जयपुर। राजस्थान में जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। हाल ही में जैसलमेर जिले स्थित रामदेवरा मंदिर में दलित समुदाय के एक युवक को तिलक लगाने से रोकने का मामला सामने आया है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के संगठनों में आक्रोश फैल गया है।
इस मामले पर संवैधानिक विचार मंच के संस्थापक और दलित एक्टिविस्ट गीगराज जोड़ली ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने द मूकनायक से कहा, "राजस्थान सामंती सोच का गढ़ रहा है। यहां दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के साथ रोजाना भेदभाव और छुआछूत की घटनाएं होती रहती हैं। रामदेवरा मंदिर में हुई यह घटना भी इसी मानसिकता का परिणाम है।"
गीगराज जोड़ली ने बताया कि राजस्थान में जातिगत भेदभाव की कई घटनाएं सामने आती रही हैं, जिनमें— दलित दूल्हों को घोड़ी चढ़ने से रोकना।, गांवों में दलितों के बाल न काटना, कालबेलिया समुदाय के लोगों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार घर के अंदर करने के लिए मजबूर होना। कुछ गांवों में दलितों को ऊंची जातियों के घरों के सामने से जूते-चप्पल हाथ में लेकर गुजरना। दलितों की जमीनों पर अवैध कब्जे।
उन्होंने कहा कि भारत में संविधान लागू होने के बाद दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग शिक्षित होकर अपने अधिकारों की मांग कर रहा है। लेकिन सामंती मानसिकता के लोग इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं।
गीगराज जोड़ली ने इस घटना को संविधान की मूल भावना पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा, "हमारी लड़ाई मंदिर जाने की नहीं, बल्कि संवैधानिक समता के मूल्यों को स्थापित करने की है। बाबा साहेब अंबेडकर ने भी 2 मार्च 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया था। उनका उद्देश्य केवल मंदिर में प्रवेश पाना नहीं, बल्कि हिंदू धर्म में समानता स्थापित करना था।"
उन्होंने आगे कहा, "रामदेवरा मंदिर पर एक सीमित परिवार का कब्जा है, जो सामंती मानसिकता से ग्रसित है। यह परिवार श्रद्धालुओं द्वारा किए गए दान और चढ़ावे से ऐशो-आराम की जिंदगी जीता है, जबकि शोषित और पीड़ित वर्ग को मंदिर में समान अधिकार तक नहीं दिए जाते।"
गीगराज जोड़ली ने मांग की कि रामदेवरा समाधि स्थल को सरकार अपने अधीन ले और दान में मिलने वाली राशि का उपयोग जनकल्याण के कार्यों में किया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि इस धनराशि का उपयोग अस्पताल, छात्रावास, कोचिंग संस्थान, अंग प्रत्यारोपण, बालिका शिक्षा और भेदभाव उन्मूलन कार्यक्रमों में किया जाना चाहिए।
रामदेवरा मंदिर में दलित युवक को तिलक न लगाने की घटना को लेकर गीगराज जोड़ली ने कहा कि सरकार को तत्काल मंदिर के पुजारी को गिरफ्तार करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "हर साल भाद्रपद दूज से दशमी तक लगभग एक करोड़ श्रद्धालु रामदेवरा आते हैं, जिनमें 85-90% अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग होते हैं। अगर इनकी भावनाएं आहत हुईं, तो यह श्रद्धा का सैलाब आंदोलन का रूप ले सकता है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए व्यवस्थाएं संभालना मुश्किल हो जाएगा।"
गीगराज जोड़ली ने याद दिलाया कि उन्होंने पहले भी रामदेवरा मंदिर में दलितों के अधिकारों को लेकर आवाज उठाई थी, जिसके कारण उन्हें जेल भेज दिया गया था। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि जेल जाने से उनका संघर्ष कमजोर नहीं हुआ, बल्कि और मजबूत हुआ है।
उन्होंने कहा, "अगर सरकार समय रहते हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो हम एक सुनियोजित रणनीति के तहत बड़ा आंदोलन करेंगे। मैंने पहले भी जेल जाने से डर नहीं रखा और आगे भी नहीं रखूंगा। हमारा संघर्ष जारी रहेगा और सरकार को घुटनों के बल आने पर मजबूर कर देंगे।"
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में साफ दिख रहा है कि जब भील और अनुसूचित जाति के युवक ने रामदेवरा समाधि स्थल पर तिलक लगाने की मांग की, तो वहां के पुजारी ने उसे तिलक लगाने से मना कर दिया। युवक ने बार-बार सवाल किया, "क्या हम हिंदू नहीं हैं? क्या हमारा अधिकार नहीं है? किस कानून के तहत हमें तिलक लगाने से रोका जा रहा है?"
इस पर पुजारी कोई जवाब नहीं दे सका और वहां से उठकर चला गया। पीड़ित युवकों ने इस घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया, जिसके बाद पूरे राजस्थान में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हो रही है।
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