'राम के नाम' फिल्म पर अशोका यूनिवर्सिटी में क्यों छिड़ा विवाद?

डेमोक्रेसी कलेक्टिव ने यह दावा किया कि जहाँ एक ओर यूनिवर्सिटी के प्रशासन ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने को कहा। वहीं दूसरी ओर कॉलेज में प्राण प्रतिष्ठान के दिन आरती और भजन का आयोजन हुआ।
'राम के नाम' फिल्म पर अशोका यूनिवर्सिटी में क्यों छिड़ा विवाद?

लखनऊ। अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों ने विश्वविद्यालय के भेदभावपूर्ण रवैये और दक्षिणपंथी समूहों के आगे समर्पण के खिलाफ बुधवार को मोर्चा खोल दिया। यह मुद्दा तब उठा जब डेमोक्रेसी कलेक्टिव नाम के एक छात्र समूह ने 22 जनवरी को आनंद पटवर्धन की ‘राम के नाम’ नामक डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखा। यह फिल्म राम जन्मभूमि आंदोलन पर केंद्रित है, 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ था। फिल्म के प्रदर्शन से पहले इस छात्र संगठन के एक व्यक्ति को यूनिवर्सिटी के प्रशाशन द्वारा बुलाया गया था और उसे पोस्टर हटाने के लिए कहा गया था।

डेमोक्रेसी कलेक्टिव ने यह दावा किया कि जहाँ एक ओर यूनिवर्सिटी के प्रशासन ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने को कहा। वहीं दूसरी ओर कॉलेज में प्राण प्रतिष्ठान के दिन आरती और भजन का आयोजन हुआ। छात्रों ने कहा यह विश्वविद्यालय के रेजिडेंस लाइफ पॉलिसी का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत त्योहार के आयोजन में कोई धार्मिक तत्त्व नहीं होना चाहिए बल्कि उसे केवल त्योहार के परम्परागत आयाम और भावना से मनाना चाहिए।

अशोका यूनिवर्सिटी में भारतीय दर्शनशास्त्र विभाग के एलेक्स वॉटसन ने कहा “राम के नाम इस समय देखना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इस फिल्म से यह समझने में मदद मिलेगी की आज के परिपेक्ष में जहाँ हम हैं वहां हम पहुंचे कैसे?"

उनके सहयोगी अमित चौधरी ने कहा, “यह कल्पना करना मुश्किल है कि किसी डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग किसी विश्वविद्यालय की नीति का उल्लंघन कर सकती है। इसे देखने के कई कारण हैं। यह गैर-काल्पनिक, वृत्तचित्र और राजनीतिक फिल्म निर्माण का एक बेहतरीन उदाहरण है जो आज के  राजनीतिक संदर्भ से बाहर भी बहुत उपयोगी है।   

उन्होंने कहा कि अकादमिक स्वतंत्रता समिति के आकार लेने से पहले, विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को किसी भी बात, किसी चर्चा, कार्यक्रम या स्क्रीनिंग को रोकने से पहले संकाय पुस्तिका में अकादमिक स्वतंत्रता पर अनुभागों को ज़रूर पढ़ लेना चाहिए।  

विश्वविद्यालय प्रशाशन के भेदभाव पूर्ण रवैये के विरोध में सोशल जस्टिस फोरम नाम के एक संगठन ने बुधवार को विरोध प्रदर्शन बुलाया मगर उससे पहले "राम के नाम" फिल्म के निर्देशक आनंद पटवर्धन से एक ऑनलाइन वार्ता का आयोजन किया। पटवर्धन ने रोष जताया कि जहां एक समय "राम के नाम" अशोका यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम का हिस्सा होती थी वहीं आज इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगायी जा रही है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा धर्म का नहीं बल्कि धन और राजनितिक ताकत अर्जित करने के लिए उठाया गया ह। वह एक घोषित राष्ट्रीय स्मारक था जिसे गिराया गया। मेरे लिए ये एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है कि फिल्म आज भी प्रासंगिक है। मुग़ल काल में राम मंदिर बहुत कम थे क्योंकि रामायण संस्कृत में थी और इसकी पहुँच कुछ ही लोगों तक थी।  

ऑनलाइन वार्ता के बाद सोशल जस्टिस फोरम के सदस्य एडमिन बिल्डिंग के बाहर प्रदर्शन करने लगे। फोरम के एक सदस्य ने कहा "अशोका यूनिवर्सिटी बनियों के द्वारा दी गयी ज़मीन में बनी एक यूनिवर्सिटी है, जहाँ बंगाली ब्राह्मण अध्यापक पढ़ाते हैं। फोरम के सदस्यों ने यूनिवर्सिटी में एक जाति सर्वेक्षण की भी मांग रखी जिससे यूनिवर्सिटी की विविधिता के बारे में पता चल सके।“ द मूकनायक ने यूनिवर्सिटी प्रशासन का पक्ष जानने के लिए बात करने की कोशिश की लेकिन बात संभव नही हो पायी।

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