शैक्षिक असमानता: बेटियों को सरकारी तो बेटों को पढ़ाते हैं प्राइवेट स्कूल में!

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सभी 60 बोर्ड के वर्ष 2022 के नतीजों के अध्ययन में हुआ खुलासा.
शैक्षिक असमानता: बेटियों को सरकारी तो बेटों को पढ़ाते हैं प्राइवेट स्कूल में!

नई दिल्ली। पता नहीं क्यों हमेशा लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है। आज हर जगह पर लड़कियां अपनी काबिलीयत को दिखा रही हैं, परंतु पता नहीं कैसे फिर भी वह पीछे रह जाती हैं। देश की बेटियों के हर मोर्चे पर परचम लहराने के बावजूद आज भी समाज में दोयम दर्जा बरकरार है। ज्यादातर लोग बेटियों को सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं। वहीं, बेटों के लिए उनकी पसंद अंग्रेजी स्कूल हैं। यह खुलासा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सभी 60 बोर्ड के वर्ष 2022 के नतीजों के अध्ययन में हुआ है। इसमें सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को शामिल किया गया था।

एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार अध्ययन में बेटियों की शिक्षा पर खर्च नहीं करने की सामाजिक कुरीति के बावजूद यह सकारात्मक पहलू भी सामने आया कि तमाम दिक्कतों के बाद भी 10वीं और 12वीं कक्षा में बेटियां उपस्थिति से लेकर पढ़ाई व परिणाम में बेटों से बहुत आगे हैं। अध्ययन में पता चला है कि सरकारी स्कूलों में 10वीं कक्षा में एक फीसदी छात्राें की तुलना में बेटियों की संख्या 1.02 फीसदी है। जबकि, रिजल्ट में लड़कों का प्रदर्शन 76.2 फीसदी है, तो बेटियों का 80 फीसदी है। 

12वीं कक्षा में बेटियों से अधिक भेदभाव

अध्ययन में 12वीं कक्षा में भेदभाव अधिक दिखा। सरकारी स्कूलों में एक फीसदी लड़कों की तुलना में बेटियों की संख्या 1.07 फीसदी है। जबकि रिजल्ट में लड़कों का 81.8 फीसदी तो बेटियों का प्रदर्शन 87.2 फीसदी है। वहीं, निजी अंग्रेजी स्कूलों में रिजल्ट में लड़कों का 83.5% तो बेटियों का प्रदर्शन 90.1% है।

बेटियों की पहली पसंद कला संकाय

11वीं से स्नातक तक बेटियों की पहली पसंद कला संकाय के विषय है। जहां 35 फीसदी लड़के आर्ट्स की पढ़ाई करते हैं, उसके मुकाबले बेटियों का आंकड़ा 46 फीसदी है। 46 फीसदी लड़के विज्ञान लेते हैं तो 38 फीसदी बेटियां विज्ञान का चुनाव करती हैं। वहीं, 15 फीसदी लड़के व 14 फीसदी लड़कियां वाणिज्य विषयों की पढ़ाई करना चाहती हैं।

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एससी वर्ग में 52.5 फीसदी बेटियां कला संकाय में लेती हैं दाखिला

देश में अनुसूचित जाति वर्ग में 52.5 फीसदी बेटियां और 43.8 फीसदी बेटे कला संकाय में दाखिला लेते हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति वर्ग में 55.6 फीसदी लड़के और 58.9 फीसदी लड़कियां कला संकाय की पढ़ाई करती हैं। साइंस स्ट्रीम में एसटी वर्ग के लड़कों का आंकड़ा 40.6 फीसदी तो लड़कियों का आंकड़ा महज 33 फीसदी है। जबकि एसटी वर्ग में लड़कों का यही आंकड़ा 31 फीसदी तो लड़कियों का 29 फीसदी है।

इस पूरे मामले पर द मूकनायक ने एक शिक्षिका से बात की जो दिल्ली में एक प्राइवेट स्कूल में सामाजिक विज्ञान और हिंदी विषय की अध्यापिका है। नाम न प्रकाशित करने के अनुरोध पर शिक्षिका हमें बताती हैं कि "ज्यादातर आंकड़े सही ही होते हैं, जहां तक अपने बचपन की बात करूं या अपने परिवार की बात करूं तो मैंने अपने यहां ऐसा नहीं देखा कि लड़कों को प्राइवेट स्कूल में और लड़की को सरकारी स्कूल में पढ़ाया जाए। लेकिन उस समय मेरे कुछ दोस्त थे और कुछ आस-पास में ऐसे घर थे। जहां लड़कियों को ज्यादातर सरकारी स्कूल में ही पढ़ाया जाता था। वहीं उनके भाई प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे।"

आगे वह बताती हैं कि "कई कारणों से हो सकता है। समाज की अभी यही सोच है कि लड़कियां ज्यादा पढ़ेंगी तो उनको कोई फायदा नहीं होगा। प्राइवेट स्कूल में उनको पढ़ाना नहीं चाहिए। क्योंकि इनको आगे पराए घर जाना है, वहां जाकर घर का काम ही तो करना है। यह लड़कियां हैं बस घर का काम ही सिखाओ। लड़कों को तो बहुत कुछ करना है। ऐसी है हमारे समाज की सोच है।"

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"दूसरा यह है कि कुछ परिवार अपनी लड़की और लड़कों में कोई फर्क नहीं करते। परंतु उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं होती कि वह अपने लड़के और लड़की दोनों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सके। इसलिए वह प्राथमिकता लड़कों को ही देते हैं। प्राइवेट स्कूल में लड़कों को ही पढ़ाया जाता है, चाहे उनकी बेटी कितनी भी पढ़ने में अच्छी हो। वैसे पहले से स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। सरकार को और नई-नई योजनाएं बनाने चाहिए ताकि हमारे देश की हर होनाहार लड़की पढ़-लिखकर कुछ बने", उन्होंने द मूकनायक को बताया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार के स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार ने बताया कि इसी के तहत शिक्षा मंत्रालय ने केंद्र और राज्यों के 60 नियमित व ओपन स्कूल बोर्ड की वर्ष 2022 के रिजल्ट का अध्ययन किया है। इसका मकसद स्कूली शिक्षा की कमियों में सुधार लाना है। हालांकि बेटों और बेटियों की शिक्षा में भेदभाव को पूरी तरह नहीं माना जा सकता है।

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