पिता फेरी लगाते हैं, बेटी ने दीक्षांत समारोह में जीते तीन गोल्ड मेडल

इकरा लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा है। उनको बेहतरीन अकादमिक रिकार्ड के लिए वर्ष 2021 में बेस्ट स्टूडेंट का एवार्ड भी मिल चुका है।
इकरा को मिले गोल्ड मेडल्स
इकरा को मिले गोल्ड मेडल्स

लखनऊ। खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है। कहने का मतलब है कि अगर आपके इरादे मजबूत हैं तो आपको मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता। कड़ी मेहनत व दृढ़ निश्चय से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। इस बात को साबित किया है फेरी लगाने वाले पिता की बेटी ने। लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में तीन पदक जीतने वाली इकरा रिजवान वारसी के पिता रिजवान पहले स्प्रे पेंटिंग का काम करते थे। कोविड के दौरान नौकरी चली गई तो अस्पतालों के पास घूमकर मास्क बेचने लगे। बस उतनी ही कमाई से घर का खर्च चलता है।

इकरा को डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी गोल्ड मेडल, पंडित देवी सहाय मिश्रा गोल्ड मेडल और श्रीमती श्याम कुमारी हुक्कू मेमोरियल गोल्ड मेडल से नवाजा गया है। इकरा ने बीए में 84.05 प्रतिशत अंक पाए हैं। इकरा के अनुसार, मां तरन्नुम वारसी गृहिणी हैं, जिन्होंने हमेशा मनोबल बढ़ाया। इकरा को वर्ष 2021 में बेस्ट स्टूडेंट अवॉर्ड कांस्य पदक से भी नवाजा जा चुका है।

द मूकनायक को इकरा ने बताया कि वह आगे उर्दू में परास्नातक की पढ़ाई करेंगी। इसके बाद यूजीसी व नेट परीक्षा देंगी और प्रोफेसर बनकर अपने जैसी लड़कियों को आगे बढ़ाएंगी।

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यहां तक पहुंचने का सफर था मुश्किल

इकरा ने बताया कि "घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कोविड काल में और भी मुश्किल हालात थे। मां मास्क की सिलाई करती थीं। पिताजी उनको अस्पतालों के बाहर बेचते थे। इसी से घर चलता था। अब भी हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। हम चार भाई-बहन हैं, जिसमें मैं सबसे बड़ी हूं। तीन भाई-बहन मुझसे छोटे हैं। मैं मास्टर्स कर रही हूं, मेरे मम्मी-पापा ने मेरा बहुत साथ दिया है। मां-बाप ने हर तरह से संघर्ष करके पढ़ाई कराई और आज मैं गोल्ड मेडलिस्ट हूं।"

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल इकरा को सम्मानित करते हुए
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल इकरा को सम्मानित करते हुए

सार्थक किया नाम

इकरा फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ है अध्ययन या पढ़ना। इकरा ने अपने नाम को सार्थक करते हुए मेहनत से पढ़ाई कर यह मुकाम हासिल किया। इकरा की सफलता से न सिर्फ परिजन व दोस्त खुश हैं, बल्कि प्रोफेसरों ने भी उसको खूब बधाई दी है।

30 किलोमीटर चलते है पिता, तब मिलती है रोटी

द मूकनायक को रिजवान के पिता ने बताया कि, "बच्चों की रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिए फेरी लगाकर, कभी मास्क तो कभी दूसरे सामान बेचता हूं। अब बेटा भी प्राइवेट नौकरी करने लगा है, जिससे चार हजार रुपए महीना आ जाता है। जैसे-तैसे दो वक्त की रोजी और बच्चों की पढ़ाई की फीस का बंदोबस्त हो जाता है।"

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