बलात्कार पीड़ितों की जांच में देरी: लखनऊ में 78 रेडियोलॉजिस्ट और कई जिलों में एक भी नहीं — इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जताई चिंता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में रेडियोलॉजिस्ट की असमान तैनाती पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पीड़िताओं की जांच में देरी उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। लखनऊ में 78 रेडियोलॉजिस्ट और कई जिलों में एक भी नहीं — यह असमानता गंभीर चिंता का विषय है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं के साथ हो रहे अनावश्यक उत्पीड़न पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि राज्य के कई जिलों में रेडियोलॉजिस्ट न होने की वजह से पीड़िताओं की मेडिको-लीगल रेडियोलॉजिकल जांच में गंभीर देरी हो रही है, जिससे उनके न्याय पाने के अधिकार पर असर पड़ रहा है।

अदालत ने राज्य में सरकारी डॉक्टरों की नियुक्ति और तबादलों के लिए एक प्रभावी नीति बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

न्यायालय ने प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत सूची का हवाला देते हुए कहा, “यह सूची राज्य में रेडियोलॉजिस्ट की असमान तैनाती की स्थिति को उजागर करती है। कुछ जिलों में एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है, जबकि कुछ जिलों में एक से अधिक मौजूद हैं।”

अदालत ने विशेष रूप से लखनऊ में 78 रेडियोलॉजिस्ट की तैनाती पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक ही जिले में 78 रेडियोलॉजिस्ट को तैनात करना और अन्य जिलों को पूरी तरह नजरअंदाज करना, चिकित्सा संसाधनों के समान वितरण को लेकर गंभीर चिंता पैदा करता है।”

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल यह टिप्पणी उस समय कर रहे थे जब वे एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिस पर एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि उसने उसकी 13 वर्षीय बेटी का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया। लेकिन पीड़िता ने अदालत में बताया कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी। बाद में उसकी अस्थि परीक्षण (ऑसिफिकेशन टेस्ट) रिपोर्ट में उसकी उम्र 19 वर्ष पाई गई, यानी वह वयस्क थी और सहमति देने की आयु में थी। गलत उम्र के आधार पर आरोपी छह महीने तक जेल में रहा।

पीड़िता ने कहा कि वह आरोपी के साथ कानूनी रूप से संबंध रख सकती है और उसने अपने पिता का घर अपनी मर्जी से छोड़ा था।

इसके बाद अदालत ने बलिया के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने का निर्देश दिया, लेकिन वहां रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध न होने के कारण उसे वाराणसी ले जाया गया। वहां स्वास्थ्य विभाग ने यह कहकर परीक्षण करने से मना कर दिया कि अदालत ने बलिया के सरकारी डॉक्टर को यह आदेश दिया था, वाराणसी को नहीं।

अदालत ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “रेडियोलॉजिस्टों ने पीड़िता की रेडियोलॉजिकल जांच करने से इनकार करके संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की अनदेखी की है। यह पीड़िता के समय पर और उचित चिकित्सा परीक्षण के अधिकार का उल्लंघन है। डॉक्टर सिर्फ क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) के आधार पर जांच से इनकार नहीं कर सकते, जैसे वे जाति, लिंग आदि के आधार पर इनकार नहीं कर सकते।”

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