मथुरा की विशेष एससी/एसटी अदालत का फैसला: आठ वर्षीय दलित बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के दोषी को फांसी की सजा

मथुरा की विशेष एससी/एसटी अदालत ने दलित बच्ची के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के दोषी को सुनाई फांसी की सजा, कहा – यह दुर्लभ से दुर्लभ मामला है।
 सांकेतिक फोटो
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उत्तर प्रदेश: मथुरा की एक विशेष एससी/एसटी अदालत ने मंगलवार को एक 50 वर्षीय व्यक्ति को आठ साल की दलित बच्ची के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने इस जघन्य अपराध को "दुर्लभ से दुर्लभ मामला" बताते हुए कहा कि इसकी क्रूरता मानवता को झकझोर देने वाली है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा

पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर सोनू चौधरी की रिपोर्ट में बच्ची के गुप्तांगों पर कई धारदार चोटों के निशान मिले। गर्भाशय बुरी तरह क्षतिग्रस्त था और किडनी व लिवर में भी आंतरिक रक्तस्राव हुआ था, जिससे उसकी मौत हो गई। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बच्ची के गले और मलाशय पर चोटें थीं, कंधे पर गहरे दांतों के निशान और शरीर पर कई जगह खरोंच पाई गईं।

पूरा मामला

यह घटना 26 नवंबर 2020 की है। मथुरा जिले की कक्षा दो में पढ़ने वाली बच्ची अपने गांव की एक महिला के साथ जंगल से लकड़ियां बटोरने गई थी। देर शाम तक घर न लौटने पर पिता ने उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। उसी रात वृंदावन क्षेत्र के जंगल में बच्ची का शव बरामद हुआ, जिसे उसके ही कपड़ों से गला दबाकर मार दिया गया था।

दो दिन बाद, 28 नवंबर को स्थानीय गांव का ही एक व्यक्ति आरोपी के रूप में गिरफ्तार किया गया।

कानूनी कार्रवाई

पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 376 (बलात्कार), 377 (प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध यौन कृत्य), 302 (हत्या) और 201 (सबूत मिटाने) के तहत मुकदमा दर्ज किया। इसके अलावा, पॉक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट की धाराएं भी लगाई गईं।
25 जनवरी 2021 को चार्जशीट दाखिल की गई और अगले महीने मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई।

ट्रायल के दौरान गवाही और सबूत

पुलिस ने अदालत में नौ गवाहों के बयान, वैज्ञानिक साक्ष्य और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट प्रस्तुत की। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि बच्ची के नाखूनों में आरोपी की त्वचा के टुकड़े फंसे हुए थे। गांव की एक महिला गवाह ने भी बताया कि आरोपी पहले से ही लड़कियों के साथ गलत हरकतें करता था।

अदालत का निर्णय

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बृजेश कुमार की अदालत ने आरोपी की ओर से दी गई यह दलील खारिज कर दी कि यह उसका पहला अपराध है और उसे नरमी बरती जाए। अदालत ने माना कि अपराध की बर्बरता इतनी अधिक है कि यह फांसी योग्य है।

फैसले में कहा गया कि दोषी को "फांसी पर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो।" इसके साथ ही अदालत ने दोषी पर 3 लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।

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