हनीसकल कहलाएगी 'पूर्वी', इंग्लिश किताबों के नाम 'मृदंग' और 'संतूर'! — एनसीईआरटी किताबों को लेकर केंद्र और दक्षिणी राज्यों के बीच क्या है रस्साकशी?

दक्षिणी राज्यों, खासकर केरल और तमिलनाडु, का मानना है कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों पर हिंदी को जबरन लागू करने की कोशिश है, जो उनकी क्षेत्रीय भाषाओं (जैसे तमिल और मलयालम) को हाशिए पर धकेल सकता है।
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नई दिल्ली- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा अंग्रेजी माध्यम के पाठ्यपुस्तकों को हिंदी शीर्षक देने के फैसले ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। अंग्रेजी माध्यम की पाठ्यपुस्तकों के शीर्षकों को 'पूर्वी', 'मृदंग' और 'संतूर' जैसे हिंदी नाम देने के एनसीईआरटी के फैसले से दक्षिणी राज्यों में नाराजगी है। इसकी मुख्य वजह यह है कि ये राज्य इसे अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान पर हमला मानते हैं।

केरल के शिक्षा मंत्री वी. शिवकुट्टी ने इस कदम को "तर्कहीन" करार देते हुए इसकी समीक्षा की मांग की है। उन्होंने इसे संघीय सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया, साथ ही इसे देश की भाषाई विविधता को नष्ट करने वाला कदम कहा।

विवाद का केंद्र एनसीईआरटी द्वारा अंग्रेजी माध्यम की पाठ्यपुस्तकों, जिनमें अंग्रेजी भाषा की किताबें भी शामिल हैं, को हिंदी शीर्षक देना है। उदाहरण के लिए, कक्षा 6 की अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक, जो पहले 'हनीसकल' के नाम से जानी जाती थी, अब 'पूर्वी' नाम से प्रकाशित होगी, जो एक हिंदी शब्द है और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम भी है। इसी तरह, कक्षा 1 और 2 की अंग्रेजी पाठ्यपुस्तकों का नाम 'मृदंग' और कक्षा 3 की किताब का नाम 'संतूर' रखा गया है, जो भारतीय संगीतमय वाद्ययंत्रों के नाम हैं। अन्य शीर्षकों में 'गणित प्रकाश' (कक्षा 6 गणित), 'मैथ्स मेला' (कक्षा 3 गणित), 'कृति-I' (कक्षा 6 कला), 'खेल योग' (कक्षा 3 शारीरिक शिक्षा), और 'कौशल बोध' (कक्षा 6 व्यावसायिक शिक्षा) शामिल हैं।

शिवकुट्टी ने कहा कि दशकों से अंग्रेजी शीर्षकों का उपयोग भाषाई विविधता का सम्मान करने और बच्चों में संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित करने के लिए किया जाता रहा है। इसे हिंदी शीर्षकों से बदलना "पूरी तरह गलत" है। उन्होंने शिक्षा को थोपने का साधन नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और सहमति का माध्यम बताया। केरल, जो क्षेत्रीय सांस्कृतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है, ने इस फैसले को भाषाई विविधता के खिलाफ एक सांस्कृतिक थोपना करार दिया।

यह विवाद उस समय और गहरा गया जब तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार ने राष्ट्रीय शैक्षिक नीति 2020 (एनईपी) में तीन-भाषा नीति का विरोध किया, इसे दक्षिणी राज्यों में "हिंदी थोपने" की कोशिश के रूप में देखा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पहले भी केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है, दावा करते हुए कि एनईपी की तीन-भाषा नीति को लागू न करने के कारण राज्य के स्कूलों को कुछ फंड से वंचित किया गया है।

राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए कहा, "क्या यही उनकी तीन-भाषा नीति है? जहां अंग्रेजी पाठ्यपुस्तकों का नाम भी हिंदी में रखा जा रहा है?" तमिलनाडु ने एनईपी को लागू करने से इनकार कर दिया है और अपनी स्वयं की राज्य शिक्षा नीति तैयार करने के लिए एक पैनल गठित किया है।

एनसीईआरटी ने 2023 से एनईपी 2020 के तहत नई पाठ्यपुस्तकें लाना शुरू किया। कक्षा 1 और 2 के लिए किताबें पहले आईं, इसके बाद 2024 में कक्षा 3 और 6 की किताबें आईं। अब कक्षा 4, 5, 7 और 8 की नई किताबें जारी की जा रही हैं। पहले, एनसीईआरटी विभिन्न भाषाओं के लिए अलग-अलग शीर्षक देता था, जैसे कक्षा 6 गणित की पाठ्यपुस्तक अंग्रेजी में 'मैथमेटिक्स', हिंदी में 'गणित', और उर्दू में 'रियाज़ी' कहलाती थी। लेकिन अब, अंग्रेजी और हिंदी दोनों संस्करणों के लिए एक ही हिंदी शीर्षक, जैसे 'गणित प्रकाश', का उपयोग किया जा रहा है।

केंद्र सरकार और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि तीन-भाषा नीति संवैधानिक जनादेश है और एनईपी का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, भारतीय संविधान में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। आलोचकों का तर्क है कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को बढ़ावा देने का एक प्रयास है, जो क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों की कीमत पर हो सकता है।

शिवकुट्टी ने सभी गैर-हिंदी भाषी राज्यों से इस तरह के "थोपने" के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया है। यह विवाद भारत में भाषा नीति और शैक्षिक स्वायत्तता के आसपास लंबे समय से चली आ रही तनाव को दर्शाता है, खासकर दक्षिणी राज्यों में, जहां हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं पर प्राथमिकता देने के किसी भी कदम को संदेह की नजर से देखा जाता है।

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