मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का अहम फैसला: निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर आंशिक रोक

कोर्ट के इस फैसले से अभिभावकों को आंशिक राहत जरूर मिली है, लेकिन यह मामला अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
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भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैथ और न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने राज्य के निजी स्कूलों द्वारा की जा रही मनमानी फीस वृद्धि को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अभिभावकों और छात्रों को आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने अभिभावकों को निर्देश दिया है कि वे 10 फीसदी वृद्धि के साथ कुल फीस का 50 प्रतिशत जमा करें, जबकि शेष राशि अगले महीने तक जमा करने की छूट दी गई है। इसके बाद ही बच्चों को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी। मामले की अगली सुनवाई 17 मार्च को होगी।

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब विभिन्न निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से बढ़ाई गई फीस को लेकर मध्य प्रदेश अभिभावक संघ के सचिन गुप्ता ने हाई कोर्ट में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया। संघ की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने अदालत के समक्ष दलील रखी कि फीस जमा न करने के कारण कई निजी स्कूल बच्चों को परीक्षा में शामिल होने से रोक रहे हैं। इससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है और उनके भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।

गौरतलब है कि इससे पहले जिला कलेक्टर ने लगभग 32 निजी स्कूलों को 265 करोड़ रुपये अभिभावकों को लौटाने के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके, स्कूल संचालक अधिक फीस वसूलते रहे, जिससे अभिभावकों में नाराजगी बनी हुई थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान कुछ अभिभावक भी अदालत में उपस्थित हुए, जिनसे न्यायालय ने सीधे सवाल-जवाब किए।

इस विवाद की जड़ 13 अगस्त 2024 को दिए गए उस आदेश से जुड़ी है, जिसमें हाई कोर्ट ने जिला समिति के एक निर्णय पर रोक लगा दी थी। इस निर्णय के तहत जिला समिति ने निजी स्कूलों को फीस वापस करने और वर्तमान सत्र के लिए शुल्क निर्धारित करने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ जबलपुर के क्राइस्ट चर्च, सेंट अलायसियस, ज्ञान गंगा और स्टेम फील्ड सहित कई निजी स्कूलों ने अपील दायर की थी।

अपीलकर्ताओं की ओर से वकील अंशुमान सिंह ने अदालत में दलील रखी कि जिला समिति ने स्कूलों को सिर्फ इस आधार पर फीस वापस करने का आदेश दिया था कि उन्होंने ऑनलाइन पोर्टल पर फीस वृद्धि की जानकारी अपलोड नहीं की थी। समिति ने 2017-18 से 2024-25 तक के शैक्षणिक सत्रों में बढ़ाई गई फीस को वापस करने और वर्तमान सत्र की फीस निर्धारित करने का निर्णय लिया था।

स्कूल संचालकों की ओर से अदालत में यह तर्क दिया गया कि जिला समिति ने फीस वृद्धि का गलत आकलन किया है। उनका कहना था कि मध्यप्रदेश निजी स्कूल फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन अधिनियम के तहत स्कूल प्रबंधन को 10 प्रतिशत तक फीस बढ़ाने का अधिकार है। अगर स्कूल 10 प्रतिशत से अधिक फीस बढ़ाते हैं, तो उन्हें जिला समिति से अनुमति लेनी होगी, और 15 प्रतिशत से अधिक वृद्धि की स्थिति में राज्य समिति से स्वीकृति लेनी अनिवार्य होगी।

कोर्ट के इस फैसले से अभिभावकों को आंशिक राहत जरूर मिली है, लेकिन यह मामला अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि को लेकर बहस जारी है, और अदालत का अंतिम निर्णय आने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि अभिभावकों को पूरी तरह न्याय मिलेगा या नहीं। फिलहाल, अदालत के आदेश के अनुसार अभिभावकों को तत्काल 50 प्रतिशत फीस जमा करनी होगी, जिससे छात्रों की परीक्षा में भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

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