केरल में गुरु पूर्णिमा पर स्कूलों में 'चरण वंदन' को लेकर क्यों उठा सियासी भूचाल? क्या ये हैं जाति-आधारित परम्पराएं?

केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया तथा कासरगोड की घटनाओं के संबंध में बेकल के पुलिस उपाधीक्षक और बादुडका पुलिस से रिपोर्ट मांगी।
केरल जैसे प्रगतिशील राज्य में  'पाद पूजा' की  प्रथा को कई लोग सामंती और जाति-आधारित परंपराओं से जोड़कर देखते हैं।
केरल जैसे प्रगतिशील राज्य में 'पाद पूजा' की प्रथा को कई लोग सामंती और जाति-आधारित परंपराओं से जोड़कर देखते हैं। सोर्स- मकतूब मीडिया
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तिरुवनंतपुरम- 10 जुलाई को केरल के कई सीबीएसई संबद्ध स्कूलों में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित 'पाद पूजा' (चरण वंदन) समारोहों ने भारी विवाद खड़ा कर दिया। यह अनुष्ठान भारतीय विद्या निकेतन (बीवीएन) द्वारा संचालित स्कूलों में आयोजित किए गए, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शैक्षिक संगठन से जुड़े हैं।

इन कार्यक्रमों में छात्रों ने शिक्षकों और एक मामले में भाजपा नेता के पैर धोए, जिसके बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। आरोप लगाए गए कि यह अनुष्ठान पिछड़ी प्रथाओं को बढ़ावा देता है और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है।

विवाद बढ़ता देख केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया तथा कासरगोड की घटनाओं के संबंध में बेकल के पुलिस उपाधीक्षक और बादुडका पुलिस से रिपोर्ट मांगी।

व्यास जयंती पर मनाई जाने वाली 'गुरु पूर्णिमा' एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है जो गुरुओं और शिक्षकों को समर्पित है। कुछ सांस्कृतिक संदर्भों में, 'पाद पूजा' जैसे अनुष्ठानों को सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जहां छात्र शिक्षकों के पैर धोकर फूल चढ़ाते हैं। हालांकि, केरल जैसे प्रगतिशील राज्य में यह प्रथा विवादास्पद हो जाती है, क्योंकि कई लोग इसे सामंती और जाति-आधारित परंपराओं से जोड़कर देखते हैं ।

विवाद तब और बढ़ गया जब कासरगोड, कन्नूर और अलाप्पुझा जिलों के स्कूलों में आयोजित इन समारोहों के वीडियो सामने आए, जिनमें विवेकानंद विद्या पीठम, मावेलिकारा में एक भाजपा के जिला सचिव अनूप के पैर धोने की घटना भी शामिल थी।

जब राज्यपाल ने भी किया समर्थन

2 जनवरी, 2025 को पदभार संभालने वाले केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने इस अनुष्ठान का जोरदार समर्थन किया। 13 जुलाई को बालगोकुलम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "गुरु पूजा हमारी संस्कृति का हिस्सा है... यदि हम अपनी संस्कृति को भूल जाएंगे, तो हम खुद को भूल जाएंगे।" उन्होंने आलोचकों पर सवाल उठाते हुए कहा कि गुरुओं का सम्मान भारतीय परंपरा का मूलभूत हिस्सा है। अर्लेकर, जो लंबे समय से आरएसएस और भाजपा से जुड़े रहे हैं, के बयानों को विपक्षी दलों ने शिक्षण संस्थानों में आरएसएस के एजेंडे को बढ़ावा देने का प्रयास बताया।

केरल के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने इन अनुष्ठानों को "अलोकतांत्रिक और आधुनिक शिक्षा के विरुद्ध" बताया। उन्होंने 12 जुलाई को निर्देश दिया कि सभी संबंधित स्कूलों से स्पष्टीकरण मांगा जाए, क्योंकि यह प्रथा शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करती है। शिवनकुट्टी ने आरोप लगाया कि आरएसएस राज्यपाल के समर्थन का उपयोग करके केरल के स्कूलों में "पिछड़ी प्रथाओं" को थोपने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने विवेकानंद विद्या पीठम की घटना का विशेष रूप से उल्लेख किया, जहां छात्रों ने भाजपा जिला सचिव के पैर धोए।

सीपीआईएम राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने इस अनुष्ठान को "आरएसएस के केरल की धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने के एजेंडे" का हिस्सा बताया। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने राज्यपाल के बयान को "केरल की प्रगतिशील विरासत के लिए कलंक" करार दिया। वहीं, एसएफआई और डीवाईएफआई जैसे छात्र संगठनों ने इन अनुष्ठानों को "जातिवादी" और "असंवैधानिक" बताते हुए विरोध प्रदर्शन किए।

व्यापक रूप में इस विवाद को केरल सरकार और राजभवन के बीच चल रहे तनाव के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है। बीते महीने जून में शिवनकुट्टी ने एक कार्यक्रम का बहिष्कार किया था, जहां आरएसएस से जुड़े भारत माता के चित्र का प्रदर्शन किया गया था। सीपीआईएम ने आरोप लगाया कि अर्लेकर राजभवन को "आरएसएस कार्यालय" में बदल रहे हैं।

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