UP: नंगे पांव स्कूल जाने वाला दलित बच्चा बना गांव का पहला 10वीं पास छात्र, अब बनेगा इंजीनियर!

शादियों में लाइट उठाकर कमाने वाला दलित छात्र रामकेवल बना निजामपुर का पहला 10वीं पास विद्यार्थी, जिला प्रशासन उठा रहा आगे की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी।
The son of a Dalit family used to work as a labourer in the fields, today Ramkeval has become the hope of the whole village!
शादियों में लाइट ढोने वाला लड़का बना गांव का सितारा, 10वीं पास कर बदली किस्मत!
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उत्तर प्रदेश: बाराबंकी जिले के एक छोटे से दलित बाहुल्य गांव निजामपुर से एक प्रेरणादायक खबर सामने आई है। 15 वर्षीय रामकेवल ने गांव की दशकों पुरानी बेड़ियां तोड़ दीं और 10वीं की बोर्ड परीक्षा पास करने वाले अपने गांव के पहले छात्र बन गए।

25 अप्रैल को यूपी बोर्ड के परिणाम घोषित हुए, लेकिन रामकेवल की उपलब्धि की खबर रविवार को सुर्खियों में आई, जब उनके संघर्ष और हौसले की कहानी सामने आई।

रामकेवल दिन में पढ़ाई करते हैं और रात को शादियों में बैटरी वाली लाइट सिर पर उठाकर ले जाते हैं, जिससे उन्हें प्रति रात 250 रुपए से 300 रुपए की कमाई होती है। साल भर में उन्हें 20 से 40 दिनों का ऐसा काम मिलता है, जिससे वह अपने घर का खर्च चलाते हैं और खुद की पढ़ाई का सामान खरीदते हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर, रामकेवल ने अपने गांव में संवाददाताओं को बताया, “मैंने अपनी किताबें और स्टेशनरी खुद खरीदी। अगर शादियों में काम नहीं मिला तो खेतों में मजदूरी करता हूं। ज़्यादातर पढ़ाई रात को करता हूं।”

उनकी मां पुष्पा गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में रसोइया हैं, जबकि पिता जगदीश प्रसाद खेतों में मजदूरी करते हैं। पिता कभी स्कूल नहीं गए और मां ने केवल पांचवीं तक पढ़ाई की थी।

निजामपुर का स्कूल सिर्फ पांचवीं तक ही है। इसके बाद बच्चों को 5 किलोमीटर दूर अहमदपुर के सरकारी हाईस्कूल में दाखिला लेना होता है। लेकिन ज़्यादातर बच्चे या तो बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं या 10वीं में फेल हो जाते हैं।

रामकेवल ने बताया, “मैं अपने गांव से दो और लड़कों के साथ अहमदपुर स्कूल में दाखिला लिया था। लवलेश आठवीं में ही स्कूल छोड़ गया और मुकेश, जो इस साल फेल हो गया है, अगले साल फिर से कोशिश करेगा।”

रामकेवल अब 11वीं कक्षा में दाखिला ले चुके हैं और इंजीनियर बनने का सपना देखते हैं।

उनकी मां पुष्पा कहती हैं, “हमारे चार बच्चे हैं – दो बेटे और दो बेटियां। रामकेवल सबसे बड़ा है। उसने कभी हमसे पैसे नहीं मांगे। वो अपनी मेहनत से पढ़ाई करता है। अगर कहीं काम नहीं मिला तो खेत में चला जाता है और पढ़ाई रात में करता है।”

रविवार को जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी ने रामकेवल और उनके माता-पिता को अपने कार्यालय बुलाया और घोषणा की कि अब उनके आगे की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी जिला प्रशासन उठाएगा।

जिला विद्यालय निरीक्षक ओ.पी. त्रिपाठी ने बताया, “अभी के लिए उनकी 12वीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था कर दी गई है, लेकिन हम सुनिश्चित करेंगे कि वो जितना पढ़ना चाहें, पढ़ सकें।”

गांव के लोगों ने बताया कि जब रामकेवल के शिक्षकों को पता चला कि डीएम उनसे मिलने वाले हैं, तो उन्होंने अपने छात्र के लिए नए कपड़े और जूते खरीद कर दिए। अब तक वह नंगे पांव स्कूल जाता था।

रामकेवल की सफलता ने गांव में नई ऊर्जा भर दी है। लवलेश के पिता नंकू ने कहा, “मैं आठवीं तक पढ़ा हूं और खेतों में मजदूरी करता हूं। लेकिन अब मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा पढ़ाई दोबारा शुरू करे। शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है।”

गांव की कई महिलाओं ने भी खुशी ज़ाहिर की और कहा कि अब वे पहले से ज़्यादा दृढ़ हैं कि वे अपने बच्चों को पढ़ाएंगी।

जिस गांव में अब तक सपने जन्म लेने से पहले ही दम तोड़ देते थे, वहां अब एक बच्चे ने न सिर्फ लाइटें उठाईं, बल्कि पूरे गांव की उम्मीदों को रौशन कर दिया है।

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