एससी-एसटी स्टूडेंट्स के साथ ना हो भेदभाव: यूजीसी की कॉलेज-यूनिवर्सिटीज को निर्देश

भारत में यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के बढ़ते मामले, बहुजन समुदाय के स्टूडेंट्स द्वारा ड्रॉपआउट आदि पर शोध रिपोर्ट्स के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मामले को गंभीरता से लिया है।
एससी-एसटी स्टूडेंट्स के साथ ना हो भेदभाव: यूजीसी की कॉलेज-यूनिवर्सिटीज को निर्देश

नई दिल्ली। यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि उनके पदाधिकारी और फैकलिटी मेंबर्स अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्राओं व छात्रों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव करने से बचें।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी पत्र में सभी उच्च शिक्षण संसाधनों से यह सुनिश्चित करने को कहा है, कि जाति वर्ग के आधार पर छात्रों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाए। इसके साथ ही उन्हें अपनी वेबसाइट पर ऐसी शिकायतें दर्ज कराने के लिए व्यवस्था करने का सुझाव दिया है।

यूजीसी के सचिव प्रमुख प्रो. मनीष जोशी ने 19 जून को सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को इस संबंध में पत्र लिखा है। पत्र में यूसीजी शिक्षण संस्था संसाधनों से इन विषयों पर कुछ कार्य बिंदुओं का पालन करने का आग्रह किया है। पत्र में कहा गया है कि संस्थानों के अधिकारियों और शिक्षकों को अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के साथ भेदभाव करने से बचाना चाहिए।

पत्र में यह दिए सुझाव:

संस्थान प्रमुखों से निम्नलिखित कार्रवाई बिंदुओं का अनुपालन करने का अनुरोध किया गया है।

  • अधिकारियों सदस्यों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ भेदभाव के किसी भी कृत्य से बचना चाहिए।

  • छात्रों को उनके सामाजिक मूल के आधार पर विश्वविद्यालय, संस्थान, कॉलेज ऐसे रहने के लिए अपनी वेबसाइट पर एक पेज विकसित कर सकते हैं।

  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों द्वारा जातिगत भेदभाव की शिकायतें और एक शिकायत रजिस्टर भी रखें।

  • इस प्रयोजन के लिए रजिस्ट्रार, प्रिंसिपल का कार्यालय भी हो, यदि ऐसी कोई घटना संज्ञान में आती है, तो अधिकारियों, दोषी अधिकारी, सदस्य के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

  • विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेजों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे कोई अधिकारी, संकाय नहीं हो जो किसी भी समुदाय या छात्रों की श्रेणी के खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव में शामिल होते हैं।

  • विश्वविद्यालय भेदभाव की शिकायतों को देखने के लिए एक समिति का गठन कर सकता है जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित सदस्य शामिल हो।

  • अपने विश्वविद्यालय, संस्थान के अधिकारियों, संकाय सदस्यों को और अधिक संवेदनशील होने, जातिगत भेदभाव की घटनाओं से निपटने के दौरान संवेदनशीलता बरतने को कहा है।

वेबसाइट पर उपलब्ध है पत्र

इस मामले पर द मूकनायक ने डॉक्टर पंकज उपाध्याय से बात की। पंकज इग्नू नई दिल्ली में अकादमिक सलाहकार हैं। वह इस मामले पर बताते हैं कि, "पहली बार पत्र नहीं लिखा गया है। पहले भी इस तरह के पत्र लिखे गए हैं। लेकिन उस समय उसपर सरकार तक यह बातें नहीं पहुंच पाती थी। इस बार यह पत्र नयी योजना के तहत या कांसेप्ट की तहत बनाया गया है। और यह पत्र वेबसाइट में जाकर सीधा दिख जाएगा। आप इसे ऑनलाइन जाकर भी देख सकते हैं। अगर किसी को कुछ बातों से दिक्कत या परेशानी हो तो, सीधे ऑनलाइन अपनी बातें रख सकता है।"

वह बताते हैं कि, "इस पत्र का यही उद्देश्य है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो। और यदि किसी के साथ ऐसा होता भी है तो इस पर क्या एक्शन लिया गया और क्या समाधान हुआ है- इसकी जानकारी हो। हर साल इस प्रकार का पत्र जारी होता है। इस बार नयी अपडेट के साथ इसे वेबसाइट पर डाला गया है। जो मामले यूनिवर्सिटी तक ही सीमित रह जाते थे, अब वह सीमित नहीं रहेंगे, खुलकर सामने आएंगे। इससे उन शिकायतों पर गौर किया जा सकेगा। पहले अपनी शिकायतें पत्र द्वारा अपने विश्वविद्यालय के प्रशासन को देते थे। अब वह डायरेक्ट ऑनलाइन डाल सकते हैं।

डॉ. उपाध्याय कहते हैं कि "प्रवेश परीक्षा के समय जो प्रोसेस होता है उसकी जानकारी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग को नहीं मिल पाती थी, उन्हीं चीजों को रोकने के लिए यह सब हो रहा है। कुछ कंडीशन ऐसी होती थी जिनसे कई बार समस्या हो जाती है लेकिन उनके समाधान भी निकाले जाते हैं परंतु स्टूडेंट उस समाधान से संतुष्ट नहीं होते। फिर वह यूनिवर्सिटी में शिकायत करते थे। इसलिए प्रशासन ने ऑनलाइन प्रॉसेस कर दिया है। इससे पारदर्शिता रहेगी और समयबद्ध रूप से समाधान दिया जाएगा। यह सारी प्रोसेस पहले भी प्लानिंग में थी जिसपर परिपत्र जारी किया गया है ताकि पालना सुनिश्चित हो।"

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