जिंदगी दलितों के अधिकारों के नाम, मरणोपरांत किया देहदान

दलित अधिकार केंद्र के संस्थापक एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ के संघर्षों की कहानी
मिमरोठ जी के निधन पर जमा लोग
मिमरोठ जी के निधन पर जमा लोग

जयपुर। राजस्थान में दलित अधिकार केंद्र संस्था के संस्थापक एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ सामंतवादी सोच के तले दबे-कुचले समुदाय को कानूनी रूप से जागरूक कर जीवन यापन का अधिकार दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे। वे दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके जाने के बाद भी उनकी देह सामाजिक हित मे काम आएगी। 24 फरवरी को मिमरोठ का निधन होने पर परिजनों ने उनकी अंतिम इच्छानुसार उनका देह राज्य के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल जयपुर को दान कर दिया। मिमरोठ की देह का अध्ययन कर सैकड़ों छात्र चिकित्सक बनकर समाज सेवा करेंगे।

पिता ने मजदूरी कर पढ़ाया

एडवोकेट प्रभाती लाल का जन्म 10 अप्रैल 1939 को दिल्ली के आठ कोठड़ी मोहल्ले में हुआ। उस वक्त इनके पिता दिल्ली की कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे। यह मोहल्ला बैरवा मोहल्ले के नाम से मशहूर था। इस मोहल्ले में कपड़ा मिल में काम करने वाले ज्यादातर राजस्थान के दलित समुदाय के मजदूर निवास करते थे। एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ के पिता भी राजस्थान के दौसा जिले के बिवाई गांव के मूल निवासी थी। उन्होंने दिल्ली में रहकर प्रारम्भिक शिक्षा ली। आर्थिक रूप से पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसके बावजूद पिता ने पढ़ाया। कक्षा 8वीं की पढ़ाई के साथ बच्चों को टयूशन पढ़ा कर आर्थिक रूप से पिता का साहयोग करने लगे।

1958 में दिल्ली में रहते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी से मेट्रिक पास की। अगस्त 1959 में उत्तर रेलवे प्रधान कार्यालय बड़ौदा हाउस में क्लर्क की नौकरी मिली। नौकरी के दौरान दलितों के हक व अधिकारों की लड़ाई लड़ते व उन्हें न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते। जीवन का अधिकांश समय दलितों के साथ होने वाले जातिगत भेदभाव व उत्पीड़न को समाप्त करने में खपा दिया। समाज में जागरूकता लाने के लिए सेमिनार, बैठक, गोष्ठी, प्रशिक्षण शिविर, जन सुनवाई, परिचर्चा, धरना, प्रदर्शन रैली आदि का आयोजन किया।

दलित अधिकार केंद्र के संस्थापक एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ
दलित अधिकार केंद्र के संस्थापक एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ

एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, "मैंने जीवन में महसूस किया कि दलितों के लिए बनी योजनाओं, कानूनों की प्रभावी पालना करने के लिए सरकार, जनप्रतिनिधि, नीति निर्माताओं पर कानून के दायरे में रहकर दबाव बनाने की जरूरत है। इसलिए मैंने समुदाय के लोगों, नगर समाज, सामाजिक संगठनों, नेटवर्क के साथियों तथा जनप्रतिनिधि व सरकार के साथ समय - समय पर संवाद स्थापित कर दलितों के लिए बने कानून व योजनाओं के पालन के प्रयास किए।"

मिमरोठ ने दलितों को एक जुट करने, उनके विकास व सुरक्षा के लिए बनी योजनाओं के बारे में बताने के लिए शिविरों का आयोजन कर उन्हें मुख्य विकास की धारा में लाने के लिए स्वयं के सीमित संसाधनों के माध्यम से अथक प्रयास किया।

एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ ने आत्मकथा में आगे लिखा कि उन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई में महसूस किया कि आजादी के 67 वर्ष बाद भी दलितों के लिए जितने पैसे खर्च किए गए उसके अनुपात में जागृति नहीं आई। न ही उस अनुपात में दलितों का विकास हुआ। आज भी दलितों की बस्तियों में पानी, बिजली, नाली, रोड आदि मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। दलितों के पास स्थाई आय का कोई स्रोत नहीं है जिसके कारण दलित आज भी आजीविका के लिए दूसरे लोगों पर निर्भर हैं। इसका मुख्य कारण सरकार व प्रशासन की दलितों के प्रति संवेदनहीनता है।

एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ
एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ

भरतपुर में दलितों के सामूहिक नरसंहार का विरोध

दलित अधिकार केंद्र के संस्थापक एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ के निधन के बाद संस्था के मुख्य कार्यकारी बने उनके पुत्र एडवोकेट हेमंत मिमरोठ बताते हैं कि उनके पिता ने जीवन भर दलित समुदाय के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। इसमें राजस्थान के भरतपुर जिले के कुम्हेर में सामूहिक दलित नरसंहार प्रकरण भी शामिल है।

हेमंत बताते हैं कि 6 जून 1992 को राजस्थान के भरतपुर जिले के कुम्हेर कस्बे में दलितों का सामूहिक नरसंहार किया गया। उस वक्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार 17 दलितों को जिंदा जला दिया गया। इस नरसंहार में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका पक्षपातपूर्ण व निष्क्रिय थी। इस नृशंस हत्याकांड की पुलिस ने एफआईआर तक नहीं लिखी थी।

सामूहिक दलित हत्याकांड के दूसरे दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत घटना स्थल पर पहुंचे थे। जहां उन्होंने पीड़ित परिवारों से मिलकर मृतक आश्रितों की आर्थिक सहायता के साथ ही हत्याकांड की जांच के लिए एक जांच आयोग के गठन का अश्वासन दिया था। बाद में राजस्थान सरकार की तरफ से कुम्हेर कांड की जांच के लिए न्यायमूर्ति केएस लोढा की अध्यक्षता में इन्क्वारी कमीशन ऑफ एक्ट के अंतर्गत (लोढा कमीशन) के नाम से जांच आयोग के गठन कर दिया।

इस मामले में सीबीआई दिल्ली ने आरोपियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, जो अभी भी एससी, एसटी कोर्ट में लंबित है। एडवोकेट हेमंत मिमरोठ बताते हैं कि उस वक्त कुम्हेर दलित हत्याकांड मामला संसद में भी उठाया गया। 10 दिन संसद ठप रही।

गौरतलब है कि उक्त घटना के दौरान जितने भी जिम्मेदार अधिकारी थे, सभी दलित समुदाय से थे जिनमें तत्कालीन संभागीय आयुक्त एन के बैरवा, डीआइजी पीएन रछोया, कलक्टर व एसपी भी दलित समुदाय से थे। लेकिन समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई।

आरोप लगा कि उक्त कुम्हेर कांड दबंग जातियों के द्वारा सुनियोजित ढंग से अंजाम दिया था। सीआईडी के माध्यम से स्थानीय पुलिस व प्रशासन को समय पर सूचित करने के बावजूद घटना क्रम को रोकने के लिए उचित कार्रवाई नहीं कि गई।

एडवोकेट हेमंत मिमरोठ ने कहा कि कुम्हेर दलित हत्याकांड के जांच के लिए लोढा कमीशन गठन होने के बाद दिल्ली छोड़ कर राजस्थान आए एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ 42 महीनों तक कमीशन के समक्ष पेश होकर पैरवी करते रहे। लम्बे संघर्ष के बाद जांच आयोग ने अगस्त 1996 में कुम्हेर कांड की रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश कर दी, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर दबाए रखा। दलित संगठनों ने आयोग की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखने की मांग की, लेकिन राज्य सरकार ऐसा नहीं किया।

कुम्हेर कांड पर हाईकोर्ट में याचिका

राज्य सरकार की हठधर्मिता के चलते एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ ने कुम्हेर हत्याकांड पर लोढा कमीशन की रिपोर्ट विधानसभा पटल पर रखने के लिए राज्य सरकार को निर्देशित करने की मांग को लेकर राजस्थान हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई। याचिका स्वीकार कर हाईकोर्ट ने लोढा कमीशन रिपोर्ट विधानसभा पटल पर रखने के लिए राज्य सरकार को निर्देशित किया, लेकिन सरकार ने केवल एक्शन टेकन रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा न्यायालय को सम्पूर्ण रिपोर्ट सदन के पटल रखने की बात कह कर न्यायालय को गुमराह किया।

कुम्हेर कांड के बाद कानूनी पेचीदगियां, पुलिस, प्रशासन व सरकार के उदासीन व्यवहार, प्रदेश के दलित संगठनों की भूमिका के कारण राजस्थान के दलितों की दशा व दिशा पर मिमरोठ ने चिंतन करते हुए दलित आन्दोलन को मजबूत करने की ठानी। संवैधानिक प्रावधान व कठोर कानून होने के बावजूद दलितों को सम्मान नहीं मिल पा रहा है। इस कारण विधान सभा का घेराव कर आंदोलन किया गया। नतीजन सरकार को झुकना पड़ा। राज्य सरकार को लोढा कमीशन की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखना पड़ा।

कुम्हेर हत्याकांड के बाद एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ ने दलितों में जनजागरूकता अभियान चला कर इन्हें मूक से मुखर बनाने के लिए आंदोलन शुरू किया।

इन्हें भी न्याय दिलाने के लिए किया संघर्ष

दलित अधिकार केंद्र जयपुर के निदेशक एडवोकेट सतीश कुमार कहते हैं कि पी.एल. मिमरोठ ने कुम्हेर हत्याकांड के अलावा दलित अत्याचार के अन्य मामलों की भी दमदार पैरवी की। सभी मे पीड़ितों को न्याय भी दिलाया।

एडवोकेट सतीश कुमार कहते हैं कि यहां दलित मानव अधिकार केंद्र के गठन के साथ ही 2001 में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में मनबढ़ों द्वारा एक नाबालिग दलित लड़की को बंधक बनाकर 20 माह तक अलग-अलग स्थान पर ले जाकर बलात्कार करने का मामला संज्ञान में आया।

संस्थापक के नेतृत्व में दलित अधिकार केंद्र ने अपने स्तर पर सत्यता की जांच के लिए कमेटी गठित की। पुलिस से अलावा संस्था की जांच में आरोप सिद्ध होने पर अंत तक पैरवी की। संस्था की मजबूत पैरवी का नतीजा रहा कि 17 अप्रैल 2007 को मुख्य आरोपी कृष्ण गोदारा को 10 साल की सजा सुनाई गई।

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इसी तरह पाली जिले में दलित चुन्नीलाल मेघवाल द्वारा अपनी पुत्री को "बाईसा" कहने मात्र पर एक जाति विशेष के लोगों ने उसकी हत्या कर दी। पैरवी करते हुए पी.एल. मिमरोठ ने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा करवाई।

जोधपुर जिले के खेमाराम मेघवाल व कानाराम मेघवाल के जाति के कारण जोधपुर के दईजर गांव में एक नाई ने बाल काटने से मना कर दिया। इस मामले की पैरवी करते हुए दलित मानव अधिकार केंद्र ने दलितों को बाल कटवाने का अधिकार दिलवाया।

सार्वजनिक तालाब में प्रवेश का अधिकार दिलाया

सन 2000 में जयपुर जिले के फागी थानांतर्गत चकवाड़ा गांव के दलित युवक बाबू लाल बैरवा व राधेश्याम बैरवा को गांव के सार्वजनिक तालाब के पक्के घाट (गणेश घाट) पर नहाने के कारण गांव के सवर्णों ने दलितों पर 51 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया था। जुर्माना नहीं देने पर बैरवा समाज के लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। तालाब पर बोर्ड लगा कर लिख दिया गया कि " दलितों और महिलाओं का तालाब में प्रवेश वर्जित है" इस मामले को दलित अधिकार केंद्र ने गम्भीरता से लेते हुए पुलिस प्रशासन व मानव अधिकार आयोग तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। इसके बाद चकवाड़ा गांव के दलितों को गांव के सार्वजनिक तालाब के सभी घाटों पर जाकर नहाने का अधिकार मिला।

मिमरोठ जी के निधन के बाद इकट्ठा हुए लोग
मिमरोठ जी के निधन के बाद इकट्ठा हुए लोग

यूं की गई दलित अधिकार केंद्र की स्थापना

संस्था से जुड़े स्थानीय पत्रकार कन्हैया लाल मेरोठा बताते हैं कि राजस्थान सामंतवादी प्रदेश रहा है। यह सोच आज भी राजस्थान के गांवों में देखने को मिलती है। यह कड़वा सच है कि इस सामाजिक व्यवस्था व जातिगत भेदभाव का शिकार सबसे ज्यादा दलित होते हैं।

पत्रकार कन्हैया लाल मेरोठा बताते हैं कि दलित अधिकार केंद्र के गठन से पूर्व एडवोकेट प्रभाती लाल मिमरोठ ने दलितों के हक व अधिकारों के संघर्ष के दौरान महसूस किया कि राजस्थान के सभी जिलों में जातिगत भेदभाव चरम सीमा पर है। पश्चिमी राजस्थान के पाली, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर, बाड़मेर व जालोर आदि जिलों में आज भी जातिगत भेदभाव की स्थिति खराब है। गांवो में दलित आज भी चौपालों, गढ़ ( रावला ) के सामने से जूती पहन कर नहीं निकाल सकते।

जातिवादियों के सामने दूल्हे को घोड़ी चढ़ने से रोक दिया जाता है। कहीं बाल काटने से बचा जाता है तो कहीं सार्वजनिक स्थानों के उयोग से रोक दिया जाता है। दलितों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का उपयोग तक नहीं करने दिया जाता। इस तरह राजस्थान में घटित दलित अत्याचार के मामलों में एडवोकेट मिमरोठ कई पीड़ितों से मिले। घटना स्थलों पर जाकर इनके दर्द को समझा। प्रताड़ित होने के बाद भी इनकी एफआईआर तक नहीं होती। तब जाकर राजस्थान में दलित अधिकार केंद्र के गठन का विचार मन में आया।

राजस्थान में दलित अधिकार केंद्र के गठन के बाद समाज में जागरूकता के सकारात्मक परिणाम आने लगे हैं। गांव में रहने वाले दलित किसान व मजदूर कानूनी अधिकार समझने लगा है। पहले अत्याचार के बाद चुप हो जाते थे। अब आवाज उठाने लगे हैं। एफआईआर दर्ज होने लगी है।

एडवोकेट पी.एल. मिमरोठ ने दलित अधिकार केंद्र से जोड़ कर राजस्थान में 5 हजार महिला पुरुष कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है। यह सभी लोगों को जागरूक करने के साथ पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। दलित पीड़ितों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत चालान होने पर मुआवजा राशि मिलने लगी है।

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