उदयपुर- राजस्थान के उदयपुर जिले में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां 55 वर्षीय महिला रेखा कालबेलिया ने हाल में अपने 17वें बच्चे को जन्म दिया। रेखा ने पहले 16 बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन इनमें से चार बेटे और एक बेटी जन्म के तुरंत बाद मर गए। उनके जीवित बच्चों में से पांच शादीशुदा हैं और उनके खुद के बच्चे भी हैं। इस घटना ने न केवल परिवार की आर्थिक और सामाजिक मुश्किलों को उजागर किया है, बल्कि राजस्थान सरकार की परिवार नियोजन और नसबंदी योजनाओं की प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जनमंगल दंपति परिवार नियोजन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाते हैं। आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर नवविवाहित दंपतियों को गर्भनिरोधक पर सलाह देती हैं, गर्भवती महिलाओं की ट्रैकिंग करती हैं, और प्रसव के बाद पीपीआईयूसीडी जैसे तरीके अपनाने को प्रोत्साहित करती हैं। वे गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोम, आईयूडी और इंजेक्टेबल जैसी विधियां वितरित करती हैं। मां-बच्चा स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
फिर भी, उदयपुर जैसी घटना से जाहिर है कि ये योजनाएं ग्रामीण और गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा की कमी, आर्थिक दबाव और जागरूकता अभाव के कारण लोग दो बच्चों की नीति नहीं अपनाते। सरकार को जमीनी स्तर पर सख्ती बरतने और कार्यकर्ताओं की जवाबदेही बढ़ाने की जरूरत है, वरना ये योजनाएं सिर्फ कागजी साबित होती रहेंगी।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में रेखा की बेटी शीला कालबेलिया ने परिवार की परेशानियों का जिक्र करते हुए कहा, "हम सभी को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। हमारी मां के इतने बच्चे होने की बात सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है।" परिवार कबाड़ बीनकर गुजारा करता है और अपनी कोई जमीन या घर नहीं होने के कारण लगातार संघर्ष कर रहा है। रेखा के पति कावरा कलबेलिया ने बताया, "बच्चों को पालने के लिए मुझे 20 प्रतिशत ब्याज पर साहूकारों से उधार लेना पड़ा। लाखों रुपये चुकता कर चुका हूं, लेकिन ब्याज अभी भी बाकी है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर स्वीकृत हुआ था, लेकिन जमीन हमारे नाम पर न होने से हम बेघर हैं। खाना, शादी और शिक्षा के लिए संसाधन नहीं हैं, ये समस्याएं हमें हर रोज सताती हैं।"
झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्त्री रोग विशेषज्ञ रोशन दारंगी ने खुलासा किया कि परिवार ने अस्पताल में रेखा की मेडिकल हिस्ट्री गलत बताई। "जब रेखा को भर्ती किया गया, तो परिवार ने कहा कि यह उनकी चौथी संतान है। बाद में पता चला कि यह उनका 17वां बच्चा है।" इस झूठ की वजह से चिकित्सा टीम को शुरुआत में सही इलाज में दिक्कत हुई, हालांकि बच्चे और मां दोनों अब स्वस्थ हैं।
यह घटना राजस्थान सरकार की परिवार नियोजन योजनाओं की असफलता को साफतौर पर दर्शाती है। राज्य में चिकित्सा विभाग, आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जनमंगल दंपति सभी परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। राजस्थान में जनमंगल कार्यक्रम 1992 में शुरू किया गया था| इस कार्यक्रम को शुरू करने का उद्देश्य दम्पतियों को परिवार कल्याण को अन्तराल साधनों का उपयोग को बढ़ावा देना तथा इन साधनों को उपलब्ध करवाना है.
इनका मुख्य काम लोगों को दो बच्चों के बाद नसबंदी या स्थायी गर्भनिरोधक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। प्रचार-प्रसार के माध्यम से जन्म अंतराल कार्यक्रम, नसबंदी प्रोत्साहन राशि और बीमा योजनाओं का प्रचार किया जाता है, लेकिन ऐसी घटनाएं सामने आने से लगता है कि ये सभी योजनाएं सिर्फ कागजों पर हैं और जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं।
राजस्थान सरकार की परिवार नियोजन और नसबंदी योजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी से पता चलता है कि राज्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा ये कार्यक्रम चलाए जाते हैं। मुख्य योजनाओं में शामिल हैं:
जनम अंतराल कार्यक्रम: यह कार्यक्रम जन्म के बीच उचित अंतर रखने पर जोर देता है, जिससे महिलाओं और बच्चों की सेहत सुधरे और परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो। इसमें जागरूकता अभियान, स्वास्थ्य शिविर और परिवार नियोजन परामर्श शामिल हैं।
स्थायी गर्भनिरोधक विधियां (नसबंदी): पुरुष नसबंदी (वासेक्टॉमी) के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों में Rs. 1100 की प्रोत्साहन राशि दी जाती है, जबकि महिला नसबंदी (ट्यूबल लिगेशन) के लिए Rs. 600। निजी स्वास्थ्य सुविधाओं और एनजीओ को पुरुष नसबंदी के लिए Rs. 1300 और महिला के लिए Rs. 1350 प्रति केस मिलते हैं। प्रेरक (मोटिवेटर) को पुरुष नसबंदी के लिए Rs. 200 और महिला के लिए Rs. 150 दिए जाते हैं।
परिवार कल्याण बीमा योजना: नसबंदी से जुड़ी जटिलताओं या मौत पर मुआवजा मिलता है। अस्पताल में मौत या डिस्चार्ज के 7 दिनों में मौत पर Rs. 2 लाख, 8-30 दिनों में Rs. 50 हजार, ऑपरेशन फेल होने पर Rs. 30 हजार और जटिलताओं के इलाज पर Rs. 25 हजार तक।
मुख्यमंत्री बालिका संबल योजना: एक या दो बेटियों के बाद नसबंदी करने वाले दंपतियों को प्रत्येक बेटी के लिए Rs. 10 हजार का बॉन्ड मिलता है, जो 18 साल में Rs. 76,990 तक बन जाता है।
ज्योति योजना: 22-32 वर्ष की महिलाओं को एक-दो बेटियों के बाद नसबंदी पर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, सामाजिक गतिविधियां और आशा/आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में प्राथमिकता।
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