बाराबंकी के जंगल में निःशुल्क ऑपरेशन के लिए उदयपुर से रवाना हुआ डॉक्टर्स का दल

लगातार 44 वर्षों से निःशुल्क सेवाएं देने यूपी के बाराबंकी जा रहा है चिकित्साकर्मी दल. शिविर में अति पिछड़े इलाके के लोगों के हर्निया, हाइड्रोसिल, बच्चेदानी, पाइल्स एवं मोतियाबिंद के लगभग 3 हजार ऑपरेशन होंगे।
बाराबंकी के जंगल में निःशुल्क ऑपरेशन के लिए उदयपुर से रवाना हुआ डॉक्टर्स का दल

उदयपुर- उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के जंगल में स्थित श्रीराम वन कुटीर आश्रम हंडियाकोल में निःशुल्क शल्य चिकित्सा शिविर में सेवाएं देने के लिए उदयपुर से दो बसों में सवार होकर चिकित्सा दल बुधवार को बीएन स्कूल स्थित महाराणा भूपाल प्रतिमा के सामने से रवाना हुआ।

इस अवसर पर आरएनटी प्राचार्य डॉ विपिन माथुर, पूर्व विधानसभाध्यक्ष शांतिलाल चपलोत, समाजसेवी प्रमोद सामर, तेज सिंह बानसी, पंकज शर्मा सहित कई लोग उपस्थित थे।  
दल के संयोजक डॉ जेके छापरवाल ने बताया कि रामदास महाराज की प्रेरणा से प्रारम्भ हुए शिविर में लगातार 44 वें वर्ष उदयपुर से चिकित्सा दल अपनी सेवाएं देने जा रहा है।

दल में उदयपुर, चित्तौड़गढ़, कूरज, कपासन सहित आसपास के इलाके के 30 चिकित्सक, 30 नर्सिंग स्टाफ, 30 वार्ड ब्वाय-गर्ल एवं सहयोगी स्टाफ शामिल हैं। दो बसों के अलावा कुछ सदस्य ट्रेन से रवाना हुए। शिविर में बाराबंकी के अति पिछड़े इलाके के लोगों के हर्निया, हाइड्रोसिल, बच्चेदानी, पाइल्स एवं मोतियाबिंद के लगभग 3 हजार ऑपरेशन होंगे।

दल के संयोजक डॉ जेके छापरवाल बताते हैं कि 1982 में एक संत रामदास महाराज उदयपुर आए थे। ओसवाल भवन, आरएनटी कॉलेज आदि स्थानों पर उनके प्रवचन हुए थे। इसी दौरान चम्पालाल धर्मशाला में एक विशेष बैठक में रामदास महाराज ने उदयपुर के चिकित्साकर्मी व नर्सिंगकर्मियों से आग्रह किया था कि वे गांवों में चिकित्सा सेवाओं से वंचित लोगों को अपनी सेवाएं दें। उस बैठक में उदयपुर के उस समय के नामी चिकित्सक एवं नर्सिंग सेवा से जुड़े लोग शामिल थे। डॉ छापरवाल बताते हैं कि उस वक्त वे 27 वर्ष वर्ष के थे और आज 72 वर्ष के हो गए हैं। पिछले 44 सालों से लगातार प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले शल्य चिकित्सा शिविर में भाग लेने जा रहे हैं और पीड़ित मानवता की सेवा कर एक अलग ही संतुष्टि का अनुभव करते हैं।

कोरोना भी नहीं तोड़ सका सिलसिला

बाराबंकी रेल्वे स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है श्रीराम वन कुटीर आश्रम। यहां आसपास कोई प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी नहीं है। सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित इस इलाके में शिविर के दौरान आधुनिक मशीनों से हर्निया, हाइड्रोसील, बच्चेदानी, पाइल्स व मोतियाबिंद जैसे ऑपरेशन किये जाते हैं। चिकित्सा दल अपने साथ उपकरण और दवाइयां लेकर जाता है जिससे यह शल्य क्रियाएं की जाती हैं। रोगी व आयोजकों के बीच प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कोई व्यावसायिक व्यवहार नहीं होता। दल के सदस्यों में हर उम्र वर्ग के लोग शामिल हैं जो शिविर के दौरान घास पर बिछे टाट पर अपना बिस्तर लगाकर सोते हैं।


डॉ छापरवाल बताते हैं कि कोरोना महामारी भी सेवाभावी चिकित्साकर्मियों के हौंसले नहीं तोड़ पाई। कोरोना के दौर में विशेष अनुमति लेकर दल उदयपुर से बाराबंकी गया और वहां पर कोरोना से ग्रसित रोगियों की सेवा की। 44 वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ एक सद्प्रयास आज अभियान का रूप ले चुका है। कई सालों तक रोगियों को ऑपरेशन के लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। लेकिन अब लखनऊ के डॉ नीलाभ और डॉ अर्चना अग्रवाल वहां पर नियमित अंतराल पर शल्य चिकित्सा शिविर लगाते हैं। इस कारण अब स्थानीय लोगों को ऑपरेशन के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता।

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