तमिलनाडु: दलितों के संघर्ष ने रचा इतिहास, एक दशक बाद तोड़ी गई जातीय भेदभाव की दीवार!

तिरुपुर जिला प्रशासन ने गत सप्ताह अविनाशी तालुक में दलित बस्ती को शेष आबादी से अलग करती ‘अस्पृश्यता दीवार’ के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया.
तमिलनाडु: दलितों के संघर्ष ने रचा इतिहास, एक दशक बाद तोड़ी गई जातीय भेदभाव की दीवार!

तिरुपुर: तमिलनाडु के तिरुपुर जिला प्रशासन ने गत सप्ताह को अविनाशी तालुका के सेवर गांव में एक जातीय भेदभाव की प्रतीक ‘अस्पृश्यता दीवार’ के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया, जिसने लंबे समय से दो आवासीय क्षेत्रों को अलग कर दिया था और क्षेत्र के अनुसूचित जाति के निवासियों की पहुंच को रोक दिया था।

दीवार तोड़ने की यह कार्रवाई स्थानीय दलित परिवारों को गांव के अन्य हिस्सों तक आसान और त्वरित पहुंच प्रदान करने के लिए की गई। पहले, दलितों को दीवार के कारण दूसरी तरफ जाने के लिए 2 किमी से अधिक का चक्कर लगाना पड़ता था। इससे उनको परेशानी का सामना करना पड़ता था।

दीवार को गिराने के आह्वान को तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा (टीएनयूईएफ) जैसे सामाजिक संगठनों ने समर्थन दिया था। (टीएनयूईएफ) के तिरुपुर जिला सचिव सी.के. कनगराज ने फैसले की सराहना करते हुए द मूकनायक से कहा, "हमारा संगठन जाति-आधारित अलगाव के इस प्रतीक को हटाने के लिए 16 साल की लड़ाई में सबसे आगे रहा है।"

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार गत 4 फरवरी को दीवार तोड़ने से पहले स्थानीय प्रशासन ने सेवर पंचायत अध्यक्ष जी वेलुसामी से बात की थी, जिन्होंने कहा था कि, “2006 में लेआउट पास किया गया था और तत्कालीन पंचायत अधिकारियों द्वारा नियमों का पालन नहीं किया गया था। इस वजह से सड़क को अवरुद्ध करने वाली एक दीवार बनाई गई थी। लेआउट के अंदर की सड़क पंचायत की है और यह देवेन्द्रन नगर की ओर जाने वाला एक आम रास्ता है। एससी समुदाय के लोगों की शिकायत के बाद मैंने घटनास्थल का दौरा किया. यह दीवार वास्तव में अनुसूचित जाति के लोगों की पहुंच को बाधित करती है। पिछले महीने मैंने उन्हें दीवार गिराने का नोटिस जारी किया था। लेकिन वे इसे हटाने से इनकार कर रहे थे। इसके बाद राजस्व विभाग ने नोटिस जारी कर दीवार को तोड़ने की कार्रवाई की।

इधर, स्थानीय संगठन वीआईपी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अधिकारियों ने कार्रवाई पर असंतोष व्यक्त किया है। हालांकि प्रशासन ने गत सोमवार को दोनों आवासीय क्षेत्रों के बीच एक शांति बैठक निर्धारित की थी। संगठन सदस्यों ने दलील दी कि राजस्व अधिकारियों ने दीवार का एक हिस्सा गिराने में जल्दबाजी की।

एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने द मूकनायक को बताया कि दीवार उनके निवासियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी, और वे अब दीवार तोड़ने के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं।

इस घटनाक्रम ने अब संभावित कानूनी लड़ाई के लिए मंच तैयार कर दिया है, जो ‘अस्पृश्यता की दीवार’ के आस-पास गहरे बैठे सामाजिक विभाजन और अलग-अलग दृष्टिकोण को उजागर करता है।

तमिलनाडु के लिए जाति की दीवारें कोई नई बात नहीं हैं। द स्वैडल के अनुसार, अक्टूबर 2022 में, दलित निवासियों की निरंतर मांग के बाद तिरुवल्लूर में अधिकारियों द्वारा सात फुट ऊंची जाति की दीवार को ध्वस्त कर दिया गया था। कथित तौर पर दीवार ने दलित बस्तियों को स्थानीय हिंदू मठ से अलग कर दिया था। रिपोर्ट बताती है कि जाति की दीवारें राज्य में भेदभाव की एक आम प्रथा है और अस्पृश्यता को बनाए रखने के लिए ‘आधुनिक उपकरण’ के रूप में काम करती हैं।

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