मध्य प्रदेश: एक गांव जहां नाई दलितों के बाल नहीं काटते, मंदिर प्रवेश पर भी है रोक! पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट..

एमपी की राजधानी भोपाल के बाहरी इलाके में स्थित कोडिया गांव का मामला, वाल्मीकि परिवार को सहना पड़ता है जातीय भेदभाव।
मध्य प्रदेश: एक गांव जहां नाई दलितों के बाल नहीं काटते, मंदिर प्रवेश पर भी है रोक! पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट..

भोपाल। एमपी की राजधानी की शहरी शरहद पर बसा एक गांव जहाँ नाई दलितों के बाल नहीं काटते, उन्हें मंदिरों में भी प्रवेश नहीं दिया जाता है। आधुनिक युग में यह बात सुनकर हर कोई दंग रह जाएगा, मगर ये कहानी एक दम सच है। भारत की आजादी के 76 साल बाद भी यहां अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है। मामला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 30 किलोमीटर दूर बसे ग्राम कोडिया का है। गाँव का एक वाल्मीकि परिवार उच्च जाति के लोगों के लिए अछूत है। इस पूरे मामले की पड़ताल के लिए द मूकनायक की टीम कोडिया गांव पहुंची। पेश है ग्राउंड रिपोर्ट।

भोपाल जिले की हुजूर विधानसभा और फंदा ब्लॉक में कोडिया गांव स्थित है। जनसंख्या करीब ढाई हजार है। गांव काफी स्वच्छ और सभी सुविधाओं से युक्त है। यहां शासकीय अस्पताल, राशन की दुकान, स्कूल, हर गली मोहल्ले में पक्की सड़कें नल की व्यवस्था है। गाँव में मेवाड़ा राजपूत और गौर कुर्मी समाज के लोगों का बाहुल्य है।

द मूकनायक की टीम सुबह सबेरे भोपाल के भदभदा रोड से नीलबड़, रातीबड़ होते हुए करीब 1 घण्टे में ग्राम कोडिया पहुंची। गाँव में घुसते ही मुकेश वाल्मीकि और उनकी पत्नी राजकुमारी रोज की तरह गाँव के साफ-सफाई के काम में लगे हुए थे। हम भी मुकेश से बातें करते हुए उनके साथ चल दिए। मुकेश और उनकी पत्नी, काम के प्रति ईमानदार हैं। हमसे बातें करते समय भी उनका ध्यान गाँव की सफाई पर ही था। गाँव की मुख्य सड़कें, गलियां इन सभी की सफाई में करीब सुबह के 11 बज चुके थे। मुकेश ने बताया कि वह सुबह 5 बजे से गाँव की सफाई का काम शुरू करते हैं।

गांव की सफाई का काम पूरा होते ही हम मुकेश और उनकी पत्नी के साथ गाँव के एक छोर पर बने छोटे से घर में पहुचें जहाँ मुकेश और उनका परिवार रहता है। छोटे-छोटे दो कमरों और बाहर टीनशेड और तिरपाल से बने छप्पर के घर में उनके परिवार के गुजर बसर करने के लिए छोटा दिखाई पड़ रहा था। मुकेश ने बताया कि वह और उसकी पत्नी दोनों बेटे और उनकी पत्नियों सहित 7 लोग उसी छोटे से घर में रह रहे हैं।

मुकेश ग्राम पंचायत कोडिया में सफाई कर्मचारी हैं। उनकी पत्नी नि:शुल्क गाँव की सफाई में उनकी मदद करती है। वहीं छोटा बेटा सतीश ग्राम पंचायत की कचरा गाड़ी का ड्राइवर है। मुकेश ने बताया कि ग्राम पंचायत से तनख्वाह में तीन हजार रुपए प्रति महीने उसे मिलते हैं। बड़ा बेटा शादी समारोह में ढोल बजाने का काम करता है। इसी से उनका परिवार चल रहा है। मुकेश की पत्नी राजकुमारी बताती है कि मंदिरों में उन्हें प्रवेश नहीं मिलता।

मुकेश ने बताया कि उनके परिवार के साथ कई पीढ़ियों से छुआछूत का व्यवहार हो रहा है। इनके परिवार में गाँव के अन्य सवर्णों के सामने बराबरी पर बैठने तक का अधिकार नहीं हैं। यहाँ तक कि गांव के नाई इनके बाल नहीं काटते, मन्दिर में प्रवेश नहीं मिलता। इतना ही नहीं चाय की दुकान वाले अन्य को कांच और चीनी के ग्लास में चाय देते है पर इन्हें कागज के ग्लास में चाय दी जाती है।

मुकेश वाल्मीकि का छोटा बेटा सतीश भी ग्राम पंचायत में कचरा गाड़ी का ड्राइवर है। गाँव में डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन का काम करता है। सतीश ने बताया कि लोग हमें हीन भावना से देखते हैं। रास्ते में हमें आता देखकर लोग दूर हो जाते हैं। सतीश ने कहा कि गाँव के उच्च जाति के लोग उसकी परछाई से भी दूर रहते हैं। गाँव की चाय-नाश्ते की दुकानों पर कुर्सियों पर उसे बैठने का अधिकार नहीं है।

गाँव में है प्रमुख चार मन्दिर, सब में प्रवेश निषेध

कोडिया में प्रमुख रूप से चार मन्दिर है, जिनमें राम जानकी मंदिर, शिव मन्दिर, हनुमान मंदिर और देव नारायण मन्दिर है। देव नारायण मन्दिर मेवाड़ा राजपूतों के कुल देवता का मंदिर है। इसके अलावा अन्य छोटे-बड़े मंदिरों को मिलाकर कुल 9 मन्दिर हैं। गाँव के जातिवादी मानसिकता से ग्रसित लोगों ने इन्हीं मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर रोक लगा रखी है।

हमने गांव की जातीय व्यवस्था समझने के लिए जब ग्राम कोडिया की सरपंच सीमा राजपूत को फोन किया तो उनके पति उदय सिंह राजपूत ने फोन उठाया। हमने उदय सिंह से सरपंच सीमा से बात कराने को कहा, लेकिन उन्होंने सरपंच वहाँ मौजूद नहीं होना बताया। वहीं हमारे सवालों पर उदय सिंह ने कहा कि गाँव में किसी भी दलित के साथ जातिगत भेदभाव नहीं होता है। कुछ परम्पराएं है जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं।

इस मामले में शासन का पक्ष जानने के लिए द मूकनायक ने हुजूर क्षेत्र के एसडीएम आकाश श्रीवास्तव से बातचीत की। उन्होंने बताया कि आजाद भारत में छुआछूत जैसा व्यवहार होना संभव नहीं लगता। एसडीएम ने कहा कि वह कुछ दिन पहले ही एक कार्यक्रम में कोडिया गए थे, लेकिन उन्हें इस तरह की कोई भी शिकायत नहीं मिली है। एसडीएम ने कहा आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया है। वह गाँव में जाकर पीड़ित वाल्मीकि परिवार से मिलेंगे।

इधर द मूकनायक से बातचीत करते हुए अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ अजाक्स के प्रदेश प्रवक्ता विजय श्रवण ने बताया कि यदि गाँव में इस तरीके का जातिगत भेदभाव हो रहा है तो हमारे समाज और वर्ग के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजधानी के नजदीक किसी गाँव में जातिगत उत्पीड़न का होना शासन-प्रशासन उदासीन रवैया को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में प्रशासन को तुरंत कार्यवाही करते हुए आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। वहीं विजय श्रवण ने इस मामले को आजक्स की मीटिंग में रखने की बात कही है।

जातिगत भेदभाव करना कानून अपराध

भोपाल के एडवोकेट विधि विशेषज्ञ मयंक सिंह ने बताया कि किसी भी एससी और एसटी के व्यक्ति से जातिगत भेदभाव करना, मंदिरों में प्रवेश न देना, दुर्व्यवहार करने पर अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मामला पंजीबद्ध किया जाता है। कानून के तहत दोष साबित होने पर आरोपी को 7 साल तक की कैद और आर्थिक दंड की सजा का प्रावधान है।

पूरी वीडियो यहां देखें-

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