मध्य प्रदेश: इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों से छात्रों का रुझान क्यों हुआ कम, 27 कॉलेज बंद!

मध्य प्रदेश: इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों से छात्रों का रुझान क्यों हुआ कम, 27 कॉलेज बंद!

भोपाल। मध्य प्रदेश के छात्रों में इंजीनियर बनने की चाह धीरे-धीरे कम होती जा रही है। नतीजा ये है कि हर साल राज्य तकनीकी शिक्षा विभाग इंजीनियरिंग की सीटों को कम करता जा रहा है। मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पिछले चार सालों में 27 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए और एक लाख 18 हजार 439 सीटें खाली रह गई हैं। बताया जा रहा है कि प्रदेश में इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों में छात्रों का रुझान कम होने का बड़ा कारण छात्रों को प्लेसमेंट नहीं मिलना है। 

विधानसभा के बजट सत्र में भाजपा विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया के सवाल के लिखित जवाब में तकनीकी शिक्षा मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने जानकारी दी की प्रदेश के 27 इंजीनियरिंग कॉलेज 2018 के बाद बंद हो गए। 11 इंजीनियरिंग महाविद्यालय निजी विश्वविद्यालयों के रुप में स्थापित हुए हैं। मंत्री ने बताया कि संस्थाओं के अनुरोध पर देश एवं प्रदेश के स्तर पर छात्रों की अन्य रोजगार में रुचि और व्यावसायिक पाठयक्रमों के प्रति रुझान कम होने के कारण इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हुए। मंत्री ने यह भी बताया कि निजी इंजीनियरिंग कॉलेंजों में शैक्षणिक स्तर के उन्नयन हेतु राज्य स्तरीय रैंकिंग फ्रेमवर्क तैयार किया गया है।

वर्ष 2022-23 सत्र में 20 हजार सीटें रह गईं खाली

मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग कोर्सों से छात्रों की बेरुखी लगातार खाली रह रही सीटों से साफ झलकती है। तकनीकी शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में प्रदेश में कुल 142 कॉलेज हैं। इन सभी कॉलेजों को मिलाकर 58 हजार सीटें हैं। इन सीटों पर प्रवेश के लिए अगस्त 2022 में सत्र वर्ष 2022-23 के लिए एडमिशन की प्रक्रिया शुरू की गई थी। अगस्त से अक्टूबर माह तक एडमिशन प्रक्रिया करीब दो महीने तक चली। जिसमें प्रदेश के इंजीनियर कॉलेजों में 37 हजार 886 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया था जबकि 20 हजार सीटें खाली रह गईं थीं। प्रदेश के सभी शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है, और निजी कॉलेज प्राइवेट यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध है। 

द मूकनायक से बातचीत करते हुए विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया ने बताया कि "इंजीनियरिंग कोर्सों में छात्रों का रुझान कम होना चिंता का विषय है। मेरे द्वारा विधानसभा में पूछे गए सवाल में 2018 से 2022 तक 27 इंजीनियरिंग कॉलेज बन्द होने की जानकारी मिली है। वहीं 18 हजार सीटें खाली भी रह गईं। तकनीकी शिक्षा विभाग की ओर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई को और बेहतर बनाने का प्रयास किए जाने जा उत्तर मिला है।"

एक लाख में सिर्फ 58 हजार सीटें ही शेष

मध्य प्रदेश में वर्ष 2010-11 में इंजीनियरिंग कॉलेजों की सीटें एक लाख से ज्यादा हुआ करती थीं। इनमें हर साल दाखिले भी 70-75 हजार के आसपास हो जाते थे, लेकिन वर्तमान में इंजीनियरिंग की सीटें 45 प्रतिशत तक कम हो चुकी हैं। वर्तमान में इंजीनियरिंग की करीब 58 हजार सीटें हैं और दाखिले 37 हजार ही हुए हैं। पिछले 8 साल से छात्रों का रुझान इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में कम हुआ है। कॉलेज संचालकों के मुताबिक हर साल 10-15% सीटें सरेंडर हो रही हैं। इसका कारण छात्रों को रोजगार नहीं मिल पाना है। 

देशभर में दर्ज की गई गिरावट

मध्य प्रदेश के साथ पूरे देशभर में इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। ऑल इंडिया हायर एजुकेशन सर्वे 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 के मुकाबले 2020-21 में इंजीनियरिंग में प्रवेश में 10 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। और यह 40.85 लाख से घट कर 36.63 लाख रह गया। जानकारी के अनुसार अन्य पाठ्यक्रमों में ग्रेज्युएशन के एडमिशन बढ़े हैं। लेकिन सिर्फ इंजीनियरिंग में ही एडमिशन में कमी आई है।

ग्वालियर के अखिलेश कुमार ने द मूकनायक को बताया कि उन्होंने एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की डिग्री वर्ष 2016 में पूरी की लेकिन उन्हें उनकी पढ़ाई से सम्बन्धित नौकरी  नहीं मिली। उन्होंने बताया कि कॉलेज से सिविल में बीई करने के बाद उन्होंने एक प्राइवेट फार्म में इंटर्नशिप किया बावजूद इसके वह अपनी डिग्री लेकर कई शहरों में गए पर रोजगार नहीं मिला। जब कहीं रोजगार की बात नहीं बनी, तब अखलेश ने शासकीय नौकरी के लिए अन्य प्रतियोगिताओं की तैयारी शुरू कर दी। 

भोपाल के 2013 में उत्तीर्ण बीई इलेक्टिकल के इंजीनियर देवेंद्र सूर्यवंशी द मूकनायक को बताते हैं कि उन्होंने 62 प्रतिशत अंक हासिल कर बीई इलेक्ट्रिकल की डिग्री प्राप्त की, जब कॉलेज केम्पस में प्लेसमेंट नहीं हुआ तब उन्होंने अन्य जगह नौकरियों की तलाश की लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। जब कई साल तलाश के बावजूद रोजगार नहीं मिला तब उन्होंने एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। फिलहाल देवेंद्र भोपाल के एक निजी स्कूल में 11वीं-12वीं के छात्रों को पढ़ाकर कमा रहे हैं। 

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