मध्य प्रदेश: गिद्धों पर क्यों लगाए जा रहे सैटेलाइट ट्रांसमिशन

मध्य प्रदेश: गिद्धों पर क्यों लगाए जा रहे सैटेलाइट ट्रांसमिशन

भोपाल। मध्यप्रदेश में गिद्दों पर शोध करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बाद मध्यप्रदेश के 40 गिद्धों में सेटेलाइट ट्रांसमिशन डिवाइस लगाए जा रहे हैं। इससे गिद्धों की हर एक एक्टिविटी पर अधिकारियों की नजर रहेगी। जानकारी के अनुसार इन 40 गिद्धों की स्टडी के बाद केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र में जन्में 75 गिद्धों को छतरपुर में छोड़ा जाएगा। लेकिन इससे पहले गिद्धों को पकड़कर उन्हें सेटेलाइट ट्रांसमिशन डिवाइस लगाई जाएगी। इसके लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को परमिशन दे दी है। वन विहार के गिद्ध सेंटर में ब्रीडिंग से तैयार हुए लुप्त हो रहे लॉन्ग विल्ड वल्चर और व्हाइट बेक्ड गिद्ध नेचुरल फॉर्म से इन्हें खुले आसमान में छोड़ दिया जाएगा। देश में ऐसा पहली बार हो रहा जब गिद्धों पर सेटेलाइट से नजर रखने के लिए ट्रांसमिशन लगाए जा रहे हैं।

गिद्ध के जन्म के बाद उनका डीएनए टेस्ट होता है। ब्रीडिंग के समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आपस में संबंध बनाने वाले गिद्ध आपस में भाई-बहन तो नहीं है। वहीं एक रिपोर्ट से पता लगा है कि वन विहार के गिद्ध प्रजनन केन्द्र में एक गिद्ध पर लगभग 80 हजार से ज्यादा रुपए खर्च होते हैं। ये एक गिद्ध का सालाना खर्चा है।

बता दें कि, केरवा के गिद्ध सेंटर में लुप्त प्रजाति के लॉन्ग विल्ड वल्चर और व्हाइट बेक्ड गिद्ध हैं। इन्हें खुले में छोड़ने से पहले मध्यप्रदेश के गिद्धों के रहवास पर स्टडी किया जाएगा।

प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों के रहवास और प्रवास मार्ग पर अध्ययन हो रहा है। यहां पर गिद्धों की रेडियो ट्रांसमिशन का काम शुरु किया गया है। रेडियो ट्रांसमिशन से अधिकारियों को गिद्धों के हर मूवमेंट की जानकारी रहती है। लेकिन यहां पर मौजूद कई रेडियो ट्रांसमिशन में समस्या आ रही है। वहीं कुछ खराब पड़े हैं। ये देखते हुए बीएनएचएस के वैज्ञानिकों ने फैसला लिया है कि वन विहार गिद्ध सेंटर में जन्में गिद्धों को खुले में छोड़ने के पहले छतरपुर से लुप्त प्रजाति के गिद्धों को पकड़कर उन पर सेटेलाइट ट्रांसमिशन लगाकर अध्ययन किया जाए। 

गिद्धों की फेल हो चुकी किडनी से हुईं मौत

बीएचएनएस ने 2016-2017 में वन विभाग और गिद्ध प्रजनन केन्द्रों की टीम ने मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, चंडीगढ़ में सर्वे किया था। इसमें सामने आया कि इंटौक्सिक दवाओं का उपयोग हो रहा है। जिससे गिद्ध की किडनियां खराब हुई थीं।

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