चेन्नई- मद्रास हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST एक्ट) के तहत दर्ज मामलों में पुलिस की लापरवाही पर गंभीर नाराजगी जताई है। जस्टिस पी. वेल्मुरुगन की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पुलिस को SC/ST एक्ट के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी शिकायत में SC/ST एक्ट के तहत अपराध का संज्ञेय अपराध दिखता है, तो पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करनी होगी और किसी भी प्रारंभिक जांच (Preliminary Enquiry) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह मामला कृष्णागिरी जिले के होसुर तालुक के एक दिव्यांग SC समुदाय के व्यक्ति मुनीराज का है। मुनीराज ने कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि उनकी माँ को 1997 में तमिलनाडु सरकार की भूमि सीमा योजना के तहत 2.90 एकड़ जमीन आवंटित हुई थी, जिस पर वे लंबे समय से कब्जा करके खेती कर रहे थे। हालांकि, कुछ लोगों ने जाली दस्तावेज बनाकर उनकी जमीन हड़पने की कोशिश की। इसके बाद मुनीराज ने होसुर की अदालत में सिविल केस दायर किया।
6 अगस्त 2024 को मुनीराज ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने हथियारों के साथ उनकी जमीन पर धावा बोलकर उनके घर को नुकसान पहुँचाया और उन्हें जातिसूचक गालियाँ देते हुए जान से मारने की धमकी दी। मुनीराज ने तुरंत होसुर टाउन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि इंस्पेक्टर ने उनकी शिकायत को फाड़ दिया और एक नई शिकायत लिखकर उनसे साइन करवा ली। बाद में, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद मुनीराज ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 156(3) CrPC के तहत याचिका दायर की।
24 फरवरी 2025 को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और जांच शुरू करने का आदेश दिया। हालांकि पुलिस ने एक इंस्पेक्टर के नेतृत्व में प्रारंभिक जांच करके रिपोर्ट दाखिल कर दी कि मामले में कोई सबूत नहीं मिला है। इस पर मुनीराज ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस वेल्मुरुगन ने अपने फैसले में कहा कि SC/ST एक्ट के मामलों में प्रारंभिक जांच की कोई गुंजाइश नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 18A(1)(a) के तहत, अगर शिकायत में SC/ST एक्ट के तहत अपराध का उल्लेख होता है, तो पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करनी होगी। मजिस्ट्रेट ने जो प्रारंभिक जांच का आदेश दिया था, वह कानून के खिलाफ था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि SC/ST एक्ट के मामलों की जांच केवल डिप्टी एसपी या उससे ऊपर के अधिकारी ही कर सकते हैं, लेकिन इस मामले में एक इंस्पेक्टर ने जांच की, जो नियमों का उल्लंघन है। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट को यह मामला SC/ST एक्ट के तहत गठित विशेष अदालत को भेजना चाहिए था, न कि खुद निपटाना चाहिए था।
कोर्ट ने होसुर पुलिस को निर्देश दिया कि वह मुनीराज की शिकायत को धारा 154 CrPC के तहत एफआईआर के रूप में दर्ज करे और दो सप्ताह के भीतर जांच शुरू करे।
जांच केवल डिप्टी एसपी या उससे ऊपर के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस को 60 दिनों के भीतर जांच पूरी करके चार्जशीट विशेष अदालत में पेश करनी होगी।
हाई कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की प्रति सभी जिलों के एसपी को भेजें और सुनिश्चित करें कि SC/ST एक्ट के मामलों में नियमों का सख्ती से पालन हो।
SC/ST एक्ट की धारा 7 (नियम 7) के अनुसार, इस कानून के तहत दर्ज किसी भी मामले की जांच केवल डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (DSP) या उससे वरिष्ठ अधिकारी ही कर सकते हैं। यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि संवेदनशील SC/ST अत्याचार के मामलों में उच्च स्तर की निष्पक्षता और गंभीरता से जांच हो।
साथ ही, नियम 7(2) के तहत पुलिस को 60 दिनों के भीतर जांच पूरी करके चार्जशीट विशेष अदालत में पेश करनी होती है। यह प्रावधान पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने और पुलिस जांच में देरी रोकने के लिए बनाया गया है।
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