दिल्ली विश्वविद्यालय में बड़ा अकादमिक बदलाव: सिलेबस से हटी मनुस्मृति, अब छात्र पढ़ेंगे 'शुक्रनीति'

जाति और महिला विरोधी विचारों के कारण लंबे समय से विवादों में रहे 'मनुस्मृति' पर विश्वविद्यालय का अंतिम फैसला। अब छात्र प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और नैतिकता पर आधारित 'शुक्रनीति' का अध्ययन करेंगे।
Shukraniti and Manusmriti.
मनुस्मृति नहीं अब छात्र पढ़ेंगे 'शुक्रनीति'
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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने अपने एक अहम फैसले में स्नातकोत्तर (MA) संस्कृत के पाठ्यक्रम से विवादास्पद ग्रंथ 'मनुस्मृति' को हटा दिया है। अब तीसरे सेमेस्टर के छात्रों को इसके स्थान पर ऋषि शुक्राचार्य द्वारा रचित प्राचीन ग्रंथ 'शुक्रनीति' का अध्ययन कराया जाएगा। यह निर्णय अकादमिक जगत में एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है।

यह महत्वपूर्ण फैसला दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने अपनी विशेष आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए लिया है। इस निर्णय को अंतिम मंजूरी के लिए 12 सितंबर को होने वाली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (EC) की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा।

यह मामला कुछ महीने पहले तब सुर्खियों में आया था जब जून में संस्कृत विभाग द्वारा मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने की खबरें सामने आई थीं। इसके बाद मचे बवाल पर कुलपति कार्यालय ने तुरंत एक बयान जारी कर स्पष्ट किया था कि यह ग्रंथ डीयू के किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाएगा और इसे निश्चित रूप से हटाया जाएगा।

यह पहली बार नहीं है जब मनुस्मृति को डीयू के पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयास किया गया हो। इससे पहले भी कानून (Law) और इतिहास (History) जैसे विषयों में इसे शामिल करने के प्रस्ताव लाए गए थे, लेकिन छात्रों, शिक्षकों और सामाजिक समूहों के कड़े विरोध के कारण उन्हें हर बार वापस लेना पड़ा। विश्वविद्यालय प्रशासन ने बार-बार यह आश्वासन दिया है कि इस विवादास्पद ग्रंथ को विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाएगा।

क्यों है मनुस्मृति पर विवाद?

मनुस्मृति को व्यापक रूप से एक विवादास्पद ग्रंथ माना जाता है। इसकी मुख्य वजह इसमें जाति व्यवस्था और महिलाओं की स्थिति पर दिए गए भेदभावपूर्ण और निर्देशात्मक विचार हैं। आलोचकों का मानना है कि ये विचार आधुनिक समाज के न्याय और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। कई शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों का तर्क है कि ऐसे ग्रंथों को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करना प्रतिगामी और दकियानूसी विचारों को वैचारिक वैधता प्रदान करता है।

'शुक्रनीति' में क्या पढ़ेंगे छात्र?

मनुस्मृति की जगह अब छात्र 'शुक्रनीति' का अध्ययन करेंगे, जो एमए संस्कृत के तीसरे सेमेस्टर में एक वैकल्पिक पेपर के रूप में उपलब्ध होगा। स्वीकृत पाठ्यक्रम के अनुसार, इस विषय में प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और नैतिकता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

इस कोर्स के तहत छात्रों को राजकीय संसाधनों का प्रबंधन, सामाजिक मानदंड और नैतिक सिद्धांत, राष्ट्र की अवधारणा, सैन्य रणनीति और किलेबंदी जैसे महत्वपूर्ण विषयों की गहरी समझ दी जाएगी। पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य छात्रों को 'शुक्रनीति' में वर्णित प्राचीन भारतीय प्रशासनिक मॉडल, शासन के नैतिक आधार और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा की रणनीतियों से परिचित कराना है।

कोर्स के उद्देश्यों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि छात्र कक्षा में चर्चा और अध्ययन के माध्यम से शासन के सूक्ष्म सिद्धांतों, राज-काज की नैतिक नींव और राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीतियों का पता लगाएंगे। छात्रों को इस विषय पर व्यापक दृष्टिकोण देने के लिए धर्मशास्त्र और हिंदू कानूनों के इतिहास पर लिखी गईं अन्य सहायक पुस्तकें पढ़ने का भी सुझाव दिया गया है।

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