हैदराबाद विश्वविद्यालय की जमीन का क्या है मुद्दा जिसको लेकर छात्रों ने लिखा राष्ट्रपति को खत

छात्रों का कहना है कि कंचा गाचीबोवली में स्थित यह जमीन विश्वविद्यालय की मूल रूप से आवंटित 2,324.05 एकड़ जमीन का हिस्सा है, जिसका वादा 1975 में छह सूत्री फॉर्मूला और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371ई के तहत किया गया था। AIOBCSA ने उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए निर्धारित सार्वजनिक जमीन को किसी अन्य उपयोग में ले जाने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया है।
कई संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।
कई संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।
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हैदराबाद- हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) के छात्रों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तेलंगाना सरकार द्वारा प्रस्तावित 400 एकड़ जमीन की नीलामी के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

यह जमीन कंचा गाचीबोवली में स्थित है, जो विश्वविद्यालय के परिसर से सटी हुई है और एक शहरी वन के रूप में जानी जाती है। अखिल भारतीय ओबीसी छात्र संघ (AIOBCSA) ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस मामले में कार्रवाई का अनुरोध किया है। छात्रों का कहना है कि यह जमीन विश्वविद्यालय की मूल रूप से आवंटित 2,324.05 एकड़ जमीन का हिस्सा है, जिसका वादा 1975 में छह सूत्री फॉर्मूला और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371ई के तहत किया गया था।

छात्रों ने अपने पत्र में मांग की है कि विश्वविद्यालय के लिए वादा की गई 2,324.05 एकड़ जमीन को पुनः प्राप्त किया जाए। उनका आरोप है कि तेलंगाना सरकार न केवल इस जमीन पर विश्वविद्यालय के स्वामित्व को चुनौती दे रही है, बल्कि इसके 400 एकड़ हिस्से को नीलामी के जरिए राजस्व अर्जित करने की योजना बना रही है। यह कदम समृद्ध जैव विविधता की कीमत पर उठाया जा रहा है, जिससे अतिक्रमण और व्यावसायीकरण की चिंताएं बढ़ गई हैं। AIOBCSA ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार को तेलंगाना सरकार से यह जमीन वापस लेने के लिए तत्काल निर्देश दिए जाएं। इसके साथ ही, जमीन के औपचारिक हस्तांतरण के लिए कानूनी और प्रशासनिक उपायों की जांच हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग भी की गई है।

एआईओबीसीएसए ने राष्ट्रपति से  कहा कि यह कदम समृद्ध जैव विविधता की कीमत पर उठाया जा रहा है, जिससे अतिक्रमण और व्यावसायीकरण की चिंताएं बढ़ गई हैं।
एआईओबीसीएसए ने राष्ट्रपति से कहा कि यह कदम समृद्ध जैव विविधता की कीमत पर उठाया जा रहा है, जिससे अतिक्रमण और व्यावसायीकरण की चिंताएं बढ़ गई हैं। courtesy- x/@NSRSathya

यह जमीन, जो कभी हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) का हिस्सा थी, वन्यजीवों का घर है और प्राकृतिक जलवायु नियामक के रूप में कार्य करती है। नीलामी से हैदराबाद के लिए यह महत्वपूर्ण हरा-भरा फेफड़ा खतरे में पड़ जाएगा।

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विश्वविद्यालय की जरूरतें और मान्यता

हैदराबाद विश्वविद्यालय को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा उत्कृष्टता संस्थान (आईओई) के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह विश्वविद्यालय हजारों छात्रों, खासकर हाशिए पर और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए शैक्षणिक और अनुसंधान उत्कृष्टता का केंद्र रहा है। विश्वविद्यालय के तेजी से विस्तार और अंतर्विषयक अनुसंधान व नवाचार की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए, मूल रूप से आवंटित पूरी जमीन का उपयोग आवश्यक है। एआईओबीसीएसए के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी. किरण कुमार ने कहा, "तेलंगाना सरकार विश्वविद्यालय की जमीन के स्वामित्व को चुनौती दे रही है और इसके हिस्सों को निजी उद्देश्यों के लिए आवंटित कर रही है, जो बेहद चिंताजनक है।"

AIOBCSA ने उच्च शिक्षा और अनुसंधान के लिए निर्धारित सार्वजनिक जमीन को किसी अन्य उपयोग में ले जाने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया है। संघ ने चेतावनी दी है कि यदि इस मामले में त्वरित कार्रवाई नहीं की गई, तो बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो सकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के छात्रों और शोधकर्ताओं को महत्वपूर्ण संसाधनों से वंचित होना पड़ेगा। जी. किरण कुमार ने राष्ट्रपति से तत्काल हस्तक्षेप की अपील करते हुए कहा, "यह जमीन विश्वविद्यालय की है और इसे इसके मूल उद्देश्य के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए।"

इस मुद्दे पर केवल AIOBCSA ही नहीं, बल्कि कई अन्य छात्र संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।

इधर, आईटी और उद्योग मंत्री डी. श्रीधर बाबू ने घोषणा की कि तेलंगाना सरकार कंचा गाचीबोवली में 400 एकड़ जमीन की नीलामी के अपने फैसले की समीक्षा कर रही है। उन्होंने कहा, "हम हैदराबाद विश्वविद्यालय से संबंधित जमीनों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।" यह बयान छात्रों और पर्यावरणविदों के बढ़ते विरोध के बाद आया है, जो इस क्षेत्र में संभावित पारिस्थितिक क्षति को लेकर चिंतित हैं।

कई संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।
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कई संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।
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कई संगठनों ने भी तेलंगाना सरकार को खुला पत्र लिखकर 400 एकड़ जमीन की नीलामी को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि यह नीलामी विश्वविद्यालय की जरूरतों के लिए आवश्यक जमीन को खतरे में डाल रही है और इससे क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचेगा।
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