MP के पूर्व विधायक के घर अवैध निजी चिड़ियाघर का खुलासा, आयकर छापे ने खोली वन विभाग की लापरवाही की पोल!

राठौर परिवार सागर क्षेत्र में तेंदूपत्ता ठेकेदारी और बीड़ी निर्माण के बड़े कारोबारी हैं। पूर्व विधायक हरवंश राठौर के दादा दुलीचंद राठौर ने यह निजी चिड़ियाघर बनवाया था। जिसे मान्यता नहीं है।
मगरमच्छ का रेस्क्यू करती वन विभाग टीम
मगरमच्छ का रेस्क्यू करती वन विभाग टीमइंटरनेट
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भोपाल। मध्य प्रदेश के सागर जिले के बंडा से भाजपा के पूर्व विधायक हरवंश सिंह राठौर के बंगले पर आयकर विभाग द्वारा मारे गए छापे ने एक ऐसा मामला उजागर किया, जो पिछले छह दशकों से अनदेखा हो रहा था। राठौर के बंगले में संचालित अवैध निजी चिड़ियाघर, जहां मगरमच्छ, बंदर और कई प्रजातियों के पक्षी रखे गए थे, पर वन विभाग ने चुप्पी साधे रखी थी।

हरवंश सिंह राठौर के परिवार द्वारा यह चिड़ियाघर 1964-65 के आसपास बनाया गया था। यह कोई छिपी हुई बात नहीं थी, क्योंकि स्कूलों के बच्चे भ्रमण के लिए यहां आते थे और स्थानीय लोग इसे पर्यटन स्थल के रूप में देखते थे। बंगले में मगरमच्छ सहित अन्य वन्य प्राणियों को खुलेआम रखा गया था।

आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद खुलासा

आयकर विभाग ने 5 जनवरी को सुबह 8 बजे राठौर के घर पर छापा मारा। तीन दिन तक चली इस कार्रवाई के दौरान विभाग को बंगले में मगरमच्छ रखे होने की जानकारी मिली। इसके बाद वन विभाग को हरकत में आना पड़ा।

वन विभाग की टीम ने 12 जनवरी को कार्रवाई करते हुए दो मगरमच्छ और कुछ बंदरों को अभयारण्य के तालाब और जंगल में छोड़ा। हालांकि, चिड़ियाघर में अभी भी कई प्रजातियों के पक्षी मौजूद हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत राठौर परिवार पर अब तक कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि राठौर परिवार ने धार्मिक कारणों से मगरमच्छों को पाला था। जब वन विभाग ने इन्हें कब्जे में लिया, तो परिवार ने उनकी पूजा की। बताया जाता है कि जिस तालाब में मगरमच्छ रखे गए थे, उसके ऊपर एक गंगा मंदिर बना है, जिसे लोग कांच मंदिर के नाम से जानते हैं।

मगरमच्छ पालने पर हो सकती है कार्रवाई

भोपाल के वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने मगरमच्छ को 'असुरक्षित' और घड़ियाल को 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया है। ये दोनों प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची में संरक्षित हैं।

निजी तौर पर इन्हें पालने या चिड़ियाघर चलाने के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से मान्यता अनिवार्य है। बिना मान्यता के निजी चिड़ियाघर चलाने पर कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

क्या है कानून?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत:

धारा 9: संरक्षित प्रजातियों के शिकार, कब्जा, या व्यापार पर रोक।

धारा 51: उल्लंघन पर 3 से 7 साल की कैद और ₹10,000 तक जुर्माना।

अवैध चिड़ियाघर चलाने पर अतिरिक्त सजा का प्रावधान है।

कौन है हरवंश राठौर?

राठौर परिवार सागर क्षेत्र में तेंदूपत्ता ठेकेदारी और बीड़ी निर्माण के बड़े कारोबारी हैं। पूर्व विधायक हरवंश राठौर के दादा दुलीचंद राठौर ने यह निजी चिड़ियाघर बनवाया था। यह चिड़ियाघर तब से संचालित हो रहा है, जबकि इसे बंद कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

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