मध्य प्रदेश: विलुप्त हो रहीं गिद्धों की प्रजातियां, प्रजनन केंद्र में कर रहे संरक्षण

मध्य प्रदेश में गिद्धों के संरक्षण के लिए वन विहार एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संयोजन से गिद्ध सरक्षंण प्रजनन केंद्र की शुरुआत 2014 में की गई थी।
मध्य प्रदेश: विलुप्त हो रहीं गिद्धों की प्रजातियां, प्रजनन केंद्र में कर रहे संरक्षण
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भोपाल। वर्ष 1990 के बाद भारत समेत दुनियाभर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 1990 के पहले गिद्धों की संख्या करीब चार करोड़ थी। जो अब सिर्फ हज़ारों में रह गई है। गिद्धों का विलुप्त होना मनुष्य और पर्यावरण संरक्षण दोनों के लिए घातक है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं। उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं।

मध्य प्रदेश में गिद्धों के संरक्षण के लिए वन विहार एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संयोजन से गिद्ध सरक्षंण प्रजनन केंद्र की शुरुआत 2014 में की गई थी। प्रजनन केंद्र में अभी दो प्रजातियों के 85 गिद्धों को तैयार कर लिया गया है। इनमें से 6 गिद्धों को खुले आसमान में छोड़ने की तैयारी की जा रही है। गिद्धों के संरक्षण के लिए संचालित इस प्रोजेक्ट को समझने के लिए ‘द मूकनायक’ की टीम भोपाल केरवा स्थित गिद्ध सरक्षंण प्रजनन केंद्र पहुंचीं, जिसका प्रबंधन भोपाल वन विहार द्वारा किया जाता है।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र के रिसर्च बायोलॉजिस्ट हेमंत वाजपेयी ने बताया की अभी तक हमने 85 गिद्धों को तैयार कर लिया है, जिनमें से चार गिद्धों को छोड़ने की तैयारी की जा रही है। हेमंत ने बताया कि गिद्ध पर्यावरण के सफाई कर्मी होते हैं और गिद्ध शिकारी पक्षी नहीं हैं। वह सिर्फ मरे हुए जानवरों को ही भोजन बनाते हैं। गिद्धों की संख्या कम होने से मरे हुए जानवरों को जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया है, लेकिन ये गिद्धों की तरह शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं होते हैं। जबकि गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है क्योंकि गिद्ध झुंड में रहते हैं। गिद्धों का समूह एक किलोमीटर की ऊंचाई से भी मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेता है, और उसे देख लेता हैं।

केंद्र में दो प्रजातियों के गिद्ध

विश्वभर में गिद्धों की प्रजातियां हैं, जिनमें से सिर्फ भारत में 9 तरह की प्रजातियां और मध्य प्रदेश में 7 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भी 4 स्थानीय हैं, वहीं 3 गिद्धों की प्रजाति प्रवासी हैं जो सिर्फ सर्दियों में यहां आते हैं। भोपाल के केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र में दो तरह की प्रजातियां हैं, जिनमें सफेद पीठ और लंबी चोंच के गिद्ध शामिल हैं।

इस मेडिसिन के कारण हुईं गिद्धों की मौत

विभिन्न शोधों से पता चलता है कि गिद्धों की सबसे अधिक मौत 1990 के दशक में हुई है। इसकी वजह पशुओं को दी जाने वाली डिक्लोफिनेक दवा को बताया जाता है, जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब इस दवा का डोज लेने वाले पशु की मौत हो जाती है और यदि मौत से थोड़ा पहले यह दवाई उसे दी गई होती है तो जब उसे गिद्ध खाते हैं तो गिद्ध के गुर्दे खराब हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है।

रिसर्च बॉयोलॉजिस्ट हेमंत वाजपेयी ने बताया, जांच में पता लगा है कि इन दवाइयों के डोज के बाद मरे हुए जानवरों को गिद्ध के खाने के बाद उसके लीवर पर एक सफेद परत बनने लगती है। और फिर डीहाइड्रेशन के कारण गिद्ध के गुर्दे खराब हो जाते हैं। शोध में पता चलता है कि किसी गिद्ध ने यदि ऐसा मृत पशु खाया है जिसे यह ड्रग दिया गया हो तो उस गिद्ध की मौत चार से सात दिनों के भीतर हो जाती है।

सीसीटीवी कैमरों से गिद्धों की मॉनिटरिंग

गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र में सीसीटीवी कैमरे से गिद्धों पर नजर रखी जाती है। इन्हें एक बड़े से खुले हुए हॉल में रखा जाता है, जिसके छत पर एक जाल है। ऊपर से छत पूरी तरह खुला हुआ है। गिद्धों को जमीन पर घास- फूस दे दी जाती है ताकि वह खुद से अपना घोंसला तैयार कर सकें।

अधिक उंचाई से भी देख लेते हैं मृत वन्यप्राणी

गिद्ध ऊंची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नजदीक या जंगलों में मृत पशुओं व वन्यजीवों को खोज लेते हैं और उन्हें खाते हैं। यह समूह में रहते हैं। भारतीय गिद्ध का सर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं। इसका वजन 5.5 से 6.3 किलो तक होता है। इसकी लंबाई 80-103 सेमी. तथा पंख खोलने में 1.96 से 2.38 मीटर की चौड़ाई होती है।

भोपाल में केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र का संचालन वन विहार नेशनल पार्क प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है। इसमें गिद्ध संरक्षण क्षेत्रों में काम करने वाले वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की मदद ली जा रही है। यहाँ गिद्धों पर शोध के साथ उनकी संख्या बढ़ाने पर काम चल रहा है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए वन विहार की डायरेक्टर पद्म प्रिया ने बताया कि पिछली साल भोपाल में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में गिद्धों के संरक्षण के लिए मंथन किया गया था। हमें एक्सपर्ट से काफी सुझाव भी मिले हैं, जिनपर काम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि डिक्लोफिनेक नामक दवा के उपयोग से गिद्धों की मौत हो रही है। इस दवा को भारत सरकार ने वर्ष 2006 में प्रतिबंधित किया है।

दुनियाभर में गिद्धों की 23 प्रजातियां

गिद्धों की संख्या तेजी से घट रही है। इसका कारण प्रदूषण और घटते जंगलों के चलते नष्ट होते उनके प्राकृतिक आवास हैं। मध्य प्रदेश में अब केवल 6700 गिद्ध बचे हैं और देश में भी अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम हुई है। दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं, जिसमें से भारत में केवल 9 प्रजातियां है। राजस्थान के झालावाड़ जिले में गिद्धों की लॉन्ग बिल्ड वल्चर प्रजाति पाई जाती है। अब लॉन्ग बिल्ड गिद्ध राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में ही बचे हैं। मंदसौर जिले का गांधीसागर अभयारण्य वन्यजीवों के लिए स्वर्ग साबित हो रहा है। 6 फरवरी 2021 में गांधीसागर अभयारण्य में 684 गिद्ध मिले। हालांकि, 2010 के पूर्व गिद्धों की संख्या में गिरावट आई थी लेकिन पिछले वर्षों की तुलना में अभी यहां कुछ वृद्धि हुई है।

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