किसानों पर 2022 की FIR रद्द : राजस्थान हाईकोर्ट ने माना लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध करना संवैधानिक अधिकार

पाली जिले के सांडेराव पुलिस स्टेशन में किसानों के खिलाफ दर्ज एफआईआर नंबर 127/2022 की रद्द, पानी के बंटवारे से जुड़े मुद्दे पर एनएच-62 पर किया था प्रदर्शन
पुलिस ने 53 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 143 (अवैध जमावड़ा), 117 (उकसाहट), 283 (सार्वजनिक उपद्रव) और 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला) के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 8बी के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें सड़क जाम करने और नारेबाजी का आरोप लगाया गया था।
पुलिस ने 53 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 143 (अवैध जमावड़ा), 117 (उकसाहट), 283 (सार्वजनिक उपद्रव) और 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला) के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 8बी के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें सड़क जाम करने और नारेबाजी का आरोप लगाया गया था।
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जोधपुर- राजस्थान हाईकोर्ट ने पाली जिले के सांडेराव पुलिस स्टेशन में किसानों के खिलाफ दर्ज एफआईआर नंबर 127/2022 को रद्द करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायधीश फरजंद अली ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि "लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध करना संवैधानिक अधिकार है।" अदालत ने माना कि जवाई बांध से पानी के बंटवारे को लेकर किसानों का विरोध प्रदर्शन लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का वैध उदाहरण था और इसे आपराधिक मामला बनाना उचित नहीं था।

यह मामला अक्टूबर 2022 में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जब किसानों ने पानी के बंटवारे पर महत्वपूर्ण बैठक जोधपुर में करने के प्रशासनिक फैसले के खिलाफ एनएच-62 पर प्रदर्शन किया था। किसानों का तर्क था कि परंपरागत रूप से सुमेरपुर के डैम इंस्पेक्शन भवन में होने वाली इस बैठक को अचानक बदल दिया गया, जिससे उनकी समस्याओं को सुनने का उचित अवसर नहीं मिला। पुलिस ने 53 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराएं 143 (अवैध जमावड़ा), 117 (उकसाहट), 283 (सार्वजनिक उपद्रव) और 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला) के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 8बी के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें सड़क जाम करने और नारेबाजी का आरोप लगाया गया था।

हालांकि, अदालत ने देखा कि "यह विरोध प्रदर्शन न तो हिंसक था और न ही विध्वंसक।" न्यायालय ने माना कि हालांकि जमावड़े से अस्थायी असुविधा हुई होगी, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान या अधिकारियों पर हमले का कोई सबूत नहीं मिला। "जब प्रशासनिक फैसले लोगों की आजीविका को प्रभावित करते हैं, तो उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध जताने का अधिकार है," न्यायधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "ऐसे विरोध प्रदर्शनों को आपराधिक कृत्य बताना एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है, न कि स्वतंत्र लोकतंत्र की भावना को।"

अदालत ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता अजयपाल सिंह का बंदूक लाइसेंस भी बहाल कर दिया, कि केवल एफआईआर के आधार पर इसे निलंबित करना अनुचित था। न्यायालय ने पुलिस को मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और इस राहत को उन सभी आरोपियों तक विस्तारित किया जो अदालत नहीं पहुंच पाए थे। यह फैसला उस सिद्धांत को मजबूत करता है कि "न्याय सिर्फ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को ही नहीं, बल्कि उन लोगों को भी सुरक्षा देता है जिनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के संसाधन नहीं हैं।"

इस फैसले को नागरिक स्वतंत्रताओं की जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो वैध विरोध प्रदर्शनों को दबाने की कोशिशों के खिलाफ प्रशासन को स्पष्ट संदेश देता है। यह इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि "जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए बने लोकतंत्र में, विरोध कोई अपराध नहीं बल्कि अधिकारों का सुरक्षा कवच है।"

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