अरावली सफारी पार्क परियोजना पर बढ़ा विवाद: पर्यावरणविदों ने 'पारिस्थितिक विनाश' की चेतावनी देते हुए तत्काल रोक की मांग की

10,000 एकड़ में प्रस्तावित इस पार्क से वन्यजीव कोरिडोर, भूजल और स्थानीय समुदायों पर गंभीर खतरे की आशंका, NACEJ ने ज्ञापन में गिनाई खामियां।
Aravali Safari Park
अरावली सफारी पार्क परियोजनाफोटो साभार- इंटरनेट
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय जलवायु और पर्यावर्णीय न्याय मंच (NACEJ - NAPM) ने आज हरियाणा की महत्वाकांक्षी अरावली चिड़ियाघर सफारी पार्क परियोजना को तत्काल रद्द करने की मांग करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री को भेजे गए इस ज्ञापन में परियोजना को अरावली के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र, स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के लिए एक गंभीर खतरा बताया गया है और इसके बजाय संरक्षण के वैकल्पिक उपायों का सुझाव दिया गया है।

NACEJ, जो जमीनी स्तर के आंदोलनकारियों, पारिस्थितिकीविदों और कानूनी विशेषज्ञों का एक अखिल भारतीय मंच है, ने इस परियोजना के सामाजिक और पर्यावरणीय परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

क्या है सफारी पार्क परियोजना?

हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम और नूंह जिलों में फैली 10,000 एकड़ अरावली भूमि पर "दुनिया का सबसे बड़ा क्यूरेटेड सफारी पार्क" बनाने का प्रस्ताव दिया है। आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देना है। हालांकि, परियोजना की योजना में पशु बाड़ों के अलावा होटल, रेस्टोरेंट, गेस्ट हाउस, मनोरंजन पार्क, कृत्रिम झीलें और एक सफारी क्लब जैसे बड़े पैमाने पर व्यावसायिक निर्माण शामिल हैं, जो इसके संरक्षण के दावों पर सवाल खड़े करते हैं।

चिंता की बात यह भी है कि इस परियोजना के लिए धन का एक बड़ा हिस्सा ग्रेट निकोबार द्वीप में एक विशाल परियोजना के कारण हुए वनों के नुकसान की भरपाई से आएगा।

परियोजना पर मुख्य आपत्तियाँ

मंच ने चार प्रमुख बिंदुओं के तहत परियोजना के विनाशकारी परिणामों को रेखांकित किया है:

1. सामुदायिक अधिकारों का हनन और विस्थापन का खतरा यह परियोजना स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए सीधा खतरा है, जो चारे और ईंधन जैसी जरूरतों के लिए अरावली पर निर्भर हैं। ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि हरियाणा सरकार ने 24,353 हेक्टेयर क्षेत्र को 'संरक्षित वन' घोषित कर 30 वर्षों के लिए सभी सामुदायिक और व्यक्तिगत अधिकारों को निलंबित कर दिया है। पर्यावरण शोधकर्ता और वकील मीनाक्षी कपूर के अनुसार, "यह कार्रवाई भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का सीधा उल्लंघन है।" इस परियोजना से क्षेत्र में रहने वाले लगभग 100 आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर विस्थापन का खतरा भी मंडरा रहा है।

2. वन्यजीवों पर खतरा और आवास का विखंडन विशेषज्ञों ने बाघ, शेर और चीते जैसी विदेशी प्रजातियों को बाड़ों में रखने की योजना की कड़ी आलोचना की है। उनका तर्क है कि 10,000 एकड़ के जंगल की बाड़बंदी से मंगर बानी और असोला अभयारण्यों को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारा खंडित हो जाएगा। यह गलियारा तेंदुए, लकड़बग्घे और सांभर हिरण जैसी देशी प्रजातियों द्वारा उपयोग किया जाता है। संरक्षण जीवविज्ञानी नेहा सिन्हा ने चेतावनी दी, "अरावली के जंगलों में किसी भी प्रकार की बाधा क्षेत्र की पारिस्थितिकी के लिए 'विनाशकारी' होगी और इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ सकता है।"

3. पारिस्थितिक संकट और संसाधनों पर दबाव अरावली श्रृंखला थार मरुस्थल को रोकने और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण भूजल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है। 'पीपुल फॉर अरावल्लीस' की संस्थापक नीलम अहलुवालिया ने कहा, “होटल, क्लब और सड़कों जैसे व्यापक निर्माण से वनस्पति नष्ट होगी और पहले से ही गंभीर रूप से घट चुके भूजल स्तर पर भारी दबाव पड़ेगा।” यह क्षेत्र पहले से ही बंधवाड़ी लैंडफिल, अवैध खनन और अवैध निर्माण जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।

4. दोषपूर्ण नींव और कानूनी चुनौतियाँ ज्ञापन में कहा गया है कि परियोजना का मूल उद्देश्य संरक्षण नहीं, बल्कि व्यावसायिक पर्यटन है। यह परियोजना 2023 के वन संरक्षण संशोधन अधिनियम के एक विवादित प्रावधान का लाभ उठाती दिख रही है, जो चिड़ियाघरों और सफारी को "वानिकी गतिविधियों" के रूप में वर्गीकृत कर उन्हें कठोर वन मंजूरी प्रक्रियाओं से छूट देता है। यह संशोधन वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

NACEJ द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक कदम

NACEJ ने परियोजना को रद्द करने के साथ-साथ निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की हैं:

  • वास्तविक संरक्षण पर ध्यान दें: सरकार को एक विज्ञान-आधारित संरक्षण योजना बनाने के लिए एक स्वतंत्र अध्ययन कराना चाहिए।

  • सामुदायिक अधिकार बहाल करें: वन अधिकार अधिनियम, 2006 को सही मायने में लागू किया जाए और निलंबित सामुदायिक अधिकारों को तुरंत वापस लिया जाए।

  • सच्चे इकोटूरिज्म को बढ़ावा दें: सफारी पार्क के बजाय, स्थानीय संस्कृति और देशी वन्यजीवों पर केंद्रित इकोटूरिज्म मॉडल विकसित किया जाए। गुरुग्राम का 400 एकड़ का सफल अरावली जैव विविधता पार्क इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

NACEJ का मानना है कि एक व्यावसायिक पर्यटन उद्यम के बजाय, अरावली को वास्तविक संरक्षण, सामुदायिक सशक्तिकरण और टिकाऊ इकोटूरिज्म की आवश्यकता है जो इसकी पारिस्थितिक अखंडता का सम्मान करे।

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