गौरैया संरक्षण के लिए किए जा रहे सराहनीय प्रयास
गौरैया संरक्षण के लिए किए जा रहे सराहनीय प्रयास

विलुप्त होने की कगार पर गौरैया, संरक्षण के प्रयासों से फिर से बढ़ने लगा कुनबा

विश्व गौरैया दिवस पर व्यक्ति, संस्था व संगठनों के प्रयासों पर विशेष रिपोर्ट

नई दिल्ली/जयपुर। मकान के छज्जे, खिड़की तो कभी खुले आंगन में फुदकती गौरैया हम सब ने देखी है। उनका कलरव सुनकर हम बडे़ हुए हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में अचानक गौरैया गायब सी हो गई है, अब वो इतनी आसानी से नहीं दिखती। हम सब ने तो गौरैया के हमारे आस-पास से चले जाने पर गौर नहीं किया है, लेकिन एक युवा ने गौरैया की इस अनुपस्थिति को भांप लिया है। राजस्थान के पाली जिले के जोयला गांव निवासी ओमप्रकाश कुमावत मानव मित्र चिड़िया (घरेलू गौरैया) के संरक्षण के लिए अभियान छेड़े हुए हैं।

कुमावत ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि मां पानी देवी व पिता गुलाब राम की प्रेरणा से ही जीवन को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया है। मास्टर ऑफ सोशल वर्क में डिग्री कर चुके कुमावत 'गौरैया आओ ना' अभियान के तहत कोरोना काल में 3000 से अधिक वेस्ट वस्तुओं से निर्मित गौरैया हाऊस व 1000 से अधिक मिट्टी के गौरैया हाऊस, 2100 परिण्डा वितरण कर चुके हैं।

कुमावत कहते हैं कि कक्षा 6 में पढ़ने के दौरान पिता अक्सर श्मशान घाट में घने पेड़ों के पास ले जाकर पक्षियों के बारे में बताते थे। उन्हें दाना डालते थे। इस दौरान पर्यावरण व परिंदों के बारे में जानकारी देते की यह कैसे मानव मित्र हैं। यहीं से पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा मिली।

कुमावत ने बताया कि सोशल मीडिया के माध्यम से अब तक 6 लाख से अधिक लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया है। 6000 से अधिक पौधे बरगद, पीपल, नीम, गुलर, छायादार व फलदार, औषधीय, तथा सजावटी पौधे लगाने के साथ ही लोगों के शादी समारोह, जन्मदिन, पुण्यतिथि आदि मौके पर पौधे, परिंदे व बर्ड नेक्स्ट भेंट कर इनके उयोग के लिए भी प्रेरित किया है।

कुमावत ने अपनी दिनचर्या बना ली है कोई भी कार्यक्रम हो, लोगों को पेड़-पौधो के महत्व को बताते हुए गौरैया पक्षी के लिए गौरैया हाऊस व पौधे भी भेंट करते हैं। ताकि लोगों में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता आए।

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ऐसे शुरू किया अभियान

कुमावत कहते हैं कि आज कल पक्के मकानों में चिड़िया घोंसला बना भी ले तो घर की महिलाएं उस घोंसले को नष्ट कर बाहर फेंक देती हैं। इसका कारण तिनकों से गंदगी होना बताया जाता है। घरों में चलते पंखों से भी दुर्घटनावश घरेलू गौरैया की मौत के मामले देखे गए हैं।

घरों से निकाली गई गौरैया को वापस लाने के लिए 'गौरेया आओ ना' अभियान शुरू किया। अभियान के तहत सबसे पहले कागज के बॉक्स, वेस्ट प्लास्टिक की बंडियों और एक चाकू की मदद से अन्य सामग्री का उपयोग कर (तीन अंगुली अंदर जा सके) ऐसा गोल आकार का छेद कर उसे तार की सहायता से घर के बाहर छायादार जगह लटकाया। कुछ दिन बाद देखा कि गौरैया तिनको से घोंसला बना कर उसमें बसेरा करती हैं। यहीं से इस काम को आगे बढ़ाया।

घर-घर जाकर लोगों को वेस्ट मेटेरियल से बने घोंसले देकर सुरक्षित स्थान बांधने के लिए प्रेरित करने लगा। लोग जुड़ने लगे तो मिट्टी के घोंसले बनवा कर इन्हें इस्तेमाल करने लगे। मिट्टी के घोंसलों में चिड़िया जल्दी अपना आशियाना बनाने लगी।

अब मिट्टी के बने गौरैया हाऊस बाजार में भी मिल जाते हैं। लोगों को जागरूक कर उनसे वितरण करवाने का कार्य कर रहे हैं।

कुमावत कहते है कि गौरैया सुरक्षा की दृष्टि से कांटेदार झाडि़यों (बैर का पेड़ या बबूल का पेड़) में अपना घोंसला बनाती है। यह एक सर्वाहरी पक्षी है। गौरैया (चिड़िया) को कीड़े मकोड़े खाना पसंद है। यह बीजों (जैसे बाजरा, गेहूं, मक्का), छोटे बीज के दाने, फल और सब्जियां भी खा लेती है। ज्यादा भूख होने पर इन्हें कंकर खाते भी देखा गया है।

कुमावत गौरैया पर संकट का कारण ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन को भी मानते हैं। मोबाइल फोन के बढ़ते टावर, ध्वनि प्रदूषण से प्रजनन क्षमता में कमी, वाहनों से निकला जहरीला धुआँ, कृषि के उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनिक खाद व कीटनाशक दवाई का उपयोग, औद्योगिक प्रदूषण पक्षी व वन्यजीवों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।

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गौरैया के संरक्षण की चल रही कवायद

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से भी जाना जाता था। केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान में कार्यवाहक एसीएफ एवं क्षेत्रीय वन अधिकारी नारायण सिंह शेखावत कहते हैं कि यूं तो यहां सभी तरह के पक्षियों के लिए विशेष तौर पर काम किया जाता है। यहां बर्ड रेस्क्यू सेंटर भी बना है, लेकिन गौरैया के संरक्षण के लिए अभयारण्य की सभी चौकियों पर छप्परनुमा पूस की झोपड़ियां बनाई गई हैं। गौरैया मानव के करीब रहकर इन झोपड़ियां में अपना आशियाना बना सकें।

राजस्थान में बढ़ रही गौरैया की संख्या

राजस्थान में दशकों से पक्षियों पर विशेष कर घरेलू गोरैया के संरक्षण पर कार्य कर रहे बर्ड एग्रो फॉरेस्ट्री संस्था के स्टेट हेड डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि घरेलू गौरैया इंसानों के साथ घरों में रहना पसंद करती हैं। इसकी भी भावनाएं होती हैं। यही वजह है कि घरेलू गौरैया के विलुप्त होने का मुख्य कारण अब मानव के आधुनिकरण की तरफ झुकाव भी है।

हम देख रहे हैं परंपरागत कच्चे व छप्परपोश घरों को गिरा कर कंक्रीट से आलीशान मकानों का निर्माण तेजी से हो रहा है। यही वजह है कि शहरों में छोटे पौधों, घास और हरियाली की कमी की वजह से कीड़े (गौरैया का मुख्य आहार) की कमी आ रही है। पेड़ों की कमी के कारण घोंसलों का संकट बन रहा है।

डॉ. मेहरा आगे कहते हैं कि यह खुशी की बात है कि घरेलू गौरैया पॉपुलेशन पुनः बढ़ने लगी है। यह पर्यावरणविदों के लिए शुभ संकेत कहे जा सकते हैं। राजस्थान की बात करें तो कोरोना काल के बाद से गौरैया की जनसंख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि हमारा मकसद इसके संरक्षण का है तो इसके संरक्षण को लेकर हमे गम्भीरता रखनी होगी। हमें इन प्रयासों को निरंतर जारी रखना होगा।

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विश्व गौरैया दिवस आज

हर साल 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। गौरैया हमारे पृथ्वी से क्यों लुप्त हो रही है, आज यह बड़ा सवाल हम सभी के सामने है। आपको बता दें कि, गौरैया घरेलू पक्षियों में शामिल है। गौरैया पक्षी इंसानों के बीच में रहती है, लेकिन अब इंसानों से दूर होते जा रही है। पहले घरों के आंगन में छतों पर या मुंडेर पर दिखाई देती थी। घर आंगन में फुदकने वाली ये गौरैया ना तो अब दिखाई देती है और ना ही इसकी आवाज सुनने को मिलती है। आज वर्ल्ड स्पैरो डे मनाया जा रहा है दिल्ली की गौरैया दिल्ली की स्टेट बर्ड है कुछ सालों पहले तक हर घर में हर छत पर हर जगह नजर आने वाली गौरैया अब ज्यादा देखने को नहीं मिलती।

दिल्ली में क्या है गौरैया का हाल!

राजधानी में बढ़ते विकास और बेतहाशा कंट्रक्शन की वजह से गौरैया आबादी वाले इलाकों में नजर नहीं आ रही है। कभी इंसानों के आस-पास रहने वाली दिल्ली की स्टेट बर्ड बस तीन पसंदीदा ठिकाना अब राजधनी के बाहरी इलाके हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के बायोडायवर्सिटी पार्क प्रोग्राम के साइंटिस्ट इंचार्ज फैयाद ए खुदसर के अनुसार दिल्ली में गौरैया ने अपनी प्रजनन क्षमता नहीं खोई है। दिल्ली के कुछ हिस्से इसे काफी पसंद आ रहे हैं। राजधानी की राज्य पक्षी गौरैया को यदि घनी आबादी वाले इलाकों में रहने के लिए प्राकृतिक घरौंदा मिल जाए तो वह दोबारा राजधानी की शान बन सकती है। अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में गौरैया के लिए एक खास जगह बनाई है। यह हर उस चीज का ध्यान रखा गया है जो गौरैया के लिए जरूरी है जहां कटीले पौधे लगाए हैं, जिससे टींट, झरबेरी के साथ बबूल की छोटी प्रजातियां भी शामिल है। जमीन पर घास लगाई है। इन सब प्रयासों की वजह से गौरैया यहां खूब नजर आ रही हैं।

मीडिया रिपोर्ट में आईपीयू के प्रोफेसर डॉ. सुमित डोगरा ने बताया कि घनी आबादी वाले इलाकों में लोगों ने जगह जहां कबूतर को दाना डालना शुरू कर दिया। इससे कबूतरों की संख्या बढ़ने लगी और गौरैया के घोंसला बनाने की जगह कबूतरों ने कब्जा जमा लिया। यमुनापार के किनारों पर भी खूब नजर आती हैं इस पार्टी के किनारों पर गांव है। गौरैया गांव में खाना लेती है और पार्कों में बैठती है।

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