल, मोल्ड, पराग कण, पालतू जानवरों के रोएं या ठंडक के कपड़ों के कारण भी अस्थमा ट्रिगर हो सकता है। सॉयकलॉजिकल स्ट्रेस यहां तक कि वर्क स्ट्रेस भी लोगों को ट्रिगर कर सकता है। जो लोगों को सांस लेने में परेशानी का कारण बनता है। इससे अस्थमा होता है। खाना बनाने के दौरान गैस चूल्हे से निकलने वाली हानिकारक नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड गैस के कारण लोगों में अस्थमा और सांस से जुड़ी दूसरी बीमारियां होने का खतरा हो सकता है।

अस्थमा को लेकर द मूकनायक ने नई दिल्ली के डॉक्टर बी. वी. सिंह से बात की। डॉक्टर सिंह एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट हैं। वे कहते हैं कि अस्थमा किसी को भी हो सकता है। इसका एक प्रमुख कारण है प्रदूषण। प्रदूषण हमारे देश में इतना बढ़ गया है कि अस्थमा के मरीज भी बढ़ते जा रहे हैं। अस्थमा अनुवांशिक होता है। यदि माता-पिता को हो तो बच्चों को भी हो सकता है। यदि बच्चों को बचपन से अस्थमा है तो 50ः बच्चे 12 से 13 साल की उम्र तक ठीक हो जाते हैं। परंतु 50ः बच्चे पूरी जिंदगी अस्थमा की परेशानियों के साथ जीते हैं।

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डॉक्टर सिंह कहते हैं कि जहां प्रदूषण ज्यादा होता है वही अस्थमा के मरीज भी ज्यादा मिलेंगे। सावधानी के तौर पर जब भी आप बाहर निकले तो मास्क पहने। बच्चे बूढ़े सब मास्क पहने। गर्भवती महिलाओं के लिए तो मास्क पहनना अनिवार्य है।

डॉ. सिंह कहते हैं कि अस्थमा मरीज को कभी भी ठंडी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए और अपनी दवाई समय से लेनी चाहिए। यदि अस्थमा को दूर करना है तो प्रदूषण को कम करना होगा।

राजस्थान के उदयपुर स्थित आरएनटी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एमबी हॉस्पिटल में अकेले बाल चिकित्सालय में 25 से 30 मरीज औसतन हर रोज अस्थमा से जुड़ी परेशानी लेकर आते हैं। ओपीडी की संख्या में सीजनल वेरिएशन जैसे बारिश और सर्दी में मरीजों की तादाद एकदम बढ़ जाती है। ग्रीष्मकाल की तुलना में सर्दियों और बारिश में अस्थमा का प्रकोप अधिक होता है और इन सीजन में रोजाना औसतन 6 से 8 मरीज अस्थमा अटैक के कारण वार्ड या आईसीयू में एडमिट किये जाते हैं।

अस्थमा के लक्षण

भोपाल के डॉक्टर सुनील शर्मा के मुताबिक अस्थमा की शिकायत होने पर तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए डॉक्टर के अनुसार खांसी, सीने में जकड़न सांस लेने में घरघराहट, होंठ नीले पड़ना, नाखून पीले पड़ना, शरीर में थकान होना दुर्गंध भरा पसीना आना। यह लक्षण अस्थमा के संकेत हो सकते है।

यह सावधानियां रखनी जरूरी

अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसमें सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। अस्थमा से पीड़ित रोगी मरीज धूल से बचें, प्रदूषण के दौरान मास्क का इस्तेमाल करें और मौसम बदलने से पहले दवा लेना शुरू कर दें और हमेशा इन्हेलर अपने पास रखें। डॉक्टर सुनील शर्मा ने बताया कि अस्थमा के मरीज को पता होना चाहिए कि उन्हें किस चीज से एलर्जी है। आपको उन चीजों की लिस्ट बनानी होगी जो आपको ट्रिगर करती हैं। इन चीजों से दूर रहे। एनुअल फ्लू का वैक्सीन लेकर आप अस्थमा से बचाव कर सकते हैं। स्मोकिंग से बचें।

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