मध्य प्रदेश: भोजशाला में ASI के सर्वे में अबतक क्या मिला, जानिए पूरा मामला?

धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट पर कहा गया है कि विवादित स्थल में ऐसी टाइल मिली हैं जिनमें संस्कृत और प्राकृत भाषा की साहित्यिक रचनाएं गढ़ी हुई हैं। इन शिलालेख में जो अक्षर दिखाई देते हैं वो 11वीं-12वीं शताब्दी समय के हैं।
भोजशाला
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भोपाल। मध्य प्रदेश के धार जिले की भोजशाला में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम का सर्वे जारी है। शनिवार सुबह 9वें दिन टीम भोजशाला पहुंची, यहां आज भी सर्वे जारी रहा। रंगपंचमी त्योहार के कारण भोजशाला के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात है। मौके पर पुलिस अधिकारी भी मौजूद हैं।

अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम शाम 5 बजे तक सर्वे करेगी। इससे पहले शुक्रवार को जुमे की नमाज के कारण पूरे दिन सर्वे नहीं हो सका था। एएसआई की टीम महज छह घंटे ही काम कर सकी थी। शनिवार सुबह एएसआई की टीम मजदूरों के साथ भोजशाला परिसर पहुंची और काम शुरू कर दिया।

इस मामले में हिंदू पक्ष के आशीष गोयल ने बताया कि अंदर खुदाई में हिंदू अवशेष मिले हैं, जिन्हें संरक्षित करने का काम किया जा रहा है। कुछ नए स्थानों को चिन्हित किया गया है। वहां भी खुदाई का काम शुरू होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि भोजशाला के स्तंभ और दीवारों पर बनी आकृतियों से सत्य सामने आएगा।

क्या है भोजशाला सर्वे का मामला?

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भोजशाला मंदिर के परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया था। भोजशाला मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक विवादित स्मारक है जिसे मुस्लिम पक्ष कमाल मौलाना मस्जिद कहता है। वहीं हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले वागदेवी (देवी सरस्वती) का मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर मस्जिद बना दिया गया।

भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन एएसआई का संरक्षित स्मारक है। आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसे लेकर अप्रैल 2003 में एक आदेश भी जारी किया था। इसके अनुसार, हिंदुओं को हर मंगलवार को भोजशाला परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को हर शुक्रवार को यहां नमाज अदा करने की इजाजत है। परिसर के हक को लेकर धार्मिक संगठनों में मतभेद होता रहता है। हिंदू संगठन चाहते हैं कि इस साइट का नाम बदलकर सरस्वती सदन हो जाए। इसी के चलते यह विवाद शुरू होकर कोर्ट तक पहुँचा है।

आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भोपाल सर्किल की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के ढांचे में मूल सरस्वती मंदिर की संरचना के प्रमाण मिलते हैं। धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट पर कहा गया है कि विवादित स्थल में ऐसी टाइल मिली हैं जिनमें संस्कृत और प्राकृत भाषा की साहित्यिक रचनाएं गढ़ी हुई हैं। इन शिलालेख में जो अक्षर दिखाई देते हैं वो 11वीं-12वीं शताब्दी समय के हैं। परिसर में ऐसी बातें भी लिखी मिली हैं जो हिंदू संगठन के दावे को मजबूत करते हैं। यहां पाई गई एक रचना में परमार राजाओं- उदयादित्य और नरवर्मन – की प्रशंसा की गई है जो राजा भोज के तुरंत बाद उत्तराधिकारी बने। दूसरी रचना में कहा गया है कि उदयादित्य ने स्तंभ पर शिलालेख को गढ़वाया था।

मंदिर का इतिहास

भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था। राजा भोज परमार वंश के सबसे महान राजा थे, जिन्होंने 1000 से 1055 ईस्वी तक राज किया। इस दौरान उन्होंने साल 1034 में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला नाम से जाना गया। दूर-दूर से छात्र यहां पढ़ने आया करते थे। इसी काॅलेज में देवी सरस्वती का मंदिर भी था। हिंदू धर्म में सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर बहुत भव्य था। सरस्वती मंदिर का उल्लेख शाही कवि मदन ने अपने नाटक में भी किया था। नाटक को कोकरपुरमंजरी कहा जाता है और यह अर्जुनवर्मा देव (1299-10 से 1215-18 ई.) के सम्मान में है जिन्हें मदन ने ही पढ़ाया था। यह जानकारी धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार है।

14वीं सदी में मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। बताया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला कर दिया था, जिसके बाद से इस जगह की शक्ल बदलती गई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवा दी। 19वीं शताब्दी में एक बार फिर इस जगह बड़ी घटना हुई। दरअसल, उस समय खुदाई के दौरान सरस्वती देवी की प्रतिमा मिली थी। उस प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ ले गए और फिलहाल वो लंदन संग्रहालय में है। प्रतिमा को भारत वापस लाए जाने की मांग भी की जाती रही है।

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