MP: पिता को अपना लिवर देने के लिए नाबालिग बेटी ने हाई कोर्ट में दायर की याचिका, जानिए पूरा मामला?

हाई कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा कि लिवर डोनेशन की अनुमति की प्रक्रिया क्या है? सरकारी वकील ने बताया कि मरीज जहां भर्ती है, उस अस्पताल की ओर से एक आवेदन सरकारी मेडिकल कालेज के डीन को देना होता है। अब गुरुवार को होगी अगली सुनवाई।
MP: पिता को अपना लिवर देने के लिए नाबालिग बेटी ने हाई कोर्ट में दायर की याचिका, जानिए पूरा मामला?
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भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर में एक 42 साल के पिता को नाबालिग बेटी अपना लिवर दे सकती है या नहीं इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। बता दें, पिता का लिवर फेल हो गया है और डॉक्टरों ने तत्काल लिवर ट्रांसप्लांट के लिए कहा है। मामला हाई कोर्ट में है। पहले 18 जून की तारीख लगी थी। इस दिन सुनवाई के बाद कोर्ट ने विशेष जुपिटर हॉस्पिटल से जवाब मांगा है और अब अगली सुनवाई 20 जून यानी कल होगी। कोर्ट ने इस मामले में अस्पताल से मरीज की मेडिकल रिपोर्ट मांगी है।

इस बीच पिता की तबीयत बिगड़ गई है। उन्हें आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा है। इलाज कर रहे डॉक्टर का कहना है कि लिवर ट्रांसप्लांट में ज्यादा देरी हुई तो मल्टी ऑर्गन फेलियर का खतरा है। अधिकतम अगले दस दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दौरान यदि लिवर ट्रांसप्लांट हो जाता है तो बेहतर होगा।

डॉक्टर का कहना है कि लिवर ट्रांसप्लांट करने का भी एक समय होता है। समय निकलने के बाद ट्रांसप्लांट की सक्सेस रेट कम हो जाता है। अगर मल्टी ऑर्गन फेलियर हो गया। पेशेंट बीमार होकर वेंटिलेटर पर आ गया। डायलिसिस पर आ गया। तब लिवर ट्रांसप्लांट करना भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि लिवर ट्रांसप्लांट में सिर्फ लिवर बदला जाएगा।

बीमार पिता को अपना लिवर देने के लिए नाबालिग बेटी को फिलहाल इंतजार करना होगा। मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत याचिका में मंगलवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा कि लिवर डोनेशन की अनुमति की प्रक्रिया क्या है? सरकारी वकील ने बताया कि मरीज जहां भर्ती है, उस अस्पताल की ओर से एक आवेदन सरकारी मेडिकल कालेज के डीन को देना होता है।

डीन एक समिति गठित कर मरीज और लिवर देने वाले की मेडिकल जांच करवाकर रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट तय करती है कि लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति देना है या नहीं। इस पर कोर्ट ने कहा कि निजी अस्पताल का पक्ष सुने बगैर उसे आवेदन देने के लिए आदेशित नहीं किया जा सकता। हम अस्पताल को नोटिस जारी कर देते हैं। मामले में गुरुवार को दोबारा सुनवाई होगी।

यह है पूरा मामला

दरअसल, इंदौर जिले के ग्राम बेटमा निवासी 42 वर्षीय शिवनारायण बाथम पिछले छह वर्ष से लिवर की बीमारी से पीड़ित हैं। डाक्टरों का कहना है कि लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय है। शिवनारायण की बेटी प्रीति पिता को अपना लिवर देने को तैयार है, किंतु उसकी आयु 17 वर्ष 10 माह होने से कोर्ट की अनुमति के बिना लिवर नहीं दे सकती।

उसके नाबालिग होने की वजह से डाक्टरों ने लिवर लेने से मना कर दिया। इस पर परिवार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। एडवोकेट नीलेश मनोरे के माध्यम से प्रस्तुत याचिका में मंगलवार को सुनवाई हुई। उन्होंने कोर्ट को बताया कि पिता की हालत गंभीर है। उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की सख्त आवश्यकता है। न्यायमूर्ति बीके द्विवेदी ने मामले में सुनवाई करते हुए अस्पताल को नोटिस जारी करने के आदेश दिए।

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