द मूकनायक के ख़बर का असर, प्रभादेवी के टेंटनुमा घर पर उतर आया जिला प्रशासन, क्या बदल जाएगी प्रभादेवी जैसों की ज़िंदगी?

प्रभादेवी के साथ जिला प्रशासन
प्रभादेवी के साथ जिला प्रशासन

फ़ोन की घंटी बजती है, उधर से आवाज़ आती है मैडम जी आप कहां हैं?

नंबर सेव नहीं था लेकिन जानती थी किसका कॉल है क्योंकि नंबर जाना पहचाना था.

हाँ शिव बताओ क्या हुआ..?

मैडम BDO साहब के ऑफिस से बहुत सारे लोग आये हैं. आप भी आ रही हैं क्या? बहुत सारे लोग हैं मैडम आप आ जाओ…

हाँ, उन्हें बोलिए बस मैं कुछ ही देर में पहुँचती हूं, थोड़ा सा इंतजार करने के लिए बोलो… और हो सके तो वो जो भी बोलें उनका एक वीडियो बना लो।

हाँ मैडम, मैं कोशिश करता हूं…

एक बार फिर बहादुरपुर गाँव के सरभंग टोले में जाना हुआ. प्रभादेवी के घर पर शांति पसरी हुई थी. वहाँ कोई नहीं था. फिर एक व्यक्ति ने बताया सभी लोग स्कूल में हैं.

कुछ ही दूरी पर प्राइमरी सरकारी स्कूल में पहुँचे, जहां लंच ब्रेक हो रखा था और सभी बच्चे मध्याह्न भोजन कर रहे थे. बच्चों को खाने में चावल और आलू-गोभी की सूखी सब्ज़ी परोसी गई थी. बच्चे दो लाइन में बैठकर खाना खा रहा थे, वहीं एक कमरे के द्वार के पास एक मटमैली सी हरी साड़ी में अपने तीन बच्चों को लेकर एक दूसरी महिला बैठी थी. स्कूल के उस कमरे में कई लोग दिखे, वो सभी लोग प्रभादेवी के लिए पहुँचे थे. इन सभी को प्रभादेवी के बारे में द मूकनायक से पता चला कि वे बिहार के बहादुरपुर गाँव की एक ऐसी महिला हैं जिनके नौ बच्चे हैं और इनके पास न घर है, न ज़मीन और न ही कोई सरकारी दस्तावेज जिससे ये साबित हो सके कि वे भारतीय हैं. इस कारण उन्हें अपने जीवन यापन के लिए, अपने बच्चों के साथ भीख मांगनी पड़ती है.

आपको बता दें कि द मूकनायक ने 4 मार्च को प्रभादेवी पर एक स्टोरी की थी, बिहार: सरभंग जाति से आने वाली प्रभा देवी के पास नहीं है कोई दस्तावेज, पूरा परिवार भीख माँगने पर मजबूर! इस ख़बर के बाद बिहार के पूर्वी चंपारण (मोतीहारी) की प्रशासन हरकत में आया. एक दिन बाद ही प्रभादेवी के द्वार पर पूर्वी चंपारण प्रशासन का ताँता लग गया.

सरकारी स्कूल का एक कमरा जहां प्रभादेवी की मौजूदगी में कुछ अधिकारी और गाँव के प्रतिनिधि इकट्ठा हुए.
सरकारी स्कूल का एक कमरा जहां प्रभादेवी की मौजूदगी में कुछ अधिकारी और गाँव के प्रतिनिधि इकट्ठा हुए.

खैर, उस सरकारी स्कूल के कमरे में सब दिखे लेकिन ख़ुद प्रभादेवी नहीं थी. मेरे पहुँचते ही कमरे में बैठे सभी अधिकारी से लेकर गाँव के निवासी तक पहचान गए थे. कुछ ही देर में वही मटमैली साड़ी पहने अपने अर्धनग्न बच्चों के साथ प्रभादेवी कमरे में आईं. वहाँ रखी कुर्सियाँ ख़ाली थी लेकिन फिर भी प्रभादेवी के भीतर एक भय सा दिखा और वो नीचे अपनी तीन महीने की बेटी को लेकर बैठने ही जा रही थी कि उन्हें रोका गया और कुर्सी पर बैठने के लिए कहा गया.

उस चार दीवारी कमरे में BDO (ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर) की तरफ़ से आये अधिकारी, राशन वितरण की तरफ़ से आए अधिकारी, गाँव के मुखिया, वार्ड सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता, स्कूल के अध्यापक व गाँव के लोग भी मौजूद थे.

यहाँ कई तरह की बात हो रही थी. प्रभादेवी के इन हालातों पर कई सवाल किये जा रहे थे कि आख़िर ज़िम्मेदार कौन? लेकिन सभी बचना भी चाह रहे थे. BDO की तरफ़ से आये प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी पारस कुमार लगातार पेपर में कुछ लिखते जा रहे थे. प्रभादेवी की मदद अब कैसे की जाये उस पर खूब चर्चा हो रही थी. अगर परिवार में कोई नहीं है, पेपर किसी का नहीं है तो प्रभादेवी के पेपर कैसे बनाये जा सकते हैं इसका तरीक़ा निकाला जा रहा था. प्रभादेवी के इस केस को स्पेशल केस कहा गया और जल्द से जल्द काम करने का आश्वासन दिया गया. प्रभादेवी को नौकरी के रूप में मनरेगा में काम दिलाने की बात हुई तो वहीं बैठे लोगों के बीच में से एक सुझाव आया कि प्रभादेवी को स्कूल में भोजनमाता की नौकरी दी जाए. इससे इनके बच्चे स्कूल में भी रहेंगे, उन्हें खाना भी मिलेगा और प्रभादेवी को नौकरी भी. इस पर कई तरह की चर्चा हुई और कहा गया कि अगर प्रभादेवी को ये नौकरी दी गई तो दुनिया भर में एक नज़ीर पेश होगा. अब इन सबके बीच स्कूलकर्मी से भी सहमति ली गई और वो भी राज़ी हो गए.

सोनारी देवी, जिनका मामला बिल्कुल प्रभादेवी जैसा ही था, अधिकारियों के आगे अपनी बात रखते हुए.
सोनारी देवी, जिनका मामला बिल्कुल प्रभादेवी जैसा ही था, अधिकारियों के आगे अपनी बात रखते हुए.

इसी बीच बिल्कुल प्रभादेवी जैसा ही एक और मामला सामने आया. इस मामले में भी महिला के तीन बच्चे थे, वे भी सरभंग जाति से आती हैं और उनके पास भी न कोई ज़मीन का टुकड़ा या घर था और न ही कोई सरकारी दस्तावेज जिससे ये पता चले कि वो भी भारत की नागरिक हैं. प्रभादेवी के साथ उनकी भी सुनी गई. ये वही महिला थी दो स्कूल के कमरे के बाहर अपने तीन बच्चों के साथ बैठी थी.

अब सभी लोग प्रभादेवी के टेंटनुमा घर की ओर बढ़े. उन्होंने वहाँ उसका घर देखा, जहां प्रभादेवी का सामान बिखरा हुआ था, टेंट भी तितर-बितर हो रखा था. सभी अधिकारी देखकर हैरान थे कि वे अपने नौ बच्चों के साथ कैसे यहाँ रह रही थी.

माइक पर बात करते हुए प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी (घोड़ासहन) पारस कुमार. सामाजिक कार्यकर्ता राजू बैठा, पारस कुमार, राशन वितरण से चेतना पाण्डेय,मुखिया सरबलाल साह (बाएँ से दाएँ की ओर)
माइक पर बात करते हुए प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी (घोड़ासहन) पारस कुमार. सामाजिक कार्यकर्ता राजू बैठा, पारस कुमार, राशन वितरण से चेतना पाण्डेय,मुखिया सरबलाल साह (बाएँ से दाएँ की ओर)

प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी (घोड़ासहन) पारस कुमार ने बताया कि इस मामले के बारे में BDO सर ने हमें सुबह इस मामले को बताया और बोले कि इसकी पड़ताल करो कि क्या वाक़ई में उनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड है या नहीं और अब इन्हें बनवाने की प्रक्रिया हम शुरू करेंगे.

इस मामले का देर से पता चलने पर वे कहते हैं, "ये मामला हमारे संज्ञान में नहीं आया. इस मामले के बारे में न कभी मीडिया में आया न कभी ब्लॉक और न ही यहाँ के लोकल अधिकारियों ने बताया. लेकिन अब जब ये मामला संज्ञान में आया है तो इस परिवार को हम मुख्यधारा में लाने का काम करेंगे."

साथ ही में सामाजिक कार्यकर्ता और एक दूसरे गाँव के मुखिया राजू बैठा भी वहाँ मौजूद रहे, जो बताते हैं कि सरकार ने कई तरह के सर्वे करवाए जैसे इंद्रा आवास के लिए, जनगणना के लिए, शौचालय आदि के लिए लेकिन फिर भी छह साल यहाँ रहने के बावजूद भी प्रभादेवी इनके सर्वे में शामिल नहीं हो पाई और न ही मुख्यधारा में जुड़ पाईं.

राजू बैठा कहते हैं, ये मामला हमें द मूकनायक की ख़बर से पता चला. सरकार ने महादलित मिशन के लिए विकास मित्र की भी नियुक्ति की है, वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए बीएलओ की नियुक्ति की है. इसी तरह कई लोग है जो सरकार के सिस्टम से जुड़े हुए हैं लेकिन इसके वाबजूद भी प्रभादेवी मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाई इसके लिए हम सभी लोग ज़िम्मेदार हैं. इनमें वार्ड सदस्य से लेकर जिला प्रशासन तक सभी लोग शामिल हैं.

सरभंग टोले की महिलाओं से बात करती हुई मीना कोटवाल
सरभंग टोले की महिलाओं से बात करती हुई मीना कोटवाल

इसके साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता राजू बैठा ने इस मामले को सामने लाने में द मूकनायक को कई बार धन्यवाद भी दिया. वे कहते हैं कि हमें जो मामला यहाँ रहते हुए नहीं पता चला वो द मूकनायक के कारण संज्ञान में आया और अब इनकी यथासंभव मदद की जायेगी.

बहादुरपुर गाँव के मुखिया सरबलाल साह ने बताया कि ये मामला BDO के पास नहीं पहुँचा था. हमें भी इस मामले के बारे में कुछ दिन पहले द मूकनायक के कारण ही पता चला. इनका पहले आवासीय प्रमाणपत्र बनाना है लेकिन इनके पास इनकी ज़मीन नहीं है. इस पर BDO से बात हुई है अब इनके लिए ज़मीन की व्यवस्था करने पर बात हुई है, जिसके बाद इनके सारे काग़ज़ बनाये जायेंगे और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने की बात हुई है.

हालाँकि इससे पहले द मूकनायक से बात करते हुए सरबलाल साह ने बताया था कि प्रभादेवी उनके पास 15 दिन पहले ही आई थी. उन्होंने उसे आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कहा, और कहा कि इसके बाद ही सारे दस्तावेज बनेंगे.

प्रभादेवी के पास न घर है न ज़मीन. वे अपने नौ बच्चों के साथ घर-घर भीख माँगती है. उनके पास किसी भी तरह का सरकारी दस्तावेज नहीं जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड आदि, जिसके वजह से उन्हें न केवल सरकारी योजनाओं से दूर रखा गया बल्कि बच्चों को स्कूल में दाख़िला भी नहीं दिया गया. वे भीख में जितना भी माँग पाती थी उसी से उनके घर का चूल्हा जलता था.

राशन कार्ड न होने की वजह से उन्हें सरकारी योजना के तहत हर महीने मिलने वाला राशन भी नहीं दिया जाता था. राशन आबंटन विभाग से चेतन पाण्डेय भी वहाँ मौजूद रहीं. वे बताती हैं कि हमारी नियुक्ति अभी नई ही हुई है जिसकी वजह से प्रभादेवी के बारे में पता नहीं चल पाया.

जब उनसे पूछा गया कि क्या ये एक-दूसरे पर टालने जैसी बात नहीं हो गई तब वे कहती हैं, "हम पंचायत में घूमे, गाँव में घूमें लेकिन प्रभादेवी के बारे में पता नहीं चला. लेकिन हमें द मूकनायक के माध्यम से ही प्रभादेवी के बारे में पता चला."

वे कहती हैं, "प्रभादेवी का राशन कार्ड क्यों नहीं बना इसके लिए हमने पता किया तो पता चला कि इनके पास कोई काग़ज़ नहीं है जिसकी वजह से ये वो क्राइटेरिया (मानक) पूरा नहीं कर पा रही थी. लेकिन आज से ही प्रक्रिया शुरू हो गई है और जल्द ही इनका राशन कार्ड बन जायेगा. साथ ही पास ही के PDS पर बोल दिया गया है कि एक परिवार के भरण-पोषण लायक़ जितना अनाज चाहिए वो इनके घर तक पहुँचाया जायेगा. कोशिश है कि अगले महीने तक इनका ख़ुद का राशन कार्ड भी मिल जाये.

प्रभादेवी अपने बच्चों के साथ
प्रभादेवी अपने बच्चों के साथ

स्कूल के कमरे में चर्चा के दौरान पारस कुमार एक पेपर में काफ़ी कुछ लिख रहे थे. उन्होंने बताया कि वास्तविक स्थिति जानने के लिए ही बीडीओ सर ने भेजा है. इनके डोक्यूमेंट्स बनवाने के बाद इनके रोज़गार की भी व्यवस्था की जायेगी. किस तरह के रोज़गार देने की बात पर पारस कहते हैं कि मनरेगा में इनके रोज़गार की व्यवस्था की जायेगी.

हालाँकि स्कूल के कमरे में उनके लिए मिड-डे मिल बनाने वाली भोजनमाता के रूप में भी रोज़गार देने की बात की गई थी. इस सवाल पर पारस कहते हैं कि मिड डे मिल बीओ के अंतर्गत आता है और ये भी एक विकल्प हो सकता है जिसके लिए बीओ साहब ने हाँ भी कहा है.

इसी बीच प्रभादेवी भी अपने टेंटनुमा घर के द्वार पर खड़ी हैं वे कहती हैं कि अगर मेरे बच्चे स्कूल गए और मेरे सभी काग़ज़ बन गए तो मैं सरकार की बहुत शुक्रगुज़ार हूं.

वे कहती हैं, "इस घर में बारिश के समय रात-रातभर हम जागकर, रोकर गुज़ार देते हैं, भीख माँगकर रोज़ाना एक-दो किलो चावल मिलता है तो उससे जैसे-तैसे गुज़ारा करते हैं. जिस दिन नहीं जाते उस दिन भूखे ही रह जाते हैं, अगर आसपास किसी को दया आती है तो वो मुट्ठीभर अनाज दे देते हैं नहीं तो मैं और मेरे बच्चे भूखे ही रह जाते हैं. अगर मेरे बच्चे पढ़ लेंगे तो बेटा बाहर चला जायेगा, बेटी पढ़कर डॉक्टर बनेगी या कहीं नौकरी लगेगी. अगर रोज़गार और बच्चों को शिक्षा मिलेगी तो भीख माँगना भी बंद कर देंगे."

आधार कार्ड जैसे किसी भी तरह के दस्तावेज न होने के कारण प्रभादेवी को कोविड-19 जैसी महामारी में भी भीख माँगकर गुज़ारा करना पड़ा. जहां सरकार का दावा है कि लाखों-करोड़ो वैक्सीन लगाई जा चुकी है वहीं प्रभादेवी का एक आधार कार्ड न होने के कारण वैक्सीन से भी दूर रखा गया. उनके बच्चों को जन्म से लेकर अभी तक कोई टीका नहीं लगा. इसे ध्यान में रखते हुए इस पर त्वरित संज्ञान लिया गया और प्रभादेवी के घर के पास वार्ड सदस्य के घर पर ही आपातकाल एक कैंप लगाया गया, जिसमें जिन लोगों को कोरोना का वैक्सीन नहीं लगाया था उन्हें वैक्सीन दी गई. इनमें प्रभादेवी के साथ-साथ आसपास के और भी लोगों को न केवल कोविड वैक्सीन लगाई गई बल्कि बुख़ार, विटामिन और ओआरएस के पाउच भी बाँटे गए. जिन्हें एक भी टीका नहीं लगा वो भी लगाया गया और जिन्हें दूसरा लगना था वो भी लगाया गया. स्वास्थ्य टीम ने को-वैक्सीन और कोविड शिल्ड दोनों ही प्रकार की वैक्सीन के इंतेजाम किए. साथ ही वहाँ बच्चों को चमकी बुख़ार जैसी बीमारी के बारे में जानकारी दी गई.

प्रभादेवी का आधार कार्ड न होने के कारण कोविड वैक्सीन नहीं लगी थी, जिस पर तत्काल प्रभाव के साथ स्वास्थ्य टीम को बुलाया गया और प्रभादेवी के साथ-साथ टोले के अन्य लोगों को भी वैक्सीन लगाई गई.
प्रभादेवी का आधार कार्ड न होने के कारण कोविड वैक्सीन नहीं लगी थी, जिस पर तत्काल प्रभाव के साथ स्वास्थ्य टीम को बुलाया गया और प्रभादेवी के साथ-साथ टोले के अन्य लोगों को भी वैक्सीन लगाई गई.

वार्ड सदस्य के घर के पास भीड़ सी लग गई और मानो जैसे पूरा टोला ही वहाँ मौजूद हो गया. प्रभादेवी के साथ-साथ कई और महिलाएँ पास आई और बताया कि उनके पास भी नौकरी नहीं, उनके पास भी रोज़गार नहीं. कुछ ही देर में जिला प्रशासन पहुँचने ही वाला था, सभी से कहा गया एक बार उनके आगे अपनी बात ज़रूर रखें.

यहाँ कोविड वैक्सीनेशन का काम ख़त्म हुआ और दूसरी ओर जिला प्रशासन से भी अधिकारी पहुँच चुके थे. वे प्रभादेवी के आवास पर पहुँचे, उनसे बात कर पूरे मामले की पड़ताल की.

पूर्वी चंपारण के जिला प्रशासन की तरफ़ से लेबर सुपरिटेंडेंट ऑफ़िसर राकेश रंजन पहुँचे. राकेश रंजन ने बताया कि सुबह जिला अधिकारी ने हमें इस मामले के बारे में बताया और हम यहाँ फिल्ड विज़िट के लिए आए हैं.

वे कहते हैं, "हमें पता चला कि ये अपने बच्चों के साथ यहां-वहां से माँगकर गुज़ारा करती हैं. जिला प्रशासन ने सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग की टीम को यहाँ भेजा ताकि इन्हें और इनके बच्चों को मेडिकल सपोर्ट दिया जाए. इसके बाद हम इनका आधार कार्ड बनवाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि इन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए. साथ ही इनके छह साल से छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों से जोड़ा जायेगा. इन्हें पीडीएस से तत्काल राशन मिले इसे भी दिलवाया जा रहा है."

पूर्वी चंपारण के जिला प्रशासन की तरफ़ से लेबर सुपरिटेंडेंट ऑफ़िसर राकेश रंजन (दाएँ) के साथ सहायक निदेशक समाजिक सुरक्षा कोष से धीरज कुमार (बाएँ)
पूर्वी चंपारण के जिला प्रशासन की तरफ़ से लेबर सुपरिटेंडेंट ऑफ़िसर राकेश रंजन (दाएँ) के साथ सहायक निदेशक समाजिक सुरक्षा कोष से धीरज कुमार (बाएँ)

"आधार कार्ड के बाद इनका बैंक अकाउंट खुलवाया जायेगा, जॉब कार्ड बनवाया जायेगा, मनरेगा में काम दिलवाया जायेगा. मनरेगा में जब इन्हें काम मिल जायेगा तब हम लेबर डिपार्टमेंट से लेबर कार्ड भी बनवाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे ताकि फिर इन्हें किसी पर आश्रित न रहना पड़े और इनकी आजीविका ख़ुद की मेहनत से चलने लगे. भीख माँगना समाज में एक अभिशाप है. नौकरी से इनका भीख मांगना बंद हो, जिला प्रशासन के लिए भी ये एक चुनौती है कि यहाँ इस तरह के लोग भी है."

इसके साथ ही लेबर सुपरिटेंडेंट रंजन ने आश्वासन दिया कि दो दिन में या जल्द से जल्द इनके दस्तावेज बनवाने की प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी और इनको लाभान्वित करवाया जायेगा.

उनके ज़िले में इस तरह के मामले मिलने पर राकेश रंजन बताते हैं कि, इस तरह के मामले पड़ोसियों या यहाँ के जो जनप्रतिनिधि हैं उन्हें ही बतानी चाहिए. इतना बड़ा जिला है और इतने लोग हैं तो एक-एक व्यक्ति तक पहुँचना थोड़ा मुश्किल होता है. हमारे समाज में जब किसी लड़की की शादी होती है तो ये मान लिया जाता है कि उसका घर अब उसका ससुराल ही होगा. प्रभादेवी अपने मायके में रही, इन्होंने बताया कि इनके पति कभी-कभी आते थे और फिर वापस नेपाल चले जाते थे. ये इलाक़ा बॉर्डर का है और शादियाँ इधर से उधर होती है जिससे चीजें ख़राब हो जाती है. स्थानीय लोगों ने भी इस मामले को नहीं उठाया, वो पहले उठाते और अगर हम भी संवेदनशील होते तो ये नहीं होता. इसमें हम सब की ही कमी है. लेकिन जब ये मामला सामने आया है तो ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि अब हम इनके लिए कुछ कर पाए. इनके बच्चों को शिक्षा मिले, पोषण मिले, इन्हें आजीविका के लिए रोज़गार मिले और ये भी मुख्यधारा में शामिल हो ताकि ये भी गरिमा से जीवन यापन करें. आपके इस रिपोर्ट और द मूकनायक का धन्यवाद की यह मामला प्रशासन की सज्ञान में आया.

राकेश रंजन के साथ सहायक निदेशक समाजिक सुरक्षा कोष से धीरज कुमार भी आए, जिन्होंने बताया कि जिला पदाधिकारी के आदेश पर हम यहाँ आए हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि प्रभादेवी के मामले पर तत्काल काम शुरू हो गया है और जल्द से जल्द काम पूरा किया जायेगा.

प्रभादेवी के इस मामले के बाद ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं. रोज़गार को लेकर वहाँ की कई महिलाओं ने अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी जिस पर उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रशासन यह भी कोशिश कर रहा है कि हम यहाँ एक भविष्य में एक सर्वे करवाएं, जिससे जितने भी इस तरह के परिवार है, उनके बारे में पता चल सके.

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