भोपाल। राजधानी भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा, जिसने 1984 में गैस त्रासदी के रूप में लाखों जिंदगियों को प्रभावित किया, अब एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे से भरे 12 कंटेनर भोपाल से पीथमपुर के लिए रवाना किए गए। कड़ी सुरक्षा के बीच ये कंटेनर 4 जनवरी को सुबह इंदौर समीप धार जिले के आद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर के आशापुरा स्थित रामकी एनवायरो फैक्ट्री पहुंचे। यहां इस कचरे को नष्ट करने की योजना है।
कचरे के निष्पादन को लेकर पीथमपुर में स्थानीय जनता और विभिन्न संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। लोग इस बात से चिंतित हैं कि यह जहरीला कचरा उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। पीथमपुर बचाओ समिति ने विरोध का नेतृत्व किया और जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। इसके अलावा, करीब 40 युवाओं ने अनिश्चितकालीन धरने पर बैठने का निर्णय लिया है। विरोध प्रदर्शनों के बीच 3 जनवरी को पीथमपुर बंद का ऐलान भी किया गया है। स्थानीय नेताओं ने घर-घर जाकर लोगों से बंद का समर्थन करने की अपील की है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस मुद्दे पर जनता से अपील की कि वे इसे राजनीतिक रंग न दें। उन्होंने कहा,"सारे वैज्ञानिक परीक्षणों और रिपोर्ट्स के अनुसार, इस कचरे के निपटान से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही यह प्रक्रिया शुरू की गई है।"
मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने स्थानीय लोगों, संगठनों और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक की और भरोसा दिलाया कि सरकार इस मामले में जवाबदेही से काम कर रही है।
इस मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से मुलाकात की और मुख्यमंत्री से अपील की कि कचरे के निष्पादन को रोका जाए। पटवारी ने कहा, "यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा पीथमपुर में नष्ट करने से आने वाली कई पीढ़ियां प्रभावित होंगी। यह फैसला जनहित में नहीं है।"
रामकी एनवायरो कंपनी को यह कचरा नष्ट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कंपनी का दावा है कि उनके पास इस काम के लिए आधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता है। हालांकि, स्थानीय लोग कंपनी की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर पीथमपुर तक विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह मुद्दा और बड़ा रूप ले सकता है।
1. क्या सरकार ने कचरे के निष्पादन से पहले जनता को विश्वास में लिया?
2. क्या वैज्ञानिक परीक्षण पर्याप्त हैं, या केवल रिपोर्ट्स के आधार पर निर्णय लिया गया है?
3. क्या सरकार इस बात की गारंटी दे सकती है कि इस प्रक्रिया से पर्यावरण या स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होगा?
भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री परिसर में जमा जहरीले कचरे पर चिंता व्यक्त करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा ने द मूकनायक प्रतिनिधि से कहा कि यहां मौजूद 337 टन कचरा कुल जहरीले कचरे का मात्र एक प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री परिसर के 36 एकड़ क्षेत्र में जहरीला कचरा दबा हुआ है, जो आसपास के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। साथ ही, एक तालाब भी इस जहरीले कचरे की चपेट में है, जिससे स्थानीय जल स्रोत दूषित हो रहे हैं।
ढींगरा ने आगे कहा, "केवल कचरे को हटाना समस्या का समाधान नहीं है। जहरीले प्रभाव को खत्म करने के लिए जमीन और पानी की गहराई से सफाई आवश्यक है।" उन्होंने यह भी कहा कि बिना समग्र दृष्टिकोण के, यह कचरा पर्यावरण और मानव जीवन पर लंबे समय तक गंभीर खतरा बना रहेगा।
धार जिले के पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के जहरीले औद्योगिक अपशिष्ट कचरे के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ता जा रहा है। इस कचरे के प्रभाव से होने वाली गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और पर्यावरणीय क्षति को लेकर स्थानीय निवासियों में गहरी चिंता है। इस मुद्दे को लेकर भारत आदिवासी पार्टी के विधायक कमलेश्वर डोडियार बीती रात से धरने पर बैठे हैं। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन लोगों को मरने से बचाने और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है।
डोडियार ने प्रशासन और सरकार से इस जहरीले कचरे को जल्द से जल्द हटाने की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आंदोलन और व्यापक होगा। स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं, जिससे स्थिति और गंभीर होती जा रही है। आंदोलनकारियों का कहना है कि उनका उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण देना है।
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