विश्व पर्यावरण दिवस: भोपाल के तालाबों में विदेशी मछलियों की मौजूदगी से बढ़ा खतरा! ग्राउंड रिपोर्ट...

द मूकनायक की पड़ताल में जानें कैसे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही हैं प्रतिबंधित मछलियां।
विश्व पर्यावरण दिवस: भोपाल के तालाबों में विदेशी मछलियों की मौजूदगी से बढ़ा खतरा! ग्राउंड रिपोर्ट...

भोपाल। झीलों की नगरी और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के तालाबों में विदेशी मछलियों से खतरा बना हुआ है। भोपाल के तालाबों में तीन अलग-अलग प्रजातियों की विदेशी मछलियों की संख्या बढ़ रही है, जिसके कारण तालाबों की जैव विविधता असंतुलित हो सकती है। तालाबों पर हमारी पड़ताल में इसका खुलासा हुआ है। पेश है द मूकनायक की ये खास रिपोर्ट।

भोपाल शहर में करीब 13 छोटे-बड़े तालाब हैं। इन तालाबों में विदेशी प्रजाति वाली कुछ मछलियां तेजी से बढ़ रही हैं। पहले ही राजधानी भोपाल की लाइफ लाइन कहे जाने वाले बड़े तालाब पर अतिक्रमण का खतरा बना हुआ है। यहाँ कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण से तालाब सिकुड़ता जा रहा है। वहीं अब भोपाल के करीब आठ तालाबों में भारत में प्रतिबंधित थाई मांगुर, बिग हैड और तिलापिया प्रजाति की मछलियां पाईं गई हैं। हाल ही में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय जूलॉजी एप्लाइड एक्वाकल्चर विभाग के सर्वे रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

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इसके अलावा भी भोपाल के आस-पास सटे ग्रामीण इलाकों में चोरी-छुपे प्रतिबंधित थाई मांगुर को टैंकों व कृत्रिम तालाबों में पाला जा रहा है। द मूकनायक ने ग्राउंड जीरो पर जाकर इसकी पड़ताल की है। द मूकनायक की टीम रायसेन रोड पर बसे कोलौआ गाँव पहुचीं तो वहाँ खेतों में टैंक बना कर थाई मांगुर (Thai Mangur) को भारी मात्रा में पाला जा रहा था। गाँव के पास के एक खेत में करीब साथ अस्थायी टैंक बनाए गए थे। जिसमें थाई मांगुर (Thai Mangur) का पालन किया जा रहा है। इसके अलावा भी गाँव के आस-पास करीब पचास टैंक और बने थे, जिनमें से मछलियों को निकाला लिया गया था। दूर से टैंक में सिर्फ कीचड़ दिखाई दे रहा था। निजी भूमि होने के कारण हमें खेतों में टैंक पास जाने नहीं दिया गया। इसका एक ही कारण हो सकता है कि थाई मांगुर का पालन कर रहे लोग जानते हैं कि यह मछली भारत में पूर्णतः प्रतिबंधित है।

बारिश के मौसम में बाहर निकल आती है थाई मांगुर

भोपाल में बारिश के मौसम में जब शहर के नाले उफान पर होते हैं तब थाई मांगुर मछली बाहर निकल आती है। इसकी पुष्टि भी कई बार स्थानीय लोगों ने की है। मांगुर मछली कीचड़ और गंदे पानी के लिए अनुकूल है, इस कारण इसे नालों में रहने से कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन शहर के जलाशयों में इसकी मौजूदगी चिंता की बात है।

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भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय जूलॉजी एप्लाइड एक्वाकल्चर विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विपिन व्यास ने बताया कि भोपाल के जलाशयों का सर्वे विभाग की एक टीम के द्वारा किया गया था, जिसमें दस में से करीब आठ तालाबों में तीन तरह की विदेशी प्रतिबंधित मछलियों की प्रजाति पाई गई है। उन्होंने बताया कि थाईलैंड की थाई मांगुर, अफ्रीका की बिग हैड, और तलापिया नामक विदेशी प्रजातियां सर्वे के दौरान पाई गई हैं।

पर्यावरण की खाद्य श्रंखला होगी प्रभावित

विदेशी प्रतिबंधित मछलियों की संख्या बढ़ना तालाब के पर्यावरण को असन्तुलित कर सकता है। प्रोफेसर डॉ. विपिन व्यास के मुताबिक थाई मांगुर तेजी से बढ़ने वाली मछली है। तेजी से बढ़ने के कारण यह भोजन भी ज्यादा खाती है। इसके मांसाहारी होने के कारण जलाशय में मौजूद अन्य छोटी मछलियों को अपना शिकार यह बनाती है। भारतीय जलाशयों में थाई मांगुर की मौजूदगी पर्यावरण पर गहरा असर डाल सकती है। इससे जलीय खाद्य श्रृंखला पर भी असर पड़ेगा।

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के एमएससी एक्वाकल्चर के छात्र एसके यामिनी ने द मूकनायक को बताया कि यह थाई मांगुर मछली जलाशय के इको सिस्टम को खराब कर सकती है। इसका मांसाहारी होना और जरूरत से ज्यादा भोजन करना खतरनाक है। इसके मांसाहारी होने कारण यह खुद ही कई बीमारियों की चपेट में आ जाती है।

शाहपुरा लेक में भारी संख्या में मौजूद है तिलापिया मछली

बीयू के सर्वे के मुताबिक शहर के शाहपुरा लेक में तिलापिया विदेशी प्रजाति की मछली भारी संख्या में पाई गई है। यह मछली आक्रामक और सर्वाहारी है। तेजी से बढ़ने के कारण यह काफी मात्रा में भोजन खाती है। तेजी से प्रजनन कर रही तिलपिया की मौजदूगी तालाब के आवरण को नुकसान पहुँचा रही है। इसके तेजी से बढ़ने, और अधिक भोजन करने के कारण स्थानीय मछलियों की प्रजाति के भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है।

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प्रतिबंधित है थाई मांगुर

थाई मांगुर मछली को 1998 में सबसे पहले केरल में प्रतिबंधित किया गया। उसके बाद वर्ष 2000 में देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मांगुर मछली के पालन और विक्रय पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सबसे बड़ी वजह इसका मांसाहारी होना है। वहीं इसका उपयोग करने वालों में कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। थाईलैंड की प्रजाति होने के कारण इसे थाई मांगुर भी कहा जाता है। चिकित्सकों की मानें तो मांगुर मछली खाने से कैंसर का खतरा रहता है। प्रतिबंधित होने के बावजूद भी इस मछली को बाजारों में खुले तौर पर बेचा जा रहा है। राजधानी भोपाल की सभी मंडियों में मांगुर मछली देखी जा सकती है। जबकि राज्य का मत्स्य विभाग यह दावा करने से नहीं चूकता कि उन्होंने इस मछली पर पूरी तरह रोक लगा दी है। हमने जानकारी के लिए भोपाल मत्स्य विभाग के सहायक संचालक एसके सैनी को फोन कर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

चार महीने में एक किलो से भी ज्यादा वजन

मांगुर मछली मूल रूप से थाईलैंड में पाई जाती रही है। इस मछली की ग्रोथ काफी तेजी से होती है। मात्र 3 से 4 महीने में ही मांगुर मछली बाजार में बेचने लायक हो जाती है। इसका वजन चार माह में एक किलो से भी ज्यादा हो जाता है। यही वजह है कि मछली पालन से जुड़े किसान इसके पालन को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन मांगुर मछली का पालन इस पर प्रतिबंध लगने के बाद भी नहीं रुका है।

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मांगुर मछली खाने से हो सकता है कैंसर

वर्ष 2000 में पूरे भारत में थाई मांगुर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी गई थी। मांगुर मछली के सेवन से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का खतरा रहता है। यह मछली पूरी तरह से मांसाहारी होती है और इसके मांस में 80 फीसदी तक लेड और आयरन की मात्रा होती है। इसलिए इसके आहार से शरीर में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड की मात्रा बढ़ जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। कैंसर संबंधी बीमारियों के साथ-साथ यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियों के लिए भी यह घातक है।

बड़े तालाब में मिली थी अमेरिका की एलिगेटर गार फिश

अप्रैल 2023 में उत्तरी अमेरिका की झीलों में पाई जाने वाली एक विशेष प्रजाति की मछली भोपाल के बड़े तालाब में मिली थी। एक व्यक्ति तालाब में मछली पकड़ रहा था उसी के जाल में एलिगेटर गार मछली फंस गई थी। मछली के मुंह के आकार की वजह से इसे क्रोकोडाइल फिश के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुंह मगरमच्छ की तरह था।

मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने बताया था कि भोपाल के बड़े तालाब में मिली मछली उत्तरी अमेरिका में पाई जाती है। इसे ऐलिगेटर गार के नाम से जाना जाता है। उनका मानना था कि यह आक्रमक मछली है इसी कारण से किसी ने अक्यूरियम से निकाल कर तालाब में छोड़ दिया है। बड़े तालाब में मिली मछली की लंबाई डेढ़ फीट थी। उसका वजन करीब ढाई किलो था। इस मछली का मुंह मगरमच्छ के जबड़े जैसा था। इसलिए इसे क्रोकोडाइल फिश भी कहा जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह मांसाहारी मछली मीठे पानी में पाई जाती है। इसकी उम्र 18 से 20 साल तक होती है। यह 10 फीट तक लंबी हो सकती है। केरल में इसका पालन किया जाता है। इसके पांच इंच तक के बच्चे एक से दो हजार रुपए में मिलते हैं।

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