"जंगल छोड़ब नहीं, लड़ाय छोड़ब नहीं" जैसे गीतों के जरिए आंदोलन की आवाज़ दिल्ली को सुनाने पहुंचे हसदेव के युवा

‘द मूकनायक’ से बात करते हुए रामलाल करियाम ने बताया कि किस तरह से हसदेव अरण्य में रहने वाले लोगों को और वन्यजीव को नजरअंदाज करके बलपूर्वक पेड़ों की कटाई की जा रही है और जंगल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए  आंदोलन कर रहे लोग.
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे लोग. रामलाल करियाम.

नई दिल्ली। “हसदेव अरण्य को बचाने के लिए हम सालों से संघर्ष कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें रही, लेकिन किसी ने भी जंगल बचाने की गुहार लगा रहे लोगों की नहीं सुनी। जब कांग्रेस सरकार के समय हसदेव जंगल में पेड़ काटे जा रहे थे तो बीजेपी ने उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव के निवास का घेराव किया था और खुद को हसदेव के लोगों और पर्यावरण का हितैषी बताया था। लेकिन जब बीजेपी सत्ता में आई तो मंत्रिमंडल का ऐलान होने से पहले ही वहाँ पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री बनने के 7 दिन बाद ही हसदेव में 15 हजार पेड़ काट दिए गए। इससे वहाँ रहने वाले हाथियों के एक झुंड ने गुस्से में आकर 10 किलोमीटर आगे के एक गांव पर हमला कर दिया और कई घरों को उजाड़ दिया। इसमें एक आदमी की मौत भी हो गई।" यह कहना है ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के 34 वर्षीय युवा रामलाल करियाम (ग्राम हरियरपुर) का, जो रविवार को अपनी मांगों को लेकर एक प्रेस वार्ता के लिए दिल्ली आए थे।

रामलाल करियाम कहते हैं, "हसदेव लोगों की जीवनधारा है- इसकी नदियाँ किसानों की ज़मीनों को पानी देती हैं, यह हमें जड़ी-बूटियाँ, भोजन और आजीविका प्रदान करती हैं। लेकिन जब हसदेव के लोग विरोध करते हैं, तो राज्य और कॉरपोरेट की संयुक्त ताकत द्वारा उन्हें चुप करा दिया जाता है, जेल में डाल दिया जाता है और डरा दिया जाता है।"

हसदेव को लेकर पारिस्थितिकीविज्ञानी (ecologist) सौम्या दत्ता ने कहा, “मध्य भारत में सबसे बड़े वन के रूप में हसदेव का बहुत महत्व है, जो सिर्फ हसदेव के लोगों को ही नहीं, बल्कि देश के सभी लोगों को प्रभावित करता है। जलवायु संकट को रोकने में ऐसे वनों की केंद्रीय भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता और मानवता का भविष्य हसदेव जैसे संघर्षों की सफलता पर निर्भर करता है।”

प्रेस वार्ता के लिए दिल्ली पहुंचे हसदेव के युवा.
प्रेस वार्ता के लिए दिल्ली पहुंचे हसदेव के युवा.सौम्या राज, द मूकनायक.

हसदेव को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ और ‘जन मुक्ति मोर्चा’ के कुछ लोग रविवार को अपनी बातों को रखने के लिए दिल्ली पहुँचे और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में मीडिया को संबोधित किया। ‘द मूकनायक’ ने दिल्ली पहुँचे हसदेव के लोगों से बातचीत की और यह जानने का प्रयास किया कि अभी वहाँ के क्या हालात हैं, आंदोलन कैसा चल रहा है, उनकी क्या माँग है और हसदेव के जंगल कटने से उनके जीवन, आजीविका पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

‘द मूकनायक’ से बात करते हुए रामलाल करियाम ने बताया कि किस तरह से हसदेव अरण्य में रहने वाले लोगों और जंगली जानवरों को नजरअंदाज करके बलपूर्वक पेड़ों की कटाई की जा रही है और जंगल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार किया जा रहा है।

‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के युवा साथी रामलाल करियाम.
‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के युवा साथी रामलाल करियाम. सौम्या राज, द मूकनायक.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 21 दिसंबर 2023 को रात के समय छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की उदयपुर तहसील में पड़ने वाले हसदेव अरण्य के उस हिस्से में पेड़ों की कटाई शुरू की गई, जहाँ परसा ईस्ट केते बासेन कोल परियोजना प्रस्तावित है। इस दौरान यहां के गांव घाट बर्रा के पेंड्रामार जंगल को पूरी तरह से काट दिया गया। जंगल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे स्थानीय लोगों को या तो पहले ही हिरासत में ले लिया गया या पुलिस द्वारा उनको अपने ही घर में नजरबंद कर दिया गया। हफ्ते भर तक चली इस कार्यवाही में 15000 से भी ज्यादा पेड़ काट दिए गए। हसदेव अरण्य में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का काम पहली बार नहीं हुआ, इससे पहले भी सितम्बर 2022 में वन क्षेत्र के 43 हेक्टेयर इलाके में 8000 से ज्यादा पेड़ काट दिए गए थे।

हसदेव अरण्य के जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जिनका आदिवासी विरोध कर रहे हैं। इन तीनों खदानों का प्रबंधन और खनन का काम राजस्थान सरकार ने अडानी समूह को सौंप दिया है। यहाँ के लोगों का कहना है हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है, जिसे परसा ईस्ट और केते बासन कोयला ब्लॉक में कोयला खनन के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम में 74% हिस्सेदारी दी गई है। हसदेव में हो रहे भारी मात्रा में पेड़ों की कटाई और कोयला खनन पारिस्थितिक विनाश की रूपरेखा तैयार कर रहा है।

साढ़े सात सौ दिन से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं स्थानीय लोग

‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के नेतृत्व में पिछले 2 साल से स्थानीय लोग हसदेव जंगल को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। ‘द मूकनायक’ से बातचीत करते हुए संघर्ष समिति के रामलाल करियाम कहते हैं, “हसदेव को बचाने के लिए हम पिछले 10 साल से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन हमारी बात कोई नहीं सुन रहा है। अपनी जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए हमें अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए क़रीब साढ़े सात सौ दिन हो गए हैं। अभी चुनाव को लेकर पेड़ों की कटाई तो बंद कर दी गई है, लेकिन जहां पहले पेड़ काटे गए हैं, वहाँ खनन की प्रक्रिया जारी है।”

पुलिस पर फ़र्जी तरीक़े से गिरफ़्तार करने का आरोप

आगे करियाम जोड़ते हैं, “हमारे आंदोलन के जो मुखिया साथी हैं जो लगातार अपनी माँगों को लेकर बैठे हुए हैं उन्हें पुलिस हिरासत में लेती है। पुलिस गाँव के चप्पे-चप्पे पर घूमती है और गाँव की जो महिलाएं हैं उनको भी बाहर नहीं जाने देती है। हमें फ़र्जी तरीक़े से गिरफ़्तार किया जा रहा है और हमारे आंदोलन को कुचला जा रहा है।”

हसदेव की लड़ाई में महिलाएँ अगुवा हैं

आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को लेकर सवाल पूछने पर करियाम बताते हैं, “हसदेव की लड़ाई में महिलाएँ सबसे आगे हैं, इस आंदोलन में उनका योगदान बहुत ज़्यादा है, इस लड़ाई में वे अगुवा हैं, वे आंदोलन को लीड कर रही हैं।”

“जंगल हमारे लिए एक बैंक है, इसी से हम अपना गुजारा करते हैं”

‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के युवा साथी करियाम बताते हैं, "हसदेव में 2011-12 से परसा ईस्ट केते बासेन माइनिंग चालू है। इसके तहत अब तक 4 से 5 लाख पेड़ काटे जा चुके हैं।" वे कहते हैं, "हसदेव के लोगों की संस्कृति जंगल से जुड़ी हुई है, जंगल हमारे लिए एक बैंक है। जंगल से जो चीज़ें मिलती हैं, उससे हमारी जीविका चलती है। जैसे, तेंदू पत्ता को इक्कठा कर हम उनका बिक्री करते हैं, ऐसी कई जड़ी-बूटियाँ हैं जो हमें जंगल से मिलती है जिसे हम उपयोग करते हैं और उसे बेच कर अपना गुजारा भी करते हैं।”

“हसदेव भारत का फेफड़ा है, इसे न काटा जाए”

वह कहते हैं कि हसदेव जैव विविधता से परिपूर्ण जंगल है, वहाँ हाथियों और कई जानवरों का रहवास है। जंगल के कटने से सिर्फ़ वहाँ के लोगों को नहीं बल्कि पूरे देश को नुक़सान होगा। हसदेव जंगल भारत का फेफड़ा है, यह पूरे देश को ऑक्सीजन देता है…अगर ये ख़त्म हो जाएगी तो इससे पूरा देश तबाह हो जाएगा। वे जोड़ते हैं, “कोविड-19 के समय लोग जिस ऑक्सीजन के लिए तरस रहे थे, हसदेव के कटने से वो ऑक्सीजन हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी।” वे सरकार से गुहार लगाते हुए कहते हैं कि हसदेव के जंगल को न काटा जाए, इसके जगह पर जहां बंजर ज़मीन है सरकार वहाँ से कोयला निकाले, लेकिन हमारे जंगल को सुरक्षित रहने दिया जाए।”

मूलचंद चंदेल, जन मुक्ति मोर्चा समिति.
मूलचंद चंदेल, जन मुक्ति मोर्चा समिति.सौम्या राज, द मूकनायक.

प्रभावित लोगों के लिए नहीं की गई है कोई वैकल्पिक व्यवस्था

वहीं इस बारे में हमसे बात करते हुए जन मुक्ति मोर्चा समिति के सदस्य मूलचंद चंदेल जी बताते हैं, “हसदेव की कटाई से वहाँ के लोगों के जीवन-यापन में बहुत प्रभाव पड़ेगा। जंगल की कटाई से जो लोग, जो किसान प्रभावित हुए हैं, उनकी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है। उत्खनन पहले मैनुअली पद्धति से होता था लेकिन अब मशीनीयुक्त तरीक़े से वहाँ माइनिंग हो रही है जिससे वहाँ रहने वाले लोगों, जीव-जंतु सबका जीवन बहुत प्रभावित हो रहा है।”

देश के सबसे समृद्ध और घने जंगलों में से एक है हसदेव

छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव-विविधता से परिपूर्ण भारत के सबसे घने जंगलों में से एक है। यह क्षेत्र हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट एरिया है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के लोगों को पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति करता है। यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध वन है जो मध्य प्रदेश के कान्हा के जंगल, झारखंड के पलामू के जंगलों से जोड़ता है। यह वन क्षेत्र हाथी समेत 25 महत्वपूर्ण वन्यजीवों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी क्षेत्र है।

उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि छत्तीसगढ़ का हसदेव बांगो बांध, जिस हसदेव नदी पर है, उसका जल संग्रहण क्षेत्र हसदेव का जंगल ही है। अगर जंगल कटे और खनन गतिविधियां शुरू हुईं तो चार लाख हेक्टेयर के इलाके में सिंचाई करने वाला हसदेव बांगो बांध भी संकट में आ जाएगा।

‘द मूकनायक’ ने जन मुक्ति मोर्चा के जनकवि चंद्रशेखर यादव से भी बात की। चंद्रशेखर आदिवासी लोकगीतों के माध्यम से हसदेव बचाओ आंदोलन की आवाज़ बन रहे हैं। वह अपने ढंग में इन गीतों को गाकर लोगों तक आंदोलन की आवाज़ पहुँचा रहे हैं। बातचीत के दौरान वे ऐसा ही एक गीत गाकर सुनाते हैं– गाँव छोड़ब नहीं, जंगल छोड़ब नहीं, माय माटी छोड़ब नहीं लड़ाय छोड़ब नहीं...।।

अपने साथियों संग लोकगीत सुनाते जनकवि चंद्रशेखर यादव.
अपने साथियों संग लोकगीत सुनाते जनकवि चंद्रशेखर यादव. सौम्या राज, द मूकनायक.

2010 से शुरू हुआ हसदेव के विनाश का सिलसिला

हसदेव वन क्षेत्र में खनन के जरिए विनाश का सिलसिला साल 2010 में शुरू हुआ। तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। वहीं राज्य में बीजेपी की सरकार थी। उस समय की रमन सिंह की सरकार ने इस वन क्षेत्र में खनन का प्रस्ताव बनाकर भेजा और केंद्र सरकार ने इसकी स्वीकृति दी। 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो एरिया घोषित किया था। फिर इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति FAC ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे साल 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने निरस्त भी कर दिया।

इन सबके बावजूद परसा कोल ब्लॉक का काम शुरू कर दिया गया। यह आवंटन राजस्थान सरकार को दिया गया। राजस्थान सरकार की राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड कंपनी ने इसका एमडीओ अडानी को दे दिया। तब से अडानी की कंपनी इस क्षेत्र से कोल खनन का काम कर रही है।

हसदेव अरण्य क्षेत्र एक तरफ जैव विविधता के कारण नो गो एरिया घोषित हैं। वहीं दूसरी ओर अनुसूचित क्षेत्र होने के कारण वहां की ग्राम पंचायतों को पेसा (PESA) कानून का विशेषाधिकार भी मिला हुआ है। स्थानीय लोगों ने अपने इन अधिकारों का प्रयोग करके भी हसदेव को बचाने का प्रयास किया, लेकिन उनका कहना है कि वन अधिकार अधिनियम, 2005 और अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार अधिनियम (PESA), 1996 के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड की ओर से फर्जी ग्राम सभाएं आयोजित कर कागजी कार्यवाही में यह दिखा दिया गया कि इस क्षेत्र में खनन की अनुमति लेने में पेसा कानून का पालन किया गया है।

छत्तीसगढ़ के आदिवासी मुंबई से भी बड़े 1878 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य के घने जंगल में कोयला खनन का विरोध पिछले एक दशक से कर रहे हैं लेकिन इन आवाज़ों को सुनने वाला कोई नहीं है। सरकारें बदलती रहती हैं और इनसे तरह-तरह के वादे करती हैं, लेकिन ये वादे और दावे कभी पूरे नहीं होते। सरकार और कॉर्पोरेट घराने अपने फ़ायदे के लिए यहाँ वनों की कटाई कर रही है और इसे बचाने को लेकर आंदोलन कर रहे स्थानीय लोगों की आवाज़ों को अनसुना कर उन्हें हाशिए पर धकेल दे रही है।

छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए  आंदोलन कर रहे लोग.
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