'डोम राजा' बोले, नहीं मिला प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण, पिता बने थे PM के प्रस्तावक

डोम समुदाय सामाजिक रूप से बेहद पिछड़ा हुआ है। डोम समुदाय को समाज में अभी भी अस्पृश्य या अछूत समझा जाता है।
'डोम राजा' बोले, नहीं मिला प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण, पिता बने थे PM के प्रस्तावक

उत्तर प्रदेश। यूपी की काशी कहलाने वाली नगरी बनारस के डोम राजा को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आमंत्रण नहीं किया गया है। पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के समय डोम राजा जगदीश चौधरी को प्रस्तावक बनाया था। हालांकि जगदीश चौधरी की कोरोना काल में मौत हो गई थी। इसलिए वर्तमान समय में डोम राजा जगदीश चौधरी के इकलौते पुत्र ओम चौधरी को गद्दी मिली है।

प्राण प्रतिष्ठा का जहां एक और कई लोगों का निमंत्रण मिला है, वहीं डोम राजा ओम चौधरी भी इसका इंतज़ार कर रहे थे। उन्हें लगा कि उन्हें भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का सह-सम्मान निमंत्रण दिया जाएगा। इसी सिलसिले में द मूकनायक से बात करते हुए ओम चौधरी बताते हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार का निमंत्रण नहीं मिला है। 



उन्होंने बताया कि हमारी जगह अनिल चौधरी को निमंत्रण मिला है। अनिल चौधरी डोम समाज से ही आते हैं। लेकिन ओम इस बात से नाराज़ दिखाई दिए, उनका कहना है कि अनिल हमारे समाज के ज़रूर हैं लेकिन काशी के डोम राजा के रूप में मेरे पिताजी जगदीष चौधरी ही जाने जाते हैं।

कौन होते हैं काशी के डोम राजा?

वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर डोम राजा के नाम से जगदीश चौधरी मशहूर थे। अप्रैल 2020 में उनके देहांत के बाद उनका इकलौता बेटा ओम चौधरी अब डोम राजा हैं। वह अभी मात्र 17 साल के हैं। जगदीश वाराणसी में बने घाटों पर अन्त्येष्टि (अंतिम संस्कार) कराने का काम करते थे। डोम समुदाय अनुसूचित जाति में आता है।



वाराणसी में गंगा किनारे कई घाट बने हुए हैं। इनमें सिर्फ दो घाटों पर अंतिम संस्कार किया जाता है। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का जन्मस्थान वाराणसी ही था और उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था, माना जाता है इसी कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। जबकि दूसरा राजा हरिशचंद्र घाट है। राजा हरिशचंद्र को भारत की ऐतिहासिक कथाओं में हमेशा सच बोलने और धर्म के रास्ते पर चलने वाला राजा बताया जाता है। इन दोनों घाटों पर अंतिम संस्कार करवाने का काम सिर्फ डोम जाति के लोग ही करते हैं। इन्हें ‘डोम राजा’ भी कहा जाता है।

डोम का काम अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सम्पन्न कराना है। इसलिए उनका सारा समय लगभग लाशों के बीच ही बीतता है। मनुष्य के मरने के बाद उसके पार्थिव शरीर के साथ रहना आसान कार्य नहीं माना जाता। इन्हें ये भी सुनिश्चित करना होता है कि लाश का हर एक अंग पूरी तरह जल गया हो।

कई बार अध-जले अंगों को अपने हाथ से ठीक जगह रख पूरा जलाया जाता है। ऐसे में उनके लिए काम करते हुए जलना उनके लिए बहुत आम है। डोम समुदाय सामाजिक रूप से बेहद पिछड़ा हुआ है। डोम समुदाय को समाज में अभी भी अस्पृश्य या अछूत समझा जाता है।

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