भरतपुर में गौरैया की बढ़ती संख्या में आई तेजी से गिरावट की बड़ी वजहें

गौरैया
गौरैयाफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक
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राजस्थान/जयपुर। यहां अब घरों में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई नहीं देती। एक वक्त था जब चिड़ियों की चहचहाहट से नींद खुलती थी। शहरों में अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई। राजस्थान में भरतपुर केवला राष्ट्रीय पक्षी उद्यान व सवाईमाधोपुर में रणथम्भोर टाइगर रिजर्व व अलवर जिले के सरिस्का के जंगलों के आसपास गांवो में इनको देखा जा सकता है। हालांकि आधुनिकता यहां भी नन्ही चिड़िया (गौरैया) की वृद्धि को प्रभावित कर रही है। समय रहते यदि इसे मनुष्य का सहयोग नहीं मिला तो गांवो से भी इनका लुप्त होना तय माना जा रहा है।

सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के परामर्शक के रूप में सेवा दे रहे स्वतंत्र वैज्ञानिक (Freelance Scientist) व पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा ने द मूकनायक से बात करते हुए गौरैया के जीवन पर नकारात्मक व सकारात्मक पक्ष रखते हुए बात की। उन्होंने धीरे-धीरे विलुप्त होती गौरैया के सरंक्षण के लिए मनुष्य को दयालुता दिखाने की जरूरत बताई।

डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा, पक्षी वैज्ञानिक
डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा, पक्षी वैज्ञानिकफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा कहते हैं कि, पक्षियों में कुछ प्रजाति है जो मनुष्य से दूरी रखती है। कुछ मनुष्य के समीप रहकर ही जिंदा रह सकती हैं। गौरैया मनुष्य के निकट रहने वाली प्रजाति है। मनुष्य ने आधुनिकता की दौड़ में इसकी आवासीय परिस्थितियों को समाप्त करके इसकी जनसंख्या वृद्धि पर पहला कुठारा घात किया। आवासीय अनुकूलता समाप्त हुई तो इनके पॉपुलेशन वृद्धि में रुकावट आई। या यूं कहें कि जो इसके रक्षक थे वो ही भक्षक बन गए।

दूसरा कारण इंसान इन्हें दाना तो डालते हैं, लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि इंसान बाजार में जाकर स्वयं के लिए तो स्वच्छ व उच्च गुणवत्ता वाला अनाज खरीदते हैं, लेकिन पक्षियों के लिये रसायन, पेस्टीसाइड से इन्फेक्टेड व रिजेक्ट दाना खरीद कर इन्हें परोसते हैं। इन्फेक्टेड भोजन से भी इनकी असमय मौत होती है।

गौरैया
गौरैयाफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

इसकी जनसंख्या वृद्धि में गिरावट में तीसरा बड़ा कारण ग्लोबलीय घटनाक्रम भी माना गया है। शहरी इलाकों में मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या भी इन्हें प्रभावित कर रही है। कम्युनिकेशन के वायरलेस सिस्टम से निकलने वाली किरणे भी इन्हें प्रभावित कर रही हैं। इससे इनके अंडे भी इफेक्टेड हो रहे हैं। इससे भी इनकी वृद्धि में गिरावट देखी गई है। मोबाइल टावरों की किरणों से पक्षियों की उतपत्ति प्रभावित होने के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सवाल पर उन्होंने कहा कि, "इस पर यूरोप में काफी रिसर्च हुआ है। रॉयल सोसायटी फ़ॉर प्रोटक्शन ऑफ बर्ड ने भी इस पर रिसर्च किया है। इसमें मोबाइल टावर की किरणों से पक्षियों को इफेक्ट करने की पृष्ठी हुई है। हालांकि भारत मे इसका इतना प्रभाव नहीं देखा गया है।"

गौरैया
गौरैयाफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

बढ़ रही संख्या, सरंक्षण की जरूरत

जहां दुनिया भर से गौरैया के विलुप्त होने की मीडिया रिपोर्ट आ रही है। इसी बीच डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा ने पक्षी प्रेमियों के लिए खुशखबरी दी है। डॉ. मेहरा ने द मूकनायक से कहा कि, "यह आपको नई बात लगेगी की एक बार फिर से गौरैया की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है। हिंदुस्तान में अब इसका नम्बर बढ़ रहा है। यह भी सही है कि गौरैया एक दम से डाउन हुई थी। अब इसने पुनः अनुकूलता दिखानी शुरू कर दी है। पॉपुलेशन में वृद्धि देखी जा रही है। इस पर तत्काल हमे एक्शन लेना होगा। हमे पूर्व की तरह गौरैया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने होंगे। यदि हम नहीं सम्भले तो फिर यह खत्म हो जाएंगी। इस बार खत्म हुई तो फिर नहीं आ पाएगी।" डॉ. मेहरा कहते हैं कि, "राजस्थान में इसकी कभी गणना नहीं हुई है। हम ही भरतपुर केवलादेव उद्यान में शाकुंतलम आवास बना कर स्टडी कर रहे थे। इसमें लगभग 300 गौरैया थी। हमें किसानों को जागरूक करना होगा। किसानों के साथ मिलकर ही गौरैया का सरंक्षण हो सकता है।"

गौरैया
गौरैयाफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

भरतपुर में प्रकृति से छेड़छाड़ भी डाल रहा प्रभाव

पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सत्यप्रकाश ने भरतपुर में रहकर गौरैया के सरंक्षण के लिए लम्बे समय तक काम किया है। वह कहते हैं कि, भरतपुर केवलादेव पक्षी अभ्यारण्य पर हम गर्व करते थे, लेकिन अब इसे सीमेंटेड किया जा रहा है। नेचुरलता खत्म की जा रही है। आप प्राकृतिक स्थल के भ्रमण के लिए जा रहे हो, लेकिन आपकी एंट्री कंक्रीट के द्वार से हो रही है। इसका हमने विरोध भी किया था। हमने कहा कि प्राकृतिक स्थल को कॉन्क्रोटाइजेशन की तरफ ले जाना गलत है। केवलादेव की तरफ मोबाइल टावरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब 5 जी शुरू हो रहा है यह और भी घातक होने वाला है। इसमें आवासों का जो कॉन्क्रोटाइजेशन हो रहा यह भी नकारात्मक है।

गौरैया
गौरैयाफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

डॉ. मेहरा कहते हैं कि, भरतपुर के आसपास गांवो में अभी यह नजर आती हैं, लेकिन यहां जो रसायन युक्त भोजन उन्हें दिया जा रहा है यह उन्हें इफेक्ट कर रहा है। खास बात यह है अभ्यारण्य के चारों तरफ खेती में पेस्टीसाइड का उपयोग बढा है। साथ ही जब से किसान ने दलहन की खेती छोड़ सरसो की फसल की बुवाई शुरू की है इसके भोजन की कमी आई है। प्राकृतिक रूप से खेतों में गिरने वाले दलहन के दाने इनके प्रमुख भोजन थे। हमने क्रॉप पैटर्न भी बदल दिया। सरसो कम लागत में अच्छी पैदा होती है। भरतपुर सरसो उत्पादन का हब है। जबकि सरसो गौरैया का भोजन नहीं है।

"हमने राजस्थान में देखा है कि गौरैया ज्यादातर इंसानी घरो में कम ऊंचाई वाले स्थान, छोटे-छोटे पेड़, झाड़ियों में अपने घोंसले बनाना पसंद करती है। विशेष बबूल, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस और कनेर आदि पेड़-पौधे गौरैया के घर बनाने के लिए पहली पसंद माने जाते हैं। इन पेड़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जब ये दूसरी जगहों पर घोंसला बनाती हैं तो इनके बच्चों को बिल्ली, कौए, चील व बाज अपना शिकार बना लेते हैं। पहले लोग अपने घरों के आंगन में इन पक्षियों के लिए दाना और पानी रखते थे। अब उसमें भी कमी आई है। राजस्थान में जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों की संख्या खत्म हुई है। जबकि गौरैया का यह सबसे पसंदीदा भोजन माना जाते हैं," डॉ. मेहरा ने समझाया।

गौरैया डॉक टिकट
गौरैया डॉक टिकटफोटो साभार- डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा

मानवीय लालच भी गौरैया के खात्मे का मुख्य कारण

उदयपुर के वाइल्ड फ़ोटो ग्राफर व पक्षी विशेषज्ञ देवेंद्र मिस्त्री ने द मूकनायक को बताया कि गांवो के मुकाबले शहरी क्षेत्रों से गौरैया की संख्या तेजी से कम हो रही है। हालांकि गांव भी विकास के नाम पर कस्बों में तब्दील हो रहे हैं। नए आधुनिक सुविधाओं वाले मकान बनने लगे हैं। फैशन के इस दौर में घरों के खिड़की, दरवाजे बंद हो गए। रोशनदानों को लोहे की जालियों (वायर नेट) से बन्द कर दिया गया। घरों की बनावट में बदलाव आया तो गौरैया भी अपना आशियाना छोड़ कर निकल गई। या फिर भूखे प्यासे दम तोड़ने लगी।

देवेंद्र मिस्त्री, पक्षी विशेषज्ञ उदयपुर
देवेंद्र मिस्त्री, पक्षी विशेषज्ञ उदयपुरफोटो साभार- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

देवेंद्र कहते हैं, "गली-कूंचों में उगने वाले झाड़-झंकाड़ व घास-फूस तक हमने नष्ट कर दिए। सब सीमेंटेड हो गया। घरों के आसपास उगने वाली कई तरह की बीजो वाली घास, जड़ी-बूटियां खत्म हो गई। तितली पतंगे भी नष्ट हो रहे हैं। गौरैया के भोजन के काम आने वाले कीट-पतंगे भी मिलना मुश्किल हो गया है। आंगन के खुले देलान (घर के सामने की जगह) में लगे पेड़-पौधे भी नजर नहीं आते। तंगदिली से आंगन तो छोटे हुए हमने इंसानों के साथ बसेरा करने वाली चिड़िया को ही भुला दिया। हमने असहिष्णुता दिखाई। कंटीले झाड़, छोटे पौधे, मेहंदी की झाड़ियां जिनमें यह पक्षी स्वयं को सुरक्षित महसूस करत है, घोंसला लगाना बन्द कर दिया है। गौरैया के लिए सुरक्षित स्थान नहीं रहे तो यह जीव कैसे रहेगा।"

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