रेप के आरोपी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत, जज साहब के बोल – महिला ने 'खुद परेशानी को न्योता दिया'

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि महिला एक वयस्क है और पीजी में रहती है। वह अपने दोस्तों के साथ स्वेच्छा से एक रेस्टोरेंट गई, जहां उन्होंने शराब का सेवन किया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह
इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह
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नई दिल्ली – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बलात्कार के आरोपी को जमानत देते हुए टिप्पणी की है कि पीड़िता, जो कि एमए की छात्रा है, ने शराब पीने के बाद खुद आरोपी के घर जाने का निर्णय लेकर "खुद परेशानी को न्योता दिया।"

न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने आदेश पारित करते हुए कहा कि महिला एक शिक्षित और समझदार व्यक्ति है, जो अपने कार्यों की नैतिकता और परिणामों को समझने में सक्षम है।

न्यायालय ने कहा, “इस न्यायालय का मानना है कि यदि पीड़िता के आरोप को सत्य भी माना जाए, तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने स्वयं इस परिस्थिति को आमंत्रित किया और इसके लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार भी रही। पीड़िता ने अपने बयान में भी इसी प्रकार की बात कही है। चिकित्सकीय परीक्षण में भी डॉक्टर ने यौन शोषण को लेकर कोई स्पष्ट राय नहीं दी।”

आदेश में आगे कहा गया, “मामले की परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति, आरोपी की संलिप्तता और दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए यह अदालत मानती है कि आरोपी को जमानत देने के लिए मामला उपयुक्त है।”

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने अदालत को बताया कि महिला एक वयस्क है और पीजी में रहती है। वह अपने दोस्तों के साथ स्वेच्छा से एक रेस्टोरेंट गई, जहां उन्होंने शराब का सेवन किया। अत्यधिक नशे में होने के कारण, उसने आरोपी के घर जाकर आराम करने का फैसला किया।

वकील ने यह भी तर्क दिया कि महिला और उसके दोस्त रात 3 बजे तक बार में रहे। महिला का यह आरोप कि आरोपी उसे अपने किसी रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया और दो बार बलात्कार किया, साक्ष्यों के अनुसार झूठा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला बलात्कार का नहीं बल्कि सहमति से संबंध का हो सकता है।

यह फैसला उस समय आया है जब महज कुछ दिन पहले, 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अन्य विवादास्पद आदेश पर रोक लगाई थी। उस आदेश में कहा गया था कि महिला की छाती दबाना और पायजामे की डोरी खींचना “बलात्कार की कोशिश” नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी, इसे “पूर्णतः असंवेदनशील” और “अमानवीय दृष्टिकोण” बताया था। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र द्वारा 17 मार्च को दिए गए फैसले पर की गई थी।

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