मध्य प्रदेश: क्या राजनीति का शिकार हुआ है कूनो चीता प्रोजेक्ट!

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार राजस्थान में चीतों को शिफ्ट करने पर करें विचार। प्रोजेक्ट फेल होने की कगार पर।
मध्य प्रदेश: क्या राजनीति का शिकार हुआ है कूनो चीता प्रोजेक्ट!

भोपाल। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और साउथ अफ्रीका से लाए गए चीतों की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए राज्य सरकार को चीता प्रोजेक्ट को राजस्थान में शिफ्ट करने पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने दो माह के अंदर 3 अफ्रीकी चीतों की मौतों पर चिंता जताई है। कोर्ट ने चीतों की सुरक्षा को देखते हुए केंद्र को राजनीति से ऊपर उठते हुए इन्हें राजस्थान शिफ्ट करने के लिए वन्यजीव विशेषज्ञ समिति को 15 दिन के अंदर चीता टास्क फोर्स को सुझाव देने के निर्देश भी दिए हैं। चीता प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता के बाद पूरा प्रोजेक्ट राजनीति से घिरा हुआ प्रतीत हो रहा है।

बता दें कि गत गुरुवार को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि एक्सपर्ट रिपोर्ट से लगता है कि चीतों की बड़ी आबादी के लिए कूनो में पर्याप्त स्थान और संसाधन नहीं हैं, इसलिए केंद्र सरकार को दूसरे पार्क या सेंचुरी में चीतों की शिफ्टिंग पर विचार करना चाहिए।

कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आप राजस्थान में जगह की तलाश क्यों नहीं करते, केवल इसलिए कि वहां विपक्षी पार्टी का शासन है। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि चीता टास्क फोर्स मौत के कारणों और इन्हें दूसरी सेंचुरी में शिफ्ट करने के पहलुओं की जांच कर रही है। इस पर कोर्ट ने कहा कि हम सरकार की मंशा पर संदेह नहीं कर रहे, लेकिन अखबारों में चीता विशेषज्ञों की उन रिपोर्ट पर ध्यान न देने से चिंतित हैं, जिसमें वे केंद्र को चीतों के लिए एक से अधिक हैबिटेट बनाने के लिए चेता रहे हैं।

मुख्य सचिव ने की चीता प्रोजेक्ट की समीक्षा

मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने गुरुवार को चीता प्रोजेक्ट की समीक्षा की है। उन्होंने चीतों के लिए मंदसौर के गांधी सागर और सागर के नौरादेही को जल्दी तैयार करने के निर्देश दिए। वन अफसरों ने बताया कि गांधीसागर में चेनलिंक फेसिंग के लिए टेंडर जारी हो गए हैं। मुख्यसचिव ने इसे 6 महीने में पूरा करने को कहा है। वन अधिकारियों ने बताया कि कूनो में 2 मादा चीता गर्भवती है। इनकी डिलीवरी जून में हो सकती है। इन्हें बच्चों समेत बड़े बाड़ों में रखना होगा। इसके लिए अतिरिक्त स्टाफ की जरूरत होगी।

नामीबिया ने चीते भारत को तोहफे में दिए थे

करीब 70 साल बाद विदेशी सरजमीं से 8 चीते भारत लाए गए थे। नामीबिया ने ये चीते भारत को तोहफे में दिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन पर इन्हें कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों की दूसरी खेप कूनो लाई गई थी।

सवालों के घेरे में प्रोजेक्ट चीता

नामीबिया से आठ चीते भारत लाए जाने के बाद दक्षिण अफ्रीका से भी 12 चीतों को कूनो पार्क में लाया गया था। वहीं दो महीने के भीतर ही अलग-अलग कारणों के चलते एक के बाद एक तीन चीतों की मौत हो गई। इसके बाद प्रोजेक्ट चीता सावालों से घिरा नजर आ रहा है। वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स का मानना है कि कूनो नेशनल पार्क में 20 चीतों के रखे जाने की क्षमता नहीं है। कूनो नेशनल पार्क के अंदर 100 वर्ग किलोमीटर में तीन चीते होने पर नामीबिया के वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट ने सवाल खड़े किए हैं। सवाल यह है कि नामीबिया के वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट के सुझाव के बाद भी चीतों को कूनो क्यों लाया गया, जबकि एक्सपर्ट के मुताबिक राजस्थान में चीतों को रखने के लिए अनुकूल वातावरण मौजूद था।

एक्सपर्ट के मुताबिक राजस्थान है अनुकूल

राजस्थान में अफ्रीकी चीतों को लेकर विशेषज्ञों की राय मानी जाए तो सबसे उपयुक्त स्थान राजस्थान का मुकुंदरा टाइगर हिल है। इसके अलावा विशेषज्ञों ने कोटा के राणा प्रताप सागर वन क्षेत्र को भी चीतों के लिए उपयोगी बताया है। विशेषज्ञों के अनुसार मुकुंदरा मध्य प्रदेश के नौरादेही अभयारण्य, नीमच, आगर समेत वन क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। जिसके चलते अफ्रीकी चीते मुकुंदरा टाइगर हिल्स में रखना बेहतर हो सकता है। एक्सपर्ट का मानना है कि यहां का माहौल अफ्रीकी चीतों के अनुसार है। मुकुन्दरा की अनुकूल जलवायु के कारण अफ्रीकी चीतों को यहां बसाया जा सकता हैं।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने बताया कि चीता प्रोजेक्ट को सफल करने के लिए इन्हें अनुकूल स्थानों पर शिफ्ट करना आवश्यक है। लगभग दो महीनों में तीन चीतों की मौत होना प्रोजेक्ट का असफल होना है।

दुबे ने कहा कि राजस्थान मुकंदरा टाइगर हिल और एमपी के नौरादेही अभयारण्य चीतों के लिए अनुकूल है। यहाँ पर इन्हें बसाने की तैयारी शुरू भी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि चीतों की मौत आपसी संघर्ष की वजह से है। इसके अलावा मीटिंग करते वक्त भी मादा घायल हो जाती है। इसके अलावा चीता प्रोजेक्ट में लापरवाह अधिकारियों को लगाया है। जिसके कारण चीता प्रोजेक्ट फेल होते हुए दिख रहा है।

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