एमपी-एमएलए पर दर्ज आपराधिक मुकदमों के ट्रायल में देरी क्यों? झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई से मांगी स्टेटस रिपोर्ट

सीबीआई की ओर से बताया गया कि राज्य में एमपी-एमएलए के 12 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें रांची सिविल कोर्ट में नौ और धनबाद कोर्ट में तीन मामले शामिल हैं।
एमपी-एमएलए पर दर्ज आपराधिक मुकदमों के ट्रायल में देरी क्यों? झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई से मांगी स्टेटस रिपोर्ट
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रांची- झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई से राज्य के एमपी-एमएलए के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों के ट्रायल में हो रही देरी की वजह स्पष्ट करने को कहा है। कोर्ट ने एजेंसी को इस संबंध में अद्यतन स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। एमपी-एमएलए पर दर्ज मुकदमों के स्पीडी ट्रायल को लेकर स्वत: संज्ञान के आधार पर दर्ज जनहित याचिका पर गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी अधिवक्ता मनोज टंडन ने कहा कि फिलहाल जो स्थिति है, उससे प्रतीत होता है कि ट्रायल पूरा होने में कई साल लग जाएंगे।

एमपी-एमएलए से संबंधित कई आपराधिक मामलों में सीबीआई की ओर से आरोप पत्र दायर होने के बाद आरोप गठन में पांच-छह साल लग जाते हैं। सीबीआई की मंशा ही नहीं है कि ट्रायल जल्द पूरा हो। सीबीआई की ओर से बताया गया कि राज्य में एमपी-एमएलए के 12 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें रांची सिविल कोर्ट में नौ और धनबाद कोर्ट में तीन मामले शामिल हैं। सीबीआई के अधिवक्ता ने कहा कि ऑर्डर शीट का अध्ययन करने के बाद बता सकेंगे कि किन कारणों से ट्रायल पूरा होने में देरी हो रही है।

इस याचिका पर पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने मौखिक कहा था कि सीबीआई जैसी संस्था गवाहों को जल्द लाने में असफल साबित हो रही है। ट्रायल में देरी होने से गवाहों में डर का भी माहौल बना रहता है। एक मामले में सीबीआई ने भी स्वीकार किया है कि ट्रायल में गवाहों को धमकाए जाने की आशंका के मद्देनजर उस गवाह की गवाही करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का भी सहारा लेना पड़ा है। कोर्ट ने मौखिक कहा था कि प्रतीत होता है कि सीबीआई एमपी-एमएलए के लंबित केस के जल्द निष्पादन को लेकर गंभीर नहीं है।

ट्रायल में देरी होने से गवाहों पर भी असर पड़ता है, उनकी गवाही प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ वर्ष पहले देश के सभी हाईकोर्ट को राजनेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के त्वरित निष्पादन के लिए दिशा-निर्देश दिए थे। इस निर्देश के आलोक में झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में सांसदों-विधायकों पर दर्ज मामलों को लेकर स्वतः संज्ञान लिया था और इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।

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