एमपी: 19 साल बाद पार्वती, कालीसिंध और चंबल परियोजना का विवाद खत्म, क्यों इतने सालों तक बंद रहा यह प्रोजेक्ट?

साल 2005 से विवादों में घिरा यह प्रोजेक्ट अब पुनः शुरू होगा। इससे नौ जिलों में 3.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। जिससे हजारों किसानों को फायदा पहुँचेगा।
चंबल नदी
चंबल नदी

भोपाल। 19 वर्षों बाद आखिरकार राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच पार्वती, कालीसिंध और चंबल परियोजना को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया। साल 2005 से विवादों में घिरा यह प्रोजेक्ट पुनः प्रारम्भ होगा। रविवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के साथ बैठक की और दोनों मुख्यमंत्री दिल्ली पहुंचे, जहां केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की उपस्थिति में जल शक्ति मंत्रालय के श्रम शक्ति भवन स्थित कार्यालय में दोनों राज्य और केंद्र की सरकारों के बीच त्रिपक्षीय समझौता पत्र पर सहमति (एमओयू) हो गई।

समझौते के बाद अब एकीकृत पार्वती, कालीसिंध और चंबल परियोजना का विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन बनाया जाएगा। मध्य प्रदेश में सात सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण होगा। इससे नौ जिलों में 3.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। जिससे हजारों किसानों को फायदा पहुँचेगा।

इस परियोजना से चंबल और मालवा अंचल के 13 जिलों को फायदा होगा. प्रदेश के ड्राई बेल्ट वाले जिलों मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, भिंड और श्योपुर में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी। इसके साथ-साथ मालवा क्षेत्र के इंदौर, उज्जैन, धार, आगर-मालवा, शाजापुर, देवास और राजगढ़ के जिलों को लाभ मिलेगा। साथ ही औद्योगीकरण को और बढ़ावा मिलेगा।

प्रदेश के मालवा और चंबल अंचल में लगभग तीन लाख हेक्टेयर का सिंचाई रकबा बढ़ेगा। इन अंचलों के धार्मिक और पर्यटन केंद्र भी विकसित होंगे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बताया कि यह परियोजना 5 वर्ष से कम समय में पूरी होगी। इसकी वर्तमान लागत करीब 75000 करोड़ रुपये है। प्रदेश की करीब 1.5 करोड़ आबादी इस परियोजना से लाभान्वित होगी। सीएम ने कहा कि यह परियोजना प्रदेश की गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, जैसी समस्याओं का समाधान कर प्रदेशवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाएगी।

उन्होंने कहा, परियोजना के शुरू होने के बाद इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और 30 लाख किसान परिवारों को सिंचाई और नौ जिलों की आबादी को पेयजल उपलब्ध होगा।

बता दें की, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदी जोड़ो अभियान प्रारंभ किया था। वर्ष 2003 में योजना बनी और नदी जोड़ो अभियान चला। लेकिन राज्यों के बीच सहमति नहीं बनने पर यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चले गए। मध्य प्रदेश और राजस्थान में नई सरकार, और नए मुख्यमंत्री बनते ही दोनों ही राज्यों की आपसी सहमति से समझौता हो गया।

सात सिंचाई परियोजनाओं का होगा निर्माण

दोनों राज्यों में हुए समझौते के मुताबिक संशोधित पार्वती कालीसिंध चंबल परियोजना में कुंभराज काम्प्लेक्स, सीएमआरएस काम्प्लेक्स, लखुंदर बैराज, रणजीत सागर परियोजना तथा ऊपरी चंबल कछार में सात सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण होगा। परियोजनाओं से 3 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा भूमि सिंचित क्षेत्र में शामिल होगीं.

90 प्रतिशत देगी केंद्र सरकार

राजस्थान अपनी ईआरसीपी (ईस्ट राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट) में मध्य प्रदेश की आपत्ति को दूर करने के लिए 75 प्रतिशत डिपेंडिबिलिटी की राष्ट्रीय गाइडलाइन का पालन करने तैयार हो गया है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में पीकेसी (पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक प्रोजेक्ट) गांधी सागर बांध की अपस्ट्रीम में चंबल, क्षिप्रा और गंभीर नदी पर प्रस्तावित छोटे बांधों के निर्माण पर भी सहमति बनी है। इस परियोजना में 90 प्रतिशत केंद्र सरकार देगी और अपनी-अपनी सीमा में बनने वाले प्रोजेक्ट की लागत का सिर्फ 10 प्रतिशत मध्य प्रदेश और राजस्थान देंगे। मध्य प्रदेश में परियोजना की अनुमानित लागत 22 हजार करोड़ रुपये होगी।

यह था विवाद

ईस्ट राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) के लिए बांध बनाने व पानी बंटवारे को लेकर एमपी और राजस्थान के बीच विवाद हो गया था। राजस्थान सरकार का आरोप था कि 2005 में हुए समझौते के अनुसार ही बांध बनना था, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने ईआरसीपी के लिए एनओसी नहीं दी। ऐसे में राजस्थान सरकार ने स्वयं के खर्च पर ईआरसीपी को पूरा करने का निर्णय लिया और बांध बनना शुरू हुआ तो मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा दी थी। जिसके बाद से यह प्रोजेक्ट विवादित हो गया था। 

इस विवाद को लेकर राजस्थान की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का कहना था कि यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराज का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य की सीमा में नहीं आता तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति जरूरी नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार ने ईआरसीपी के लिए एनओसी जारी नहीं की थी। इसके बाद पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने खुद के खर्च पर ही ईआरसीपी के लक्ष्य को पूर्ण करने का फैसला लिया था। सरकार की ओर से बांध बनाया जाने लगा तो मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। इसलिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने आपस में बातचीत कर विवाद सुलझा कर समझौता कर लिया।

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