चीतों से चर्चा में आए कूनो राष्ट्रीय उद्यान के वनाधिकारियों को अब विश्नोई समाज के विरोध का करना पड़ रहा सामना

चीता
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चीतों के भोजन के लिए राजस्थान से चीतल ले जाने के आरोपो की सत्यता जानने के लिए पढ़ें द मूकनायक की यह पूरी पड़ताल।

जयपुर। भारत में लुप्त हो चुके वन्यप्राणी चीता का 75 वर्ष बाद मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पूर्वास किया गया है। बीते 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नामीबिया से लाकर कूनो में चीतों को छोड़ने के बाद से ही वन्यजीव प्रेमियों में चीतों के वजूद को लेकर बहस छिड़ी है। साथ ही चीतों को जीवित रखने के लिए राजस्थान के चीतलों को चीतों के सामने भोजन के रूप में परोसने को लेकर मीडिया में खबरे आने के बाद देश मे नई बहस शुरू हो गई है। विशेष कर राजस्थान के विश्नोई समाज मे गहरा आक्रोश नजर आ रहा है।

चीतों को भोजन में राजस्थान के चीतल परोसने की खबरों की सच्चाई जानने के लिए द मूकनायक ने इसकी पड़ताल की तो राजस्थान से चीतल कूनो ले जाने की खबरों की तथ्यात्मक पुष्ठी नही हुई। इस बात को लेकर मध्यप्रदेश वन विभाग ने भी खंडन किया है। हालांकि, विश्नोई समाज व वन्यजीव प्रेमी बाड़े में बंद चीतों के लिए कहीं से भी चीतल लेकर छोड़ने का अभी भी कड़े शब्दों में विरोध कर रहे हैं। इस मामले को लेकर विश्नोई समाज प्रधानमंत्री को भी पत्र लिख चुका है। उधर पथिक लोकसेवा समिति संस्थापक मुकेश सीट ने चीतों की चमक के पीछे चुनिंदा लोगो के व्यवसायिक फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए हैं।

जीव रक्षा संस्था, बीकानेर जिलाध्यक्ष मोखराम धारणिया ने द मूकनायक को बताया कि, "कूनो में चीतल राजस्थान से नहीं भेजे गए हैं यह सच है। यह चीतल मध्य प्रदेश राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ अभ्यारण्य से ले जाए गए हैं। सोशल मीडिया पर चूरू का राजगढ़ समझते हुए खबरें चल रहीं हैं। हमे इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि चीतल राजस्थान से आये हैं या भारत में कही और से। कूनो में चीतों को एनक्लोजर में रखा गया है। एक किलोमीटर के दायरे में रख कर हिरणों को डाल कर उन्हें (चीतों) को शिकार करना सिखाया जाएगा। इसका सृकलर भी तैयार किया है। हम बेजुबान हिरणों को बाड़ो में चीतों के भोजन के लिए छोड़ने का विरोध करेंगे। आप चीतों को जंगल मे खुला छोड़ दे। प्राकृतिक रूप से वह मनचाहा भोजन करेंगे, लेकिन एक निर्धारित सीमा में हिरणों को छोड़ना जीव हत्या है।"

जालौर के हनुमान विश्नोई ने कहा कि, "हमें दुख है कि बेजुबान हिरणों की चीतों के लिए हत्या की जा रही है। यह जानकारी खबरों के माध्यम से मिली है।" हनुमान विश्नोई ने मध्य प्रदेश के वन अधिकारियों से भी बात की है। उन्होंने कहा कि, "टीवी न्यूज में वीडियो बताकर खबर चला कर बताया जा रहा है तो सभी खबरें झूठी तो नहीं हो सकती। इसके पीछे कोई बड़ा राज है। अधिकारी बताएं कि बाड़ो में बंद चीतों को भोजन में क्या दिया जा रहा है! इस मामले को विश्नोई समाज गम्भीरता से ले रहा है। हमारी बैठक भी होगी।"

वन्यजीव परीक्षण संस्थान जोधपुर विश्नोई टाइगर फोर्स संगठन मंत्री ओमप्रकाश विश्नोई ने कहा कि, "आप हमें इतना बता दें की भारत में चीते लाने से यहां के नागरिकों को क्या लाभ होने वाला है। 75 वर्ष से यह देश मे नही थे तो क्या नुकसान हुआ है। आप चीतों को जीवित रखने के लिए छोटे-छोटे शाहकारी जीवों की बली दे रहे हैं। ऐसे तो छोटे वन्यप्राणी खत्म हो जाएंगे। पर्यावरण सरंक्षण के लिए इन छोटे शाहकारी वन्यजीवो का जीवित रहना जरूरी है। हिंसक जानवरों को बसाने से क्या फायदा है। हम चीतल बचाने के लिए आंदोलन करेंगे। मध्यप्रदेश के हरदा से विश्नोई समाज जल्द शाहकारी वन्य जीवों को बचाने के लिए बड़ा आंदोलन करेगा। अधिकारी गुमराह कर रहे हैं। एक महीने बाद इन चीतों को लगभग 500 परिधि वाले बाड़ो में शिफ्ट किया जाएगा। जहां छोटे शाहकारी वन्यप्राणी पहले से मौजूद रहेंगे। इस बड़े एनकोलजर में विदेशी चीतों को शिकार करना सिखाया जाएगा।"

मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय अभ्यारण्य के सीसीएफ उत्त्तम कुमार शर्मा ने द मूकनायक को बताया कि, चीतों के भोजन के लिए एनकोलजर में चीतल छोड़े जाने के आरोप निराधार हैं। "हमने एनकोलजर में चीतल नही छोड़े है। न ही छोड़े जाने की योजना है। कूनो में पहले से 20 हजार चीतल स्वछंद विचरण कर रहे हैं। करते रहेंगे। हमारे प्रदेश में एक लाख 20 हजार हेक्टेयर का जंगल उपलब्ध है। यहां हमने दूसरे अभयारण्यों से लाकर सात सौ शाहकारी प्राणी लाकर बसाए हैं।"

विदेशी चीतों के भोजन के लिए चीतल ले जाने के आरोप लगने के बाद विश्नोई समाज के विरोध का सामना कर रहा मध्यप्रदेश वन विभाग इस मामले अपनी सफाई पेश कर वन्यप्राणियो का उच्च कोटि का प्रबंध करने का दावा कर चुका है। साथ ही मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक एवं प्रधान मुख्य वन सरंक्षक वन्यप्राणी मध्यप्रदेश जसबीर सिंह चौहान ने सफाई में कहा कि वन विभाग द्वारा ऐसा कोई कृत्य न तो किया गया है और न ही भविष्य में किया जाएगा। जिससे विश्नोई समाज जो वन्यप्राणी सरंक्षण में अपने योगदान के लिए विश्व विख्यात है, की भावनाओ को ठेस पहुंचे।

यहां यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्नोई समाज की अमृता देवी जी के नाम पर वन्यप्राणी सरंक्षण में उच्च कोटि का योगदान देने के लिए पुरुस्कार दिए जाते हैं। चौहान ने चीतों को भोजन के सवाल पर कहा कि स्लॉटर हाउस चीतों के लिए मांस लाते हैं। चीता का भोजन मांस है।

प्रेस नोट जारी कर इन बिंदुओं पर भी दी सफाई

मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक एवं प्रधान मुख्य वन सरंक्षक वन्यप्राणी मध्यप्रदेश जसबीर सिंह चौहान ने विश्नोई समाज के विरोध के बाद मीडिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि कतिपय समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस आशय के समाचार प्रकाशित किये जा रहे हैं कि चीता के भोजन हेतु चीतलों को अन्य क्षेत्रों से ला कर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जा रहा है। कुछ समाचार पत्रों में तो राजस्थान से चीतल लाये जाने के भी समाचार प्राप्त हो रहे हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि विभिन्न समाचार माध्यमो तथा सोशल मीडिया में फैल रही इस खबर में कोई सत्यता नहीं है। राजस्थान से कोई चीतल मध्यप्रदेश नही लाया गया है।

अन्तर्राजीय ट्रांसफर समिति की सहमति जरूरी

अन्तर्राजीय वन्य प्राणियों के स्थानांतरण के लिए भारत सरकार एवं जिन राज्यों से वन्य प्राणियों को स्थानांतरित किया जाना है उन दोनों राज्य सरकारों की सहमति आवश्यक होती है।

कूनो में 20 हजार चीतल का दावा

वन अधिकारियों ने श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में वर्तमान में 20 हजार से भी अधिक चीतल मौजूद होने का दावा किया है। सीसीएफ उत्तमकुमार शर्मा ने द मूकनायक को बताया कि ऐसे में चीतों के भोजन के लिए अन्यंत्र से चीतल लेकर छोड़ा जाना एक कल्पना मात्र है। वस्तुतः चीता लाए जाने के बाद कूनो राष्ट्रीय उद्यान में कोई चीतल लाकर नही छोड़े गए हैं।

यह भी है मध्यप्रदेश वन अधिकारियों का दावा

मध्यप्रदेश में 2015 से लगातार सक्रिय वन्यप्राणी प्रबंधन किया जा रहा है। प्रदेश में कई राष्ट्रीय उद्यान/अभ्यारण्य ऐसे हैं जहां चीतलों की संख्या काफी अधिक बढ़ गई है। जिससे चारे की समस्या उतपन्न होती है। अतः ऐसी जगहों से चीतलों को ऐसे राष्ट्रीय उद्यान/अभ्यारण्य में छोड़ा जाता है, जहां इनके चारे की पर्याप्त उपलब्धता होती है।

इसके तहत पेंच राष्ट्रीय उद्यान, वनविहार राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, तथा नरसिंहपुर अभ्यारण्य से चीतलों को निकाल कर सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान, संजय राष्ट्रीय उद्यान, कूनो राष्ट्रीय उद्यान, नोरादेही अभ्यारण्य में भेजे गए हैं। यह सही नही है कि केवल राष्ट्रीय पार्क उद्यान में ही छोड़ा गया है। प्रदेश में अब तक 6000 हजार से अधिक चीतल एक सरंक्षित क्षेत्र से दूसरे सरंक्षित क्षेत्र में स्वेच्छन्द विचरण हेतु छोड़े जा चुके हैं।

इसके मुख्य उद्देश्य शाकाहारी वन्य प्राणियों में अनुवांशिक समस्याओं को दूर करना। उच्च घनत्व वाले क्षेत्रो में फसल की नुकसानी कम करने तथा गांवो के द्वारा रिक्त किये गए स्थलों पर समुचित वन्यप्राणियो को संख्या स्थापित करना है। प्रदेश के अनेक राष्ट्रीय उद्यान जैसे बांधवगढ़, कान्हा तथा पेंच में काफी संख्या में चीतल पाए जाते हैं। जिसके कारण वहां का पर्यावास भी प्रभावित होता है। पर्यावास को बचाये रखने के लिए भी यह आवश्यक है।के वन्यप्राणियो के अत्यधिक जैविक दबाव को कम किया जाए। इस कार्य को इन वन्य प्राणियों को अन्यत्र छोड़े जाने से ही सम्पन्न किया जा सकता है।

एमपी में कहां कितने वन्यप्राणी उपलब्ध?

वर्तमान में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में 30 हजार से अधिक, पेंच राष्ट्रीय उद्यान में 50 हजार से अधिक, तथा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में 30 हजार से अधिक चीतल मौजूद हैं।

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