हौसले की धार से अभावों को चीरकर जीता सोना

राजस्थान की दिव्यांग दलित बेटी ने तमिलनाडू में जीता वालीबॉल में स्वर्ण पदक
पूरी मेघवाल
पूरी मेघवाल

जयपुर। राजस्थान के जालोर जिले की दिव्यांग दलित बेटी ने हाल ही तमिलनाडु में हुई 11वीं सीनियर महिला पैरा वालीबॉल प्रतियोगिता में स्वर्णपदक जीता है। यहां की पूरी मेघवाल ने देश की उन तमाम बेटियों को भी हौसला कायम रखने का संदेश दिया है, जो सामाजिक व आर्थिक संकट के सामने हिम्मत हार जाती हैं। पूरी ने हौंसलों से अभावों को चीर कर 'सोना' जीता है।

आपको को बता दे, पूरी कुमारी जालोर के लेदरमेर गांव, तहसील भीनमाल में जन्मी। पूरी के पिता पेशे से किसान हैं। वे बकरियां चराते हैं। पूरी ने द मूकनायक को बताया कि बचपन से ही संघर्षों से उसका नाता जुड़ गया था। 7 बहनों के बीच एक भाई था। भाई की तबियत खराब हुई तो इलाज के लिए पिता उसे गुजरात के अहमदाबाद स्थित अस्पताल में उपचार के लिए ले गए। पिता 6 महीने तक भी भाई को लेकर वापस घर नहीं लौटे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।

पूरी आगे कहती हैं कि उसने अपनी एक बहन के साथ जंगल में बकरियां चराई। साथ ही सरकारी स्कूल में पढ़ती रही।

"लम्बे इलाज के बाद पिता भाई को लेकर घर पहुंचे। हमने 8 महीने बाद पहली बार पिता व भाई को देखा था। भाई की स्थिति अभी भी ठीक नहीं थी। गांव व परिवार के लोग भी बीमार भाई की तीमारदारी के लिए घर आए। इस दौरान लोग कहते थे कि 7 बहनों के बीच एक भाई है। अब परिवार का क्या होगा? कैसे परिवार चलेगा?" पूरी कहती है कि "भाई के इलाज के लिए मेरी 4 बहन मजदूरी करती थी। मैं एक बहन के साथ बकरी चराने जाती और साथ में पढाई भी करती थी। पिता पर कर्ज बढ़ गया था। हमारे लिए खुशी इस बात की थी कि अब हमारा भाई स्वस्थ्य होने लगा था। 3 बहनों की शादी भी हो गई।"

मैडम को देख कर पढ़ाई की जागी उमंग

पूरी कहती हैं कि अभावों के बीच उसने पढाई जारी रखी। सरकारी स्कूल में मैडम पढ़ाती थी। उन्हें देख कर मेरे मन मे पढाई कर नौकरी करने की उमंग जागी। पूरी कहती है उन्होंने मन की बात अपने पिता को बताई। पिता ने हौंसला बढ़ाते हुए कहा कि यदि वह पढ़ना चाहती है तो बेटी को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। बस फिर क्या था पिता के हिम्मत देते ही उसने पढ़ाई में जी जान लगा दी। गांव के स्कूल से 8वीं कक्षा पास करने के बाद 4 किलोमीटर दूर कोटकस्ता गांव के स्कूल से 10वीं तक पढ़ाई की। इसके बाद कक्षा 11वीं व 12वीं तक भीनमाल में पढ़ी।

12वीं कक्षा से फिर जीवन पर आया संकट

पूरी ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि 12वीं कक्षा में पढ़ते हुए उसके एक पैर में दर्द होने लगा था। वह कहती है "मैंने सामान्य दर्द मान कर नजरअंदाज कर दिया। दर्द बढ़ने लगा तो बुआ को पीड़ा बताई। बुआ ने चिकित्सक को बताया। जांच के बाद चिकित्सक ने पैर में कैंसर होने की बात कही। साथ ही पैर कटवाने की सलाह दी।"

पूरी कहती हैं कैंसर का नाम सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। बुआ भी सन्न रह गई। यहां पूरी ने हिम्मत जुटा कर बुआ को हिम्मत दी और घर में किसी को नहीं बताने को कहा। दर्द सहते हुए 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करली। आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया, बीए फर्स्ट ईयर में पढाई करते हुए दर्द बढ़ने लगा।

दर्द बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो घरवालों को बताया। पिता ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल में इलाज करवाया। दर्द से राहत नहीं मिली। इसके बाद जोधपुर मथुरादास अस्पताल में एडमिट कराया। तीन साल तक चले लम्बे इलाज के बाद आखिर जयपुर के सवाईमानसिंह अस्पताल में चिकित्सकों ने 2016 में एक पैर काट दिया। पूरी कहती हैं कि अब मेरी हिम्मत टूट गई थी।

ताने सुने तो कुछ कर गुजरने की ठानी

पूरी कहती हैं पैर काटने के बाद स्वस्थ्य होने पर मुझे घर लाया गया। गांव के लोगों के साथ रिश्तेदार भी मिलने आए, लेकिन हर कोई स्वास्थ्य के बारे में पूछने के साथ ही ताना भी मारकर चला जाता। बेचारी अब क्या करेगी। शादी होगी कि नहीं।

पूरी ने द मूकनायक से कहा कि लोगों के ताने सुनकर मैंने मन में ठान ली की मुझे कुछ करके दिखाना है। बस यही से समाज में कुछ अलग कर पिता का मान बढ़ाने का मन बना लिया, लेकिन पैर की तरफ देख कर उदास हो जाती थी।

पूरी मेघवाल
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यहां से मिल गया रास्ता

इस बीच पूरी ने आगे की पढाई जारी रखने के लिए जोधपुर दिव्यांग संस्था न्यू संकल्प इंडिया फाउंडेशन मंडोर में प्रवेश लिया। यहां पहले से दो दव्यांग बहन पैरा वालीबॉल खेलती थी।

पूरी कहती हैं कि एक दिन उन्होंने दिव्यांग बहनों से बॉलीबॉल खेलने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने मुझे हिम्मत दी और कोचिंग के लिए जयपुर केम्प में ले गई। यही से मेडल लेन का रास्ता मिल गया। मन में सोच लिया कि अब मुझे मेडल जीतकर पापा का नाम रोशन करना है।

यूं जीतती चली गई मेडल

पूरी मेघवाल ने 2020 में राज्य स्तरीय एक पैर पर दौड़ में भाग लिया। 100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2021 में कर्नाटका के उड़पी में पैरा वालीबॉल में राष्ट्रीय स्तर पर रजत पदक जीता। यहीं से पापा का सर गर्व से ऊंचा होने लगा। पदक के साथ घर आने और समाज ने भी सम्मान दिया। पूरी कहती हैं कि समाज के लोगों ने यहां आर्थिक मदद भी की। अब मेरे इलाज के लिए पापा का कर्ज भी कम होने लगा था। इसके बाद पिता ने मेरी शादी कर दी। मेरे पति भी एक कपड़े की दुकान पर नौकरी करते हैं। ससुराल वाले भी खेल में सहयोग कर रहे हैं। अब राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्णपदक जीत कर में खुश हूं। पूरी कहती हैं कि कोई भी बेटी हौंसलों से चुनौतियों का सामना करें। घबराए नहीं। बेटी चाहे तो कुछ भी कर सकती है।

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यहां जीती सोना

3 से 5 फरवरी तक जिला तंजावुर, तमिलनाडु में हुई 11वीं सीनियर राष्ट्रीय पैरा बॉलीबॉल प्रतियोगिता हुई। इसमें राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए पुरुष व महिला वर्ग की टीमों ने भाग लिया था। महिला टीम ने गोल्ड जीत कर राज्य का मान बढ़ाया है। पूरी कहती हैं कि उन्होंने महिला पैरा बॉलीबॉल टीम की कप्तान सरिता गोरा के नेतृत्व में टीम खिलाड़ियों के साथ सोना जीता है।

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