“तेरी हिम्मत कैसे हुई ब्राह्मणों की बारात में आने की..?”, ‘ज्योति कलश’ में दर्ज वह घटना जिसने ज्योतिबा फुले को बना दिया क्रांतिकारी

महात्मा फुले के बाल्यकाल की जातिवादी अपमान की घटना जिसने उनके भीतर सामाजिक क्रांति की चिंगारी जलाई, संजीव की किताब 'ज्योति कलश' में विस्तार से वर्णित।
Jyoti Kalash
ज्योति कलश किताबफोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक
Published on

भारतीय इतिहास में हाशिए के समाज के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले असाधारण व्यक्तित्व के महान नायक महात्मा ज्योतिबा फुले के बचपन में एक ऐसी घटना घटी जिसके बाद से उनके अन्तःकरण में जातिवाद, ब्राह्मणवाद, अन्धविश्वास, आडम्बरों के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन शुरू करने की प्रेरणा जगी. 

 “हंस” जैसी चर्चित पत्रिकाओं के संपादन, स्तम्भ लेखन और कई उपन्यासों के रचयिता संजीव द्वारा लिखी गई किताब ज्योति कलश अपने आप में महात्मा ज्योतिबा फुले के जीवन से जुड़ी सच्ची घटनाओं का एक क्रमवार दस्तावेज है. राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में, “साहित्य अकादेमी पुरस्कार” से सम्मानित संजीव, फुले के जीवन से जुड़ी उस घटना का जिक्र किताब की शुरुआत में ही करते हैं जिसके बाद से ज्योतिबा फुले दलित-पिछड़े समाज हित के लिए कठोरता से प्रतिबद्ध हो जाते हैं. 

Jyoti Kalash
ज्योति कलश

ज्योति कलश किताब में संजीव बताते हैं कि, ज्योतिबा को उनके सहपाठी परांजपे के ब्याह का निमंत्रण पत्र मिलता है. उस पर लिखा होता है कि, “तुम नहीं आए तो कुट्टी?’ [अगर तुम नहीं आए तो दोस्ती ख़त्म हो जाएगी.]

सहपाठी के ब्याह का निमंत्रण पत्र देख फुले ख़ुशी से बारात जाने के लिए सजने-सवरने लगते हैं. उन्हें तैयार होता देख उनके पिता गोविन्दराव पूछते हैं, “कहीं जा रहे हो?”

फुले कहते हैं, “बताया था न! परांजपे के विवाह की बारात में जाने का न्योता मिला है.”

बारात जाने के लिए बेटे का उत्साह देख गोविन्दराव को ब्राह्मणों की बारात के कुछेक अपमानित करने वाले प्रसंग याद आ जाते हैं. जो कांटे की तरह अन्दर ही अन्दर चुभ रहे थे. लेकिन बेटे ज्योतिबा के उत्साह पर पानी डालना उन्होंने उचित नहीं समझा. 

ढोल-ताशे, पिपिहरी के गहगहाते बोल के साथ बारात चल चुकी थी. लड़के नाचने-गाने में मशगूल थे. परांजपे दूल्हा बना मुकुट पहने तलवार साढ़े रथ पर बैठा है, बगल में उसका छोटा भाई भी है. 

ज्योतिबा का मन किया कि परांजपे से मिला जाए. तभी पता चला कि गोला, आतिशबाजी दागने वाले पाटिल का पता नहीं है, लोगों में फुसफुसाहट चल रही हैं कि अब गोला कौन दागे? गोलों का दगना भी उस समय जरुरी था. नाचते-गाते लड़कों से पूछा गया कि, “गोला दाग लोगे?” कईयों ने कहा, “डर लगता है.”

तभी फुले आगे बढ़कर कहते हैं, “मुझे डर नहीं लगता.” वह गोला लेकर आगे बढ़ते हैं फिर लौटकर मशाल से बारात के आगे गोले दागना शुरू का देते हैं.”

उसी दौरान एक त्रिपुंडधारी, तिलकित पग्गड़धारी, जो सबको माला पहना रहा था ज्योतिबा के सामने खड़ा हो गया. बोला, “तू…?”

फुले ठहर गए. उसने पूछा “गोविन्दराव गोन्हे का मुलगा [बेटा] न?”

फुले ने जवाब दिया, “जी!”

तुरंत जैसे वह फुले पर बरस पड़ता है. बोला, “तेरी हिम्मत कैसे हुई ब्राह्मणों की बारात में आने की?”

फुले, “निमंत्रण दिया था!”

त्रिपुंडधारी, “हुंह निमंत्रण! उसने (परांजपे) जो किया सो किया, लेकिन तू कैसे भूल गया कि तू शूद्र है और यह ब्राह्मणों की बारात है. तेरी मति मारी गई थी. तू ब्राह्मणों के बराबर कब से हो गया?”

तभी को दयालु ब्राह्मण टोकता है, “अब जाने भी दीजिए, मुलगा है, मित्र समझकर मुलगे ने अपने दोस्त को बुला लिया, सो आ गया बेचारा! दोनों ही बच्चे ठहरे. गोला भी तो इसी ने….”.

“बालक समझकर माफ़ कर दीजिये. कोई रास्ता निकालिए.”

पग्गड़धारी, “ठीक है, तो सबसे पीछे चला जाए वहां..! जहां रामोशी [सामाजिक रूप से एक निम्न जाति] और सामान ढोने वाले पीछे-पीछे आ रहे हैं. 

ज्योतिबा उनके बगल में जाकर खड़ा हो गया. एकदम अपमानित महसूस करते हुए!

बारात से अलग खड़ा एक रामोशी पास आता है. बोला, “तुम्हें बारात से निकाल दिया ब्राह्मणों ने न? तुम आए ही थे क्या सोचकर? भूल गए वे पुराने दिन जब बाभन लोग शूद्रों और अछूतों से कैसा व्यवहार करते थे? जाओ, घर जाओ बच्चे! यह माला तुम्हारे लिए नहीं, बाजे तुम्हारे लिए नहीं, मशाले धूप-धूनी, जलसा तुम्हारे लिए नहीं. तुम शूद्र हो! शूद्र! जलसे से बांह पकड़कर बाहर निकाले गए.”

ज्योतिबा घर लौटे. गोविन्दराव ने बेटे का लटका चेहरा देखा, “क्या हुआ? गए नहीं?” 

बेटे ने सारी आपबीती सुनाई. अपमान की दास्तान सुनते रहे पिता और देखते रहे बेटे के स्याह हो आए चेहरे को. उन्हें अपना अपमानित अतीत याद आया, बोले, “तुम्हें मना करना चाहा था! मगर तुम्हारा मन टूट जाएगा — यह सोचकर चुप रह गया.” थोड़ा रूककर फिर बोले, “उन्होंने तुम्हें मारा-पीटा नहीं, दंड नहीं दिया — यह क्या कम है बेटा! गलती तुम्हारी थी, गए क्यों?”

“लेकिन”, ज्योतिबा की आंख भर आई. गोविन्दराव ने सँभालते हुए तुरंत कहा, “ना बेटे, ना! हम उनकी बराबरी कैसे कर सकते हैं? कहां वो ब्राह्मण, कहां हम शूद्र!”

ज्योतिबा का घायल मन बार-बार छटपटा रहा था. तभी पेड़ के पीछे छुपा रामोशी टोकता है, “तुम आए ही क्यों थे ब्राह्मणों की बारात में? मैं तो नहीं जाता.”

“यह पूर्व जन्म का फल है कि वे ब्राह्मण होकर जन्मे, तुम शूद्र होकर, और मैं रामोशी बनकर. क्या कर लोगे?” उसने कहा.

उस दिन की भारी रात बड़ी मुश्किल से बीती. फुले के जीवन में व्यक्तिगत रूप से यह शायद पहली घटना थी जिसने उन्हें अंतःकरण को झकझोर दिया. 

संजीव अपनी इस किताब ज्योति कलश में उक्त ऐसे ढेरों प्रसंगों के बारे में उन अनकही बातों का भी जिक्र करते हैं जिसे महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपनी जिंदगी में देखा, सुना, सहा और डटकर उनका सामना किया.

Jyoti Kalash
अंतरराष्ट्रीय बेस्ट सेलर बुक सेपियन्स में ‘भारतीय जाति व्यवस्था’ के बारे में क्या लिखा है?
Jyoti Kalash
दलित हिस्ट्री मंथ: पेरियार ने 15 अगस्त को क्यों कहा था ‘ब्रिटिश-बनिया-ब्राह्मण संविदा दिवस?
Jyoti Kalash
दर्शकों के दिलों को झकझोर रही 'फुले'— सावित्री-ज्योतिबा की 177 साल पुरानी मार्मिक और प्रेरणादायक कहानी जरूर देखें बड़े पर्दे पर!

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com