राजस्थान के लेखक भंवर मेघवंशी की पुस्तक 'पथिक मैं अरावली का' कलिंग लिटरेरी फेस्टिवल बुक अवॉर्ड्स की हिंदी नॉन-फिक्शन लांगलिस्ट में शामिल

यह किताब भारत के सबसे प्राचीन पर्वत अरावली की यात्रा पर हैं,224 पृष्ठ की यह किताब फरवरी-2024 में प्रकाशित हुई थी,राज पाल एंड संस ने इसे प्रकाशित किया
पुस्तक में मेघवंशी ने अरावली से ध्वस्त होती प्रकृति और इसके विनाश पर चिंता व्यक्त की है।
पुस्तक में मेघवंशी ने अरावली से ध्वस्त होती प्रकृति और इसके विनाश पर चिंता व्यक्त की है।
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जयपुर- बहुचर्चित पुस्तक 'मैं एक कारसेवक था' के लेखक भंवर मेघवंशी की नई पुस्तक "पथिक मैं अरावली का" को कलिंग लिटरेरी फेस्टिवल बुक अवॉर्ड्स की हिंदी नॉन-फिक्शन श्रेणी में लांगलिस्ट किया गया है।

पेशे से पत्रकार, आदत से एक्टिविस्ट और वृत्ति से घुमक्कड़ मेघवंशी जन-आंदोलन से जुड़े रहे हैं और वंचितों के प्रति पक्षधरता रखते हैं। वे अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक बदलाव के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

"पथिक मैं अरावली का" पुस्तक में मेघवंशी ने अरावली की यात्रा का एक विस्तृत वर्णन किया है।

यह किताब भारत के सबसे प्राचीन पर्वत अरावली की यात्रा पर हैं,224 पृष्ठ की यह किताब फरवरी-2024 में प्रकाशित हुई थी,राज पाल एंड संस ने इसे प्रकाशित किया।

पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा है कि "अरावली सिर्फ़ पहाड़ ही नहीं है, वह हमारी सभ्यता और संस्कृति का संरक्षक भी है। अरावली की यात्रा के दौरान जहाँ मुझे ध्वस्त सभ्यताएँ भी दिखीं तो युद्ध की रणभेरियों के मैदान भी मिले। आदिदेव शिव तो बार-बार सामने आते ही रहे पर महावीर भी कोई कम मंदिरों में नहीं दिखे, यहाँ तक कि बुद्ध और मोहम्मद के चाहने वाले भी खूब मिले। कुल मिलाकर एक लघु भारत की खोज का अवसर मिला और जिस ‘आइडिया आफ़ इंडिया’ की बात बार-बार होती है, उसकी झलक अरावली में जगह-जगह मिली। लेकिन साथ ही मिले तेज़ी से ध्वस्त होते वहाँ के पहाड़, जंगल, पेड़-पौधे और प्रकृति के विनाश के अनगित उदाहरण। ये सब देखकर महसूस हुआ कि आने वाले समय में शायद अरावली पर्वत केवल किताबों में ही पढ़ने-देखने को मिलेगा और भविष्य की पीढ़ियाँ क्या इसका महत्त्व समझ पायेंगी...’’

पुस्तक में मेघवंशी ने अरावली से ध्वस्त होती प्रकृति और इसके विनाश पर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि यदि यही स्थिति रही तो भविष्य में अरावली पर्वत केवल किताबों में ही पढ़ने-देखने को मिलेगा।" पुस्तक की विशेषता यह है कि यह केवल यात्रा-वृत्तांत नहीं है, बल्कि एक सामाजिक-सांस्कृतिक दस्तावेज़ भी है, जो भारत की विविधता और एकता को दर्शाती है। साथ ही यह पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है।

पुस्तक में मेघवंशी ने अरावली से ध्वस्त होती प्रकृति और इसके विनाश पर चिंता व्यक्त की है।
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