केरल और महाराष्ट्र के बाद अब राजस्थान में भी अफ्रीकन जायंट घोंघे की दस्तक

उदयपुर जिले के बड़गांव क्षेत्र के हाथीधरा-राती तलाई गांव में भारी तादाद में पनपे, नमक घोल से कंट्रोल की कवायद
अफ्रीकन जायंट घोंघा
अफ्रीकन जायंट घोंघा

उदयपुर। अफ्रीकन जायंट घोंघा जिसे भारत में शंख घोंघा के नाम से जाना जाता है, बीते कुछ वर्षों में महाराष्ट्र और केरल में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा चुका है। पहली बार अब इनका प्रकोप राजस्थान में दिखाई दिया है। उदयपुर जिले में बड़गांव पंचायत समिति के लोयरा ग्राम पंचायत में हाथीधरा राती तलाई क्षेत्र में इस कीट का sporadic burst देखा गया है। कृषि विभाग द्वारा जयपुर स्थित कृषि निदेशालय को इसकी रिपोर्ट भेजी गई है।

गत सप्ताह गुरुवार को किसानों ने कृषि विभाग को घोंघों की भारी संख्या में उपस्थिति की जानकारी दी जिसके बाद से कृषि पर्यवेक्षक और अधिकारी लगातार अफ्रीकी प्रजाति के विशालकाय घोंघों की ग्रोथ पर नजर बनाए हुए हैं। बताया जाता है कि राजस्थान में इससे पहले कभी इनकी उपस्थिति दर्ज नहीं की गई थी इसलिए किसान भी यकायक अपने खेतों में इतने बड़े आकार के घोंघों को देखकर विस्मित हैं।

कृषि विभाग के बड़गांव उपजिला सहायक निदेशक श्याम लाल सालवी बताते हैं कि  घोंघे बरसाती नाले में पाए जाते हैं। कुछ समय पूर्व किसानों ने बरसाती नाले की मिट्टी खेतों में डलवाई और उसी मिट्टी के साथ घोंघों के सुप्त अंडे भी संभवतः खेतों में पहुंच गए। 

घोंघों के अंडे काफी तादाद में खेतों में दिख रहे हैं
घोंघों के अंडे काफी तादाद में खेतों में दिख रहे हैं

आत्मा एक्सपर्ट ने किया नमक नियंत्रण विधि का प्रदर्शन, पैनिक की स्थिति नहीं

द मूकनायक ने आत्मा ( ATMA- एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी) उदयपुर के परियोजना निदेशक सुधीर वर्मा से घोंघों के प्रकोप पर विस्तृत जानकारी हासिल की। वर्मा ने बताया कि घोंघों को पनपने के लिए नमी और ग्रीन वेजिटेशन मुफीद वातावरण देता है। एक दो वर्षों से जमीन में सुप्तावस्था में पड़े अंडों को अनुकूल परिस्थिति प्राप्त होने से घोंघों की संख्या में यकायक बढ़ोतरी हुई है। वर्मा बताते हैं कि एग्रीकल्चर टर्म्स में कीटों की संख्या नही गिनी जाती बल्कि इनके लिए द्वारा किये गए  आर्थिक नुकसान ( ETL- इकोनॉमिक थ्रेश लेवल)  से प्रकोप का आंकलन किया जाता है। "उदयपुर जिले में खरीफ का सर्वाधिक रकबा मक्के और ज्वार का होता है और व्यापक स्तर पर इन्हीं फसलों की बुवाई की गई है। मक्के ज्वार की फसलों में घोंघे पत्तियों को खा जाती हैं तो भी कोई ज्यादा नुकसान नहीं होगा, व्यापक बुवाई के कारण इन खेतों में कीट कण्ट्रोल करना मुश्किल है। लेकिन जहां नगदी फसलें जैसे शाक तरकारियों की खेती हुई है वहां इनको कंट्रोल करने की बहुत आवश्यकता है, अन्यथा किसानों को आर्थिक नुकसान होगा", वर्मा ने बताया। 

आत्मा परियोजना निदेशक सुधीर वर्मा टीम के साथ खेतों में निरीक्षण करते हुए।
आत्मा परियोजना निदेशक सुधीर वर्मा टीम के साथ खेतों में निरीक्षण करते हुए।

वर्मा ने घोंघा प्रभावित खेतों के निरीक्षण किया और फसलों पर इनके प्रकोप की स्थिति जानी। परियोजना निदेशक ने किसानों को लघु स्तर पर कीट प्रबंधन टेक्निक बताते हुए नमक के कुछ दाने बुरकने की सलाह दी। वर्मा ने बताया कि घोंघे के टिश्यू बहुत सॉफ्ट होते हैं और नमक डालते ही ये नष्ट होकर पानी मे तब्दील हो जाते हैं। किसान रोज सुबह अपने खेतों में  दस्तानों को पहनकर घोंघों की हैंड पिकिंग करें और इन्हें एक जगह एकत्र करके नमक का छिड़काव करें तो इनपर नियंत्रण पाया जा सकता है। केमिकल छिड़काव की जरूरत नहीं है। वर्मा ने कहा अभी पैनिक की कोई स्थिति नहीं है लेकिन किसानों को खेतों में मोनिटरिंग करते रहना होगा। 

टिड्डी दलों की तरह चट रहे फसल

किसानों के अनुसार भारी मात्रा में यह घोंघे दिनभर पेड़ों पर चढ़कर और चट्टानों के नीचे छिप कर रहते हैं। शाम ढलने पर ये पेड़ों से नीचे उतर जाते हैं और रात में टिड्डी दल की तरह फसलों को खाकर नष्ट कर रहे हैं। 24 जुलाई के बाद से बड़ी संख्या में पहले छोटे-छोटे घोंघे दिखे। अब इनकी संख्या कई गुना बढ़ती जा रही है। इन घोंघो का वजन भी 100 से 250 ग्राम तक का हो गया है। पहले यह बहुत छोटे-छोटे थे लेकिन इनके आकार में वृद्धि होने से वे अब फसलों को तेजी के साथ चट कर रहे हैं। जिसके कारण किसानों में दहशत फैल गई है। खेतों में घोंघों के अंडे भी काफी संख्या में दिखाई दिए हैं। विशेषज्ञ कहते हैं अगर माकूल वातावरण मिले तो ये अंडे भी कीट में परिवर्तित हो जाएंगे अन्यथा तेज धूप और निराई गुड़ाई से ये नष्ट हो जाएंगे।

उदयपुर जिला परिषद में संयुक्त कृषि निदेशक माधव सिंह चंपावत का कहना है कि विभाग ने किसानों को सलाह दी है। वह नमक का घोल शंख घोंघे के ऊपर डालें। इससे उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। शंख घोंगा हरी फसलों को खाते हैं। इनको छूने से वायरस और बैक्टीरिया का संक्रमण फैलने की संभावना रहती है। इसलिए सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।

केरल में फसलों और मानव स्वास्थ्य के लिए चुनौती बने 

केरल के कोट्टयम, आलप्पी और एर्नाकुलम जिलों में कई जगहों पर अफ्रीकन जायंट स्नैल ने बीते कुछ वर्षों में फसलों के साथ मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंचाई है। इसके संपर्क में आने से कई बच्चों को दिमागी बुखार का संक्रमण पैदा हुआ। कोल्लम जिले के कृषि उपनिदेशक ने द मूकनायक को बताया कि 2018 के भयावह बाढ़ के बाद कई जगहों पर अफ्रीकन घोंघों का प्रकोप हुआ जिसे नियंत्रित करने के लिए जैविक तकनीक अपनाए गए। गोभी, पपीते आदि की पत्तियों को क्रश करके गीले बोरे में रखा जाता जिसकी गंध से आकर्षित होकर घोंघे उन्हें खाने आते हैं और फिर उन्हें इकट्ठा करके खारे पानी में डुबोकर नष्ट किया जाता है। बतख पालन भी घोंघों के नियंत्रण का कारगर जैविक तरीका है क्योंकि घोंघे बतखों का प्रिय आहार हैं। 

जानकारों का कहना है कि 25 वर्ष पहले शोध के उद्देश्य से केरल के एक शोधकर्ता द्वारा सिंगापुर से कुछ घोंघे आयात करवाये गए थे जो राज्य के लिए बड़ी चुनौती के रूप में परिवर्तित हो गए।

मानसून के दौरान घोंघे घरों की रसोई में प्रवेश करते हैं, कैल्शियम के लिए परिसर की दीवारों पर चिपके रहते हैं और पपीता, टैपिओका, अरबी, अदरक और सभी कंद फसलों सहित 500 विभिन्न पौधों को खाते हैं। प्रत्येक घोंघा साल में दो बार 500-900 तक अंडे दे सकता है जिससे इनकी संख्या तेजी से बढ़ती है। 

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