शिक्षक नहीं, संसाधन नहीं—फिर भी छात्र दे रहे हैं परीक्षा! राजस्थान में कला शिक्षा वेंटिलेटर पर क्यों?

वर्ष 1992 में सरकार ने द्वितीय और तृतीय श्रेणी के संगीत शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया रोक दी, जिससे पिछले चार दशकों में केवल 28 संगीत शिक्षकों को नियुक्त किया गया।
 वर्तमान में राजस्थान के 14,032 विद्यालयों में से मात्र 43 स्कूलों में ही संगीत विषय ऐच्छिक रूप से संचालित किया जा रहा है। इनमें से भी केवल 28 पदों पर संगीत शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 15 पद खाली पड़े हैं।
वर्तमान में राजस्थान के 14,032 विद्यालयों में से मात्र 43 स्कूलों में ही संगीत विषय ऐच्छिक रूप से संचालित किया जा रहा है। इनमें से भी केवल 28 पदों पर संगीत शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 15 पद खाली पड़े हैं।
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जयपुर- अन्य विषयों की तुलना में कला और संगीत को हमेशा से ही कमतर आंका जाता रहा है शायद यही वजह है कि कला को शिक्षा का एक जरूरी हिस्सा कभी नहीं माना गया। इसी सोच के चलते सरकारी उदासीनता के कारण राजस्थान में कला शिक्षा की स्थिति बेहद खराब हो गई है।

राजस्थान में कला शिक्षा की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पहली से दसवी क्लासेज तक आर्ट एंड क्राफ्ट अनिवार्य होने के बावजूद इसकी अनदेखी होती है. माध्यमिक शिक्षा परिषद और शिक्षा विभाग के नियमानुसार हर वर्ष परीक्षा आयोजित की जाती है, जिसमें लाखों छात्र भाग लेते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि राज्यभर के अधिकांश सरकारी विद्यालयों में कला शिक्षकों की नियुक्ति ही नहीं की गई है।

परीक्षा के आयोजन और परिणामों की घोषणा तक की प्रक्रिया कागज़ों में पूरी कर दी जाती है, जिससे छात्रों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त करने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में (एनईपी) रचनात्मक शिक्षा पर जोर दिया गया है, लेकिन राज्य के हजारों छात्रों को बिना शिक्षक, बिना किताब और बिना पाठ्यक्रम के कला की पढ़ाई करनी पड़ रही है। सरकार कागजों में तो पैसा आवंटित कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति जस की तस है।

राजस्थान शिक्षक संघ सियाराम के प्रदेश प्रशासनिक अध्यक्ष सियाराम शर्मा बताते हैं, राज्य में कला शिक्षकों के अभाव के चलते हिन्दी और उर्दू विषय के शिक्षक ही उत्तर पुस्तिकाओं की जांच कर रहे हैं। यह शिक्षा व्यवस्था की एक गंभीर खामी है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मंशा के विपरीत जाती है। एनईपी के तहत कला शिक्षा को अनिवार्य कर प्राथमिकता दी गई है ताकि बच्चों के रचनात्मक कौशल का विकास हो और उनका शैक्षणिक तनाव कम किया जा सके। लेकिन राजस्थान में इस नीति की अनदेखी हो रही है।

केंद्र सरकार की ओर से कला शिक्षा के लिए करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया जा रहा है। सत्र 2021-22 के लिए केंद्र ने आर्ट एंड क्राफ्ट रूम के निर्माण हेतु 41876.54 लाख रुपये, कला उत्सव के लिए 1.13 करोड़ रुपये और कला किट सामग्री के लिए 19.70 करोड़ रुपये जारी किए थे। लेकिन इस बजट का उपयोग कला शिक्षा के लिए समुचित रूप से नहीं किया गया। स्कूल शिक्षा परिषद ने इस बजट को दूसरी जगह इस्तेमाल कर लिया, जिससे कला शिक्षा की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

 वर्तमान में राजस्थान के 14,032 विद्यालयों में से मात्र 43 स्कूलों में ही संगीत विषय ऐच्छिक रूप से संचालित किया जा रहा है। इनमें से भी केवल 28 पदों पर संगीत शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 15 पद खाली पड़े हैं।
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सरकारी स्कूलों में बिना शिक्षक, बिना किताब और बिना पाठ्यक्रम के बच्चों को कला शिक्षा प्रदान करने का दावा किया जा रहा है। राज्य सरकार केवल कागज़ों में कार्यक्रम आयोजित कर वाहवाही लूट रही है, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि अधिकांश स्कूलों में कला कक्ष भी नहीं हैं। राजस्थान शिक्षक संघ सियाराम के अनुसार, अन्य विषयों के शिक्षक कला शिक्षा की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं, जिससे विद्यार्थियों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है।

हर वर्ष स्कूल शिक्षा परिषद वार्षिक कैलेंडर और कार्यक्रम जारी करता है। लेकिन कला शिक्षा का बजट आवंटन कई वर्षों से लंबित है और विभागीय स्तर पर फाइलें धूल खा रही हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि राज्य में कक्षा 1 से 10वीं तक के लाखों छात्रों की परीक्षा ली जाती है और उन्हें ग्रेड भी जारी कर दिया जाता है, लेकिन वास्तव में उन्हें कला का कोई ज्ञान नहीं मिल पाता। आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के 86.23 लाख छात्रों में से करीब 10 लाख छात्रों ने 12वीं बोर्ड में कला शिक्षा को ऐच्छिक विषय के रूप में चुना है।

संगीत शिक्षा की स्थिति और भी खराब है। वर्ष 1992 में सरकार ने द्वितीय और तृतीय श्रेणी के संगीत शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया रोक दी, जिससे पिछले चार दशकों में केवल 28 संगीत शिक्षकों को नियुक्त किया गया। वर्तमान में राजस्थान के 14,032 विद्यालयों में से मात्र 43 स्कूलों में ही संगीत विषय ऐच्छिक रूप से संचालित किया जा रहा है। इनमें से भी केवल 28 पदों पर संगीत शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 15 पद खाली पड़े हैं।

राज्य में 23 सरकारी और 41 निजी महाविद्यालयों में संगीत विषय में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री दी जाती है, जिससे हर साल हजारों युवा संगीत शिक्षक बनकर तैयार होते हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य के विश्वविद्यालयों में भी संगीत विभाग संचालित हो रहे हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में संगीत शिक्षकों की भर्ती नहीं होने से ये युवा बेरोजगार रह जाते हैं और केंद्र सरकार अथवा अन्य राज्यों में जाकर नौकरी करने को मजबूर होते हैं।

केंद्र सरकार द्वारा बार-बार बजट आवंटित किए जाने के बावजूद राज्य सरकार कला शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं दिखती। हजारों आर्ट रूम बनकर तैयार हो चुके हैं, लेकिन उनमें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। यह स्थिति दर्शाती है कि कला शिक्षा की केवल औपचारिकता निभाई जा रही है, जबकि छात्रों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा व्यवस्था की इस अनदेखी से न केवल छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि स्थानीय कलाकारों और शिक्षकों को स्थायी रोजगार मिलने की संभावनाएं भी खत्म होती जा रही हैं।

 वर्तमान में राजस्थान के 14,032 विद्यालयों में से मात्र 43 स्कूलों में ही संगीत विषय ऐच्छिक रूप से संचालित किया जा रहा है। इनमें से भी केवल 28 पदों पर संगीत शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 15 पद खाली पड़े हैं।
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